जुबिली न्यूज डेस्क
हिंसात्मक घटनाओं की वजह से चर्चा में रहने वाला नागालैंड इस बार किसी और वजह से सुर्खियों में हैं। इस बार की वजह हर भारतीय को गौरवान्वित करने वाली है।
दरअसल नागालैंड के विधानसभा में 58 साल बाद राष्ट्रगान गूंजा है। इसीलिए नागालैंड अब विधानसभा में राष्ट्रगान बजाने के लिए सुर्खियों में है।
भारत के पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड को 58 साल पहले अलग राज्य का दर्जा मिला था, बावजूद इसके कभी वहां राष्ट्रगान नहीं बजा।
अलग राज्य का दर्जा पाने के बाद से ही नागालैंड अक्सर उग्रवाद, अलगाववाद और हिंसा के लिए ही सुर्खियां बटोरता रहा है, लेकिन पहली बार वह इनसे इतर किसी मुद्दे की वजह से सुर्खियां बटोर रहा है।
असम से काट कर नागालैंड को 1 दिसंबर 1963 में अलग राज्य का दर्जा दिया गया था। अब करीब 58 साल बाद पहली बार विधानसभा के बजट अधिवेशन के दौरान सदन में राष्ट्रगान बजाया गया है। इसे नागालैंड के लिए ऐतिहासिक क्षण कहा जा रहा है।
यह मामला सोशल मीडिया पर काफी सुर्खियां बटोर रहा है। इसके अलावा एक अन्य राज्य त्रिपुरा में भी वर्ष 2018 में सत्ता में भाजपा सरकार के आने के बाद ही सदन में पहली बार राष्ट्रगान बजाया गया था।
जानें पूर्वोत्तर का इतिहास
साल 1947 में देश की आजादी के समय नागालैंड असम का ही हिस्सा था। उसके बाद एक दिसंबर, 1963 को इसे अलग राज्य का दर्जा दिया गया।
नागालैंड में जनवरी, 1964 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद फरवरी में पहली विधानसभा का गठन किया गया था, लेकिन तबसे इस महीने तक कभी नागालैंड के विधानसभा में राष्ट्रगान की धुन नहीं गूंजी थी।
ऐसा नहीं है कि यहां राष्ट्रगान बजाने पर रोक है, फिर भी यहां राष्ट्रगान नहीं बजाया गया। इस मामले में विधानसभा आयुक्त डॉ. पीजे एंटनी कहते हैं, “सदन में राष्ट्रगान बजाने पर किसी तरह की रोक नहीं थी। बाजवूद इसके यहां राष्ट्रगान क्यों नहीं गाया जाता था, इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है।”
इस बार विधानसभा अध्यक्ष शारिंगेन लॉन्गकुमेर ने इस महीने बजट अधिवेशन शुरू होने के मौके पर राज्यपाल के अभिभाषण से पहले राष्ट्रगान चलाने का फैसला किया। राज्य सरकार से भी इसके लिए पहले अनुमति ले ली गई थी।
इसके बाद सदन में राज्यपाल के प्रवेश करने पर पहली बार राष्ट्रगान बजाया गया और मास्क पहने हुए सभी विधायकों ने एक साथ खड़े होकर इसका सम्मान भी किया।
इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष एस लॉन्गकुमेर कहते हैं कि मैंने सदन में राज्यपाल के अभिभाषण से पहले राष्ट्रगान बजाने का सुझाव दिया था। सरकार ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया।
लॉन्गकुमेर ने भी इस सवाल पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया कि बाकी राज्यों की तरह नागालैंड में भी अब तक राष्ट्रगान पहले क्यों नहीं बजाया जाता था।
उन्होंने कहा कि मैं यहां सदन में राष्ट्रगान बजाने की इस परंपरा की शुरुआत कर गर्वित महसूस कर रहा हूं। तेरहवीं विधानसभा का हिस्सा बनने के बाद से ही मैं सदन में राष्ट्रगान की कमी महसूस करता था। अध्यक्ष बनने के बाद मैंने मुख्यमंत्री से इस मुद्दे पर राय-मशविरा किया। उनकी हरी झंडी मिलने पर सदन में इसे बजाने का रास्ता साफ हो गया।
साल 2019 के उपचुनाव में एस लॉन्गकुमेर नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के सदस्य के तौर चुन कर विधानसभा पहुंचे थे।
वहीं इस मामले में राज्य के विधायक व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सी साजो कहते हैं, “यहां पहले कभी यह परंपरा नहीं रही, लेकिन प्रोटोकॉल के अनुसार अगर राज्यपाल चाहें तो सदन में राष्ट्रगान बजाया जा सकता है। इसका फैसला विधानसभा अध्यक्ष पर निर्भर होता है।
वहीं संवैधानिक विशेषज्ञों के मुताबिक राज्य विधानसभा में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य नहीं है। इसे एक परंपरा के तौर पर बजाया जाता है।
इस मामले में लोकसभा के महासचिव रहे सुभाष कश्यप कहते हैं, “संविधान में ऐसा कुछ नहीं है कि जिसमें राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य किया गया हो। यह तो इस गीत के सम्मान का मामला है।”
एक अन्य संविधान विशेषज्ञ सी दोरेंद्र सिंह का कहना है कि, “देर से ही सही, नागालैंड विधानसभा में राष्ट्रगान का बजना इस बात का संकेत है कि यह प्रदेश अब अलगाववाद को अलविदा कर राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल होने की तैयारी कर रहा है। राज्य में बीते 24 वर्षों से जारी शांति प्रक्रिया अब अपनी मंजिल तक पहुंचने वाली है।”