शबाहत हुसैन विजेता
मुम्बई की आरे कालोनी में जिस तरह से इंसानी ज़िन्दगी की आखरी उम्मीद पर आरे चलाये गए वो न सिर्फ शर्मनाक है बल्कि ऐसा फैसला करने वाले को सज़ा मिलनी चाहिए।
पेड़ काटने का जो रिकॉर्ड मुम्बई में बना है, उतना बड़ा रिकॉर्ड न देश में कभी बना और न ही शायद फिर कभी बन पाए। मेट्रो पार्किंग के नाम पर ज़िन्दगी की आखरी उम्मीद के साथ खिलवाड़ अगर शर्मनाक है तो विरोध करने वालों का दमन सरकार की तानाशाही की तस्वीर को पेश करता है।
पेड़ काटे जाने की परम्परा नई नहीं है। सड़कें चौड़ी होती हैं तो पेड़ काटने पड़ते हैं, नई कालोनियां बनती हैं तो पेड़ों की कुर्बानी होती है, लेकिन किसी एक योजना के लिए 2656 पेड़ों की आहुति के फैसले पर दस्तखत कितने अमानवीय हैं उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
पॉल्यूशन से भरे माहौल से पेड़ ही निजात दिलाते हैं। वृक्षारोपण को लेकर भारत सरकार पिछले चार दशक से लगातार कोशिशें कर रही है। आम लोगों को लगातार इस बात के लिए जागरूक किया जा रहा है कि वह ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाएं।
इस मोहर्रम में तो उलेमा ने नौजवानों से कहा कि वह अपने-अपने शहर की कर्बलाओं में कर्बला के शहीदों की याद में 72-72 पेड़ लगाएं। समाज का हर तबका इस कोशिश में लगा है कि पहाड़ी अट्टालिकाओं ने जिस हरियाली को छीना है उसका कुछ अंश ही सही वापस लौटा दिया जाए लेकिन अफसोस की बात है कि मुम्बई की आरे कालोनी में हरियाली का जो गौरव देश के लिए प्रेरणा का स्रोत था उसे सरकारी अमले ने ही बर्बाद कर दिया।
पेड़ इंसान की लाइफलाइन हैं, यह ज़िन्दा रहने की आखरी उम्मीद हैं। इस उम्मीद पर आरे चलाये गए। आरे चलाने का विरोध हुआ तो रास्ते बन्द कर दिए गए। सड़कों पर पुलिस तैनात कर दी गई। लोगों को उधर जाने से जबरन रोका गया। गलती करने वाला यह जानता है कि वह गलत है। गलती करने वालों को डर था कि कहीं कोई दूसरा सुंदर लाल बहुगुणा न पैदा हो जाये। कहीं चिपको आंदोलन फिर से न शुरू हो जाये। इसका तरीका खोजा गया। उस रास्ते को ही सील कर दिया गया।
विरोध के सुर फिर भी उठे। पेड़ों पर चल रहे आरों के खिलाफ मुखर होने वालों की गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। प्रकाश अम्बेडकर भी गिरफ्तार हुए। दस घण्टे में 800 पेड़ काटने का रिकार्ड जैसे ही आम हुआ, विरोध के स्वर पूरे देश में सुनाई देने लगे।
मुम्बई मेट्रो चीफ अश्विनी भिंडे ने पेड़ों की कटाई को सही करार देते हुए कहा कि जब कुछ नया बनता है तो कुछ चीजों को नष्ट करना पड़ता है। इससे नई ज़िन्दगी और नए सृजन का रास्ता बनता है। किसी शर्मनाक बात है कि इंसान के फेफड़ों पर आरे चलाकर कार पार्किंग की जगह बनाई जा रही है।
यह कौन से सृजन का रास्ता तैयार हो रहा है, जिसमें पार्किंग में कार खड़ी करने वालों को ऑक्सीजन मास्क लगाना पड़े। जिस कार पार्किंग के लिए साँसों में ज़हर घुल जाए उसे सृजन का नाम कैसे दिया जा सकता है।
बड़ी संख्या में पेड़ों पर चलते आरे रोकने के लिए लोगों ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया लेकिन हाईकोर्ट ने सभी याचिकाएं खारिज कर दीं। याचिकाएं खारिज होने से लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बीच आरे के जंगलों में जिस रफ्तार में विनाश का आरा चला है वह रफ़्तार अगर किसी अच्छे काम के लिए अपनाई गई होती तो शायद इस देश ने मंदी की आहट भी न सुनी होती, तब शायद रुपया डॉलर से लगातार मुकाबला कर रहा होता।
जंगल में लगी विनाश की आग की तपन लोगों को महसूस हो रही थी। यह पहली बार था कि सरकार पेड़ काट रही थी और आम आदमी उन्हें बचाने के लिए घर से निकलकर सड़क पर खड़ा हो गया था। पुलिस द्वारा सील रास्तों पर चिपको आंदोलन की पुनरावृत्ति की शुरुआत होती दिखने लगी। लोगों की गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हुआ तो सड़कों पर हुजूम भी बढ़ गया।
सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर विरोध के सुरों ने दस्तक देकर पेड़ों को चीरते आरों को रोक दिया है। तय लक्ष्य से कुछ कदम पहले मेट्रो अधिकारियों को रुकना पड़ा है। बड़ी तादाद में पेड़ों का कटान पूरे देश के लिए फिक्र की बात है, लेकिन पेड़ों को बचाने के लिए आम लोगों का जागना इस बात का पुख्ता सबूत है कि नागरिकों के भीतर अभी सिर्फ सांसें ही बाकी नहीं बल्कि और जीने की जिजीविषा भी है। वह सुकून से अपनी रोज़ी रोटी कमाना चाहते हैं, लेकिन सांस लेने के हक पर बंदिश लगाने की कोशिश हुई तो फिर विरोध चाहे अफसरशाही का करना पड़े या फिर सरकार का, वह आखरी सांस तक लड़ेगा।
सरकारी आरों की राह में आरे से मज़बूत स्पीड ब्रेकर का बनना एक अच्छा संकेत है, हरियाली को बचाये रखने की जो कोशिश मुम्बई में शुरू हुई है वह काबिल-ए-तारीफ है। पेड़ों की कटान पर सुप्रीम रोक लगी है मगर जो पेड़ कटकर गिर चुके हैं, उनकी भरपाई भी ज़रूरी है। कटे पेड़ों के मुकाबले दस गुना पौधे लगाने होंगे। दस फीसदी पौधे भी पेड़ बन गए तो आने वाली पीढ़ियों के सामने हम शर्मिंदा होने से बच जाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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