बृजेश गोविन्द राव
अखिलेश यादव जाति के चक्कर मे नही पड़े होते तो आजमगढ़ के चुनाव का रिजल्ट कुछ और होता। यह कहना एक सामाजिक कार्यकर्ता का है जो मुस्लिम वर्ग से आते है। तो क्या मुसलमानों का सपा से मोहभंग तो नही हो रहा है, जिसपर इस सामाजिक कार्यकर्ता का दावा है बड़े पैमाने पर मुसलमानों ने सपा के विरोध में वोट दिया,यह भी कहना गलत नही होता दस प्रतिशत मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया है उनका दावा यह भी स्थानीय यादव भी सपा को इस बार पसन्द नही किया। यानी समाजवादी पार्टी से एम वाई समीकरण का तिलस्म टूट रहा है।
आजमगढ़ में सम्पन्न हुए लोग सभा चुनाव जो समाजवादी पार्टी की हार कई मायने में चौकाने वाली है, चौकाने वाली बात यह है आजमगढ़ समाजवादियों का गढ़ कहा जाता है,जातिगढ समीकरण देखा जाय तो यह 24 प्रतिशत मुस्लिम और 26 प्रतिशत यादव जाति के मतदाता यहां रहते है। इस सीट पर पहले सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद रह चुके है और सपा के राष्टीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा विधान सभा चुनाव में विधायक चुने जाने के बाद यह सीट खाली की गयी थी।
समाजवादी पार्टी के लिए सबसे मुफीद माने जाने वाले आजमगढ़ में हार के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कुछ लोगो का कहना था इस बार यादव मतदाताओं ने भी बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी से अपनी दूरी बना लिया। जिसका पहला कारण यह बताया जा रहा है स्थानीय और बाहरी यादव को लेकर सतर्क हो गये थे। बताया जाता है कि जो यादव जाति से ताल्लुक रखने वाले बड़े नेता आजमगढ़ में है उसमें बड़े दबंग माफिया है उनतक मध्यमवर्ग के यादव पहुच नही पाते।
नाम न छापने के शर्त पर एक युवा यादव ने बताया कि उनकी रोज रोज की समस्याए है जिसके लिए अपने पार्टी के विधायक सांसद के पास जाते है लेकिन उनसे मुलाकात नही हो पाती, सांसद बड़े नेता है जो लखनऊ में रहते है बाहरी भी है,वही दूसरी तरफ जो विधायक है वो बड़े बाहुबली है सुरक्षा में रहते है,दर्जनों गाड़ियों के काफिले के साथ चलते है,हमारी जो थाने में तहसील में जनपद के अधिकारियों से है जहा ये लोग जा नही पाते,भाजपा की सराकर है छोटे से लगायत बड़े काम कोई भाजपाई ही करवा पायेगा इस लिए इस बार यादवों ने भाजपा को वोट किया।
वही दूसरी तरफ सपा की हार का एक दूसरा कारण भी बताया जा रहा बड़े पैमाने पर मुसलमानों ने इस बार सपा को वोट नही दिया। एक मुस्लिम युवक का दावा है कि अगर समाजवादी पार्टी शाहआलम गुड्डू जमाली को टिकट देती तो वो निश्चित तौर पर चुनाव जीत जाते। गुड्डू जमाली एम वाई समीकरण के सबसे बेहतर उमीदवार होते। इतना ही नही गुड्डू जमाली स्थानीय है और बराबर लोगो के संपर्क में रहते है उनके समर्थकों में मुस्लिम यादव के साथ साथ अन्य हिन्दू मतदाताओं तक पकड़ है और वो जमीनी नेता है। दावे के साथ तो नही कह सकता परन्तु बहुत कुछ शाहआलम उर्फ़ गुड्डू जमाली के पक्ष में परिणाम हो सकता था।
शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली आजमगढ़ का एक मात्र ऐसे नेता है जो जनता के बीच लोक प्रिय है और उनकी पकड़ जमीनी स्तर पर है। आजमगढ़ आंतक,जाती और उन्माद,गुण्डई के लिए पूरे देश मे अपनी पहचान बना चुका है। चाहे वो मीडिया के लोग हो या राजनीतिक दलों के नेता सभी लोग आजमगढ़ को अपने अपने नजरिये से देखते है जिसमे आतंकबाद,धर्मबाद और गुण्डागर्दी का ही बोल बाला रहता है, उसी आजमगढ़ में शाहआलम उर्फ गुड्डू जमाली ने इंसानियत को सबसे ऊपर रखकर लोगो के बीच अपनी लोकप्रियता बनाया।
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हैरानी इस बात का चाहे वो मीडिया हो या राजनीति दलों के लोगो को गुड्डू जमाली क्यो नही दिखते है। याद करने वालो बात है 2014 के लोक सभा चुनाव में जब वहा से सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ रहे थे उस समय अकेले गुड्डू जमाल उनके जीत की राह में चट्टान की तरह खड़े हो गये थे,याद करिये उस चुनाव के समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सराकर थी और मुलायम सिंह की संभावित हार से डर गये और साम वेद दंड अपना कर किसी तरह चुनाव जीते।
2014 के लोक सभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 3,40306 वोट मिले तो वही भाजपा के रमाकांत यादव को 2,77102 वोट मिले, बसपा के शाहआलम उर्फ गुड्डू को 2,66528 वोट मिले। 2019 में सपा और बसपा दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा और उसके प्रत्याशी अखिलेश यादव को 6,21578 वोट तो भाजपा के दिनेश उर्फ निरहुआ को 3,61704 वोट मिले यंही अखिलेश यादव ने भाजपा को अखिलेश ने2,60274 वोटो से हराया, यानी ईमानदारी से देखा जाय तो गुड्डू जमाली के पास ढाई लाख वोट का खजाना है, क्यो की 2022 के चुनाव में भी उनको 2,59044 प्राप्त हुआ है। अगर अखिलेश यादव गैर यादव प्रत्याशी लड़ाते तो निश्चित रूप से परिणाम आज कुछ और होता।