माई डियर इंडियन्स,
आज देश के लिए बहुत बड़ा दिन है। आज क्या खास होने जा रहा है आप सभी जानते हैं। इसके बारे में आपको बताने की जरूरत नहीं है। आपको पत्र लिखने के पीछे सिर्फ एक उद्देश्य है कि मेरे पास आपसे कुछ साधा करने के लिए है। दरअसल मैं उस पल का साक्षी रहा हूं जब लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। उस समय कैसे लोग मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ रहे थे।
जी हां, मैं 6 दिसंबर 1992 की बात कर रहा हूं। कुछ लोगों के लिए यह दिन ऐतिहासिक है। उस दिन जो हुआ था, उस पर गर्व करते हैं, लेकिन हम जैसे लोग गर्व नहीं कर पाते। 6 दिसंबर के बाद जो हुआ था उसको सोचकर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा मेरे साथ क्या हो गया था कि मैं इतना डरा हुआ हूं। तो सुनिए मेरे साथ क्या हुआ था?
जब मस्जिद गिरायी गई थी तो मेरी उम्र महज 12 साल थी। मेरे परिवार में मां-पिता के अलावा तीन बहनें थी। अपने परिवार का बहुत लाडला था मैं। पिताजी प्राइवेट नौकरी करते थे। सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 6 दिसंबर 1992 के बाद सब कुछ बिगड़ गया। बाबरी मस्जिद गिरने के बाद लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। ये लोग कौन थे मुझे नहीं मालूम, लेकिन इन्हीं लोगों में से किसी ने मेरे पिता का खून पीकर अपनी प्यास बुझायी थी। मुझे अपने पिता का चेहरा याद है। कैसे उन्हें मारा गया था। अब जब मैं बड़ा हो गया हूं, तो समझ में आता हैं कि पिताजी को कितनी तकलीफ हुई होगी।
पिताजी तो इस दुनिया से चले गए लेकिन उनके जाने के बाद हमारी जिंदगी कैसे थम गई, इस दर्द को वहीं समझ सकता है जिसने इस दंगे में किसी अपने को खोया है। हम चार भाई-बहन एक पल में अनाथ हो गए। दो जून की रोटी की जद्दोजहद में मां कैसे हलकान होती थी। पढ़ाई-लिखाई तो दूर की बात है। हमारी जिंदगी क्या से क्या हो गई, इसका आप अंदाजा नहीं लगा सकते।
27 साल हो गए इस घटना के हुए, लेकिन उसकी टीस आज भी बरकरार है। मैं हमेशा सोचता हूं कि पिताजी होते तो मेरी कैसी जिंदगी होती? यह सोच ही दिमाग को कुंद कर देती है। मैं सोचता हूं कि उस समय जो हुआ था उससे हमें क्या हासिल हुआ? मेरे पिताजी को किसने मारा और क्यों मारा मैं आज तक नहीं जान पाया। मेरे पिताजी का तो कोई दोष भी नहीं था। उनका मस्जिद गिराने में कोई योगदान नहीं था। फिर भी हमने उसकी कीमत चुकायी।
आज सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मामले में अपना फैसला सुनाने जा रहा है तो एक बार फिर वह वाकया याद आ गया। इसीलिए मुझे लगा कि आप लोगों से कुछ कहना चाहिए। मैं आप लोगों से अनुरोध करना चाहता हूं कि सबसे पहले यह देश है। इस देश के बाद बाकी किसी का नंबर आता है। इस देश की गरिमा को बनाकर रखना है तो इंसानियत को बचाए रखना है। इंसानियत हमें किसी का खून करने की इजाजत नहीं देती। इंसानियत हमें मंदिर-मस्जिद के नाम पर किसी को मारने की इजाजत नहीं देती। इसलिए जिसकी इंसानियत मर चुकी है वह अपनी इंसानियत को जिंदा करें।
ईश्वर-अल्ला जानता है कि यदि आपके भीतर थोड़ी भी इंसानियत बची है तो अयोध्या का फैसला, चाहे वह किसी के पक्ष में हो, इस देश की गरिमा को गिरने नहीं देगी। पूरी दुनिया में भारत अपनी गंगा-जमुनी तहजीब की वजह से जाना जाता है। इसलिए मेरा आप लोगों से अनुरोध है कि मंदिर-मस्जिद के नाम पर अबकी बार किसी मासूम बच्चे को अनाथ न होने दीजिएगा। हिंदू-मुस्लिम के नाम पर किसी महिला को विधवा न होने दीजिएगा। अबकी बार किसी के हाथ का मोहरा बनकर किसी बच्चे को ऐसा कोई जख्म न देने दीजिएगा जो ताउम्र उसे ठीक से सोने न दें।