केपी सिंह
समाजवादी पार्टी ने आजम खान के खिलाफ ताबड़तोड़ दर्ज हो रहे मुकदमों को लेकर आखिरकार राज्य सरकार के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। बेटे के हाथ में पार्टी की बागडोर सौंपकर स्वयं राजनीतिक वानप्रस्थ में जा चुके मुलायम सिंह खुद इस घोषणा के लिए एक बार जैसे गुफा से निकलकर सामने आये उन्हें आजम खान से 33 वर्ष पुराने संबंध जो निभाने हैं। दूसरी ओर मुलायम सिंह और नरेन्द्र मोदी के बीच व्यक्तिगत तौर पर एक मधुर रिश्ता भी है जिसकी वजह से आजम खान की तमाम विरूदावलि गाते हुए उन्होंने सरकार और भाजपा नेताओं को लेकर तल्खी से भी परहेज रखा।
आजम खान दरअसल पूरी तरह मुलायम सिंह के प्रोडक्ट हैं। जब आजम खान को मुलायम सिंह ने पार्टी में अपनाया था उस समय उन पर भारत माता को डायन कहने का आरोप चस्पा था। जिसके मद्देनजर दूसरे किसी दल में सेक्युलर होते हुए भी ऐसा करने की हिम्मत नहीं थी। आजम खान की जुबान जरूरत से ज्यादा बिंदास रही है। यहां तक कि उनकी मुस्लिम नेताओं तक से नहीं पटती। फिर भी मुलायम सिंह आजम खान को छोड़ना तो दूर उनका कद लगातार ऊंचा करते रहे। आजम खान के लिए उन्होंने शाही इमाम सैय्यद अहमद बुखारी को भी यह कहते हुए ललकार दिया था कि वे अपने को इमामत तक सीमित रखे। सियासत हमारा काम है और हमें करने दें। मुलायम सिंह की अपनी ठाने रखने की आदत से उन्हें राजनीति और छवि में तमाम नुकसान भी हुआ लेकिन अंततोगत्वा वे जिस शिखर पर पहुंचे हैं उसके पीछे उनकी इस अदा का योगदान सबसे बड़ा है।
आजम खान को उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के सबसे बड़े राजनीतिक चेहरे के रूप में उभारे रखने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी और जो इसके आड़े आया उसकी जमकर खबर ली। जब मरी पड़ी कांगे्रस में सोनिया गांधी आकर नई जान फूंकने लगी थी और सलमान खुर्शीद को उत्तर प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष उन्होंने बना दिया था उस समय मुलायम सिंह इसी कारण बौखला गये थे। उन्होंने सलमान खुर्शीद की ईसाई पत्नी को मुद्दा बनाकर उनकी मुस्लिम पहचान को संदिग्ध करने में कसर नहीं छोड़ी थी। नतीजतन कांग्रेस ने भी ऐसा जबाव दिया था कि मुलायम सिंह परेशान हो गये थे।
इस वाक युद्ध में आजम खान को कद्दावर बनाने की अपनी रणनीति के कारण पहली बार मुलायम सिंह को दूरगामी जोखिम से सतर्क होते देखा गया था। कांग्रेस ने कहा था कि अगर समाजवादी पार्टी मुसलमानों की इतनी ही हितैषी है तो राष्ट्रीय राजनीति में जा चुके मुलायम सिंह यादव अपनी पार्टी के विधायक दल का नेता शिवपाल की जगह आजम खान को क्यों नहीं नियुक्त कर देते। वैसे ऐसी ही स्थिति लोकसभा चुनाव के बाद भी आजम खान की वजह से समाजवादी पार्टी के सामने आ गई। पार्टी के अंदरूनी हलकों में यह कानाफूसी मुसलमानों के बीच हो रही है कि नेता जी संसदीय नेता के अपने उत्तराधिकार को आजम खान को सौपने की पहल क्यों नहीं कर देते जबकि अखिलेश यादव को अभी काफी समय तक सिर्फ प्रदेश की राजनीति करनी है।
पर खुलेआम यह नौबत आये उसके पहले ही आजम खान के खिलाफ आपराधिक मुकदमों का अंबार लगाकर भाजपा ने मुलायम सिंह के धर्म संकट को काफी हद तक दूर कर दिया है। उनकी पार्टी इस मामले में आजम खान के साथ खड़े होने का दिखावा करके अपना फर्ज पूरा कर रही थी लेकिन जब आजम खान की पत्नी उनकी अग्रिम जमानत की अर्जियां खारिज होने के बाद सीधे मुलायम सिंह से कुछ करने की गुहार लगाने पहुंच गई तो मुलायम सिंह को मोर्चा संभालना पड़ा।
विडम्बना यह है कि नरेन्द्र मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद मुलायम सिंह ने लोकसभा में सरेआम दिया था। पहले मोदी और मुलायम सिंह के बीच कोई रिश्ता नहीं था लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनते ही माजरा बदल गया। सेक्युलर कट्टरवाद छोड़कर मुलायम सिंह उनके प्रति गर्मजोश हो गये। तेजप्रताप यादव के विवाह समारोह में नरेन्द्र मोदी के पहुंचने के बाद तो यह बात बहुत आगे बढ़ गई। नरेन्द्र मोदी में ही नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मन में भी अपनी पार्टी के किसी नेता से ज्यादा आदर मुलायम सिंह के लिए है जो कई बार झलक चुका है।
योगी के शपथ ग्रहण करते ही उनके सामने मुलायम सिंह की सरकारी मर्सिडीज गाड़ी की फाइल लाई गई थी। यह गाड़ी केवल मुख्यमंत्री के लिए अधिकृत है लेकिन अखिलेश अपनी सरकार के समय अनधिकृत रूप से पिता की भी सेवा में यह गाड़ी लगाये हुए थे। अधिकारियों को लगता था कि सरकार बदलते ही नेता जी से मर्सिडीज वापस न ली गई तो उनके लिए झंझट न बन जाये। लेकिन योगी ने ऐसा न करके अधिकारियों से कहा कि अगर नेता जी स्वयं गाड़ी वापस न भेजें तो उनसे गाड़ी मंगवाने की कोई जरूरत नहीं है। हाल ही में जब मुलायम सिंह ज्यादा बीमार पड़ गये थे तो राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ उनका हालचाल लेने उनके घर पहुंचे थे।
मुलायम सिंह को भाजपा के शीर्ष नेताओं के अपने प्रति इस सौजन्य को भी देखना है और साथ-साथ आजम खान की यारी भी निभानी है। इसलिए आज जब वे सपा मुख्यालय में अखिलेश यादव के पूरी तरह पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद मीडिया से वार्ता के लिए पहुुचे तो उनका यह कदम अप्रत्याशित था। इस पत्रकार वार्ता में उन्होंने बार-बार आजम खान को सबसे बड़े राष्ट्रीय नेता के रूप में पेश किया लेकिन उन्होंने इस वार्ता में कूटनीतिक पैतरों का पूरा ख्याल रखा। इसी के तहत उन्होंने भाजपा नेताओं पर बरसना गंवारा नहीं किया बजाय इसके यह जताया कि रामपुर के अधिकारी आजम खान को लेकर मनमानी कर रहे हैं। भाजपा नेताओं की गलती यह है कि वे अधिकारियों की इस मनमानी पर कुछ नहीं बोल रहे जबकि उन्हें अधिकारियों को रोकना चाहिए।
यही नहीं उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि हर रोज आजम खान के खिलाफ दर्ज किये जा रहे नये-नये मुकदमों से भाजपा के तमाम नेता क्षुब्ध भी हैं और कह रहे हैं कि इन कार्रवाइयों से पार्टी को राजनीतिक नुकसान हो रहा है। क्या मुलायम सिंह के इन वचनों का निहितार्थ यह है कि इसे लेकर मोदी और योगी में विचारों का अंतर है। वैसे भी विश्लेषकों का एक तबका यह प्रचाारित कर रहा है कि योगी की अड़ियल और प्रतिशोधात्मक कदमों से प्रधानमंत्री मोदी भी सहमत नहीं है और वे चाहते हैं कि योगी अपनी शैली को बदलें। पता नहीं इन बातों में कितनी सच्चाई है लेकिन मुलायम सिंह ने आजम पर कार्रवाई के प्रश्न पर भाजपा में आंतरिक मतभेदों का शिगूफा इन्हीं चर्चाओं के सहारे छोड़ा है।
हालांकि आजम विरोधी मुहिम की जिम्मेदारी अधिकारियों के मत्थे मढ़कर मुलायम सिंह ने योगी से मिलकर इसका रास्ता निकालने की गुंजाइश बरकरार रखनी चाही है। इसीलिए अखिलेश की बजाय मुलायम सिंह ने स्वयं इस पर पत्रकार वार्ता करने का फैसला लिया ताकि पार्टी की सरकार से सीधी टक्कर को टाला जा सके। उन्हें लगता है कि जिस तरह योगी उनका अदब करते हैं उसके मद्देनजर वे उनकी पत्रकार वार्ता से बहुत उत्तेजित नहीं होंगे। उन्होंने एक बार पत्रकार वार्ता में आजम के खिलाफ हो रही कार्रवाइयों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने पर विचार करने का इशारा कर दिया था लेकिन बाद में योगी के मन में इसकी वजह से दुराव आने की आशंका भांपते ही वे पलट गये और कहने लगे कि अभी वे प्रधानमंत्री से मिलने की बात नहीं कर रहे हैं।
मुलायम सिंह ने बुधवार से ही समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं से आजम पर हो रहे जुल्मों का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरने की अपील की है जिसे लेकर राज्य सरकार निश्चित रूप से चैकन्नी हो गई होगी। हालांकि केन्द्र और राज्य की भाजपा सरकारों ने विरोध का मंसूबा रखने वालों के हौसलें तोड़ दिये हैं लेकिन समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में अभी कहीं न कहीं जोश की चिंगारियां बाकी हैं। इस कारण समाजवादी पार्टी के आंदोलनों का जो इतिहास रहा है उसके मद्देनजर नेता जी का फरमान जारी होते ही सपाई तेवर दिखा सकते हैं। इस मामले में अगर वे सरकार पर जरा भी चढ़ लिये तो भाजपा के लिए मुश्किल हो जायेगी। अन्य पार्टियां जो बेबसी के बांध में कैद हो गई हैं उनमें भी इसे तोड़ने का उफान पैदा हो सकता है। लोगों के असंतोष के बारूद में आग लग सकती है जो सरकार की हनक को काफी नुकसान पहुंचा सकती है। देखना है कि इसके मद्देनजर राज्य सरकार कानून व्यवस्था की एजेंसियों को क्या अलर्ट जारी करती है।
अनुमान था कि मुलायम सिंह जब इतने दिनों बाद प्रेस वार्ता करने के लिए आगे आये हैं तो वे बहुत कुछ बोलेंगे। शिवपाल को लेकर कुछ कहेंगे और साथ-साथ बसपा पर भी उनके गुस्से का नजला टूटेगा।
मुलायम सिंह पहले ही बसपा सुप्रीमों मायावती को अविश्वसनीय बताकर उनके साथ गठबंधन का विरोध कर रहे थे लेकिन जब गठबंधन हो गया तो मैनपुरी में संयुक्त चुनावी जनसभा में उन्होंने मायावती की तारीफ की और पार्टी के लोगों से कहा कि वे कभी मायावती के सम्मान को चोट पहुंचाने वाला काम न करें।
सारे लोग कर रहे थे कि मुलायम सिंह के इस भाषण ने सपा बसपा के संबंधों का नया इतिहास रचा है जो अटूट रहेगा। पर चुनाव परिणाम अनुकूल न आते ही मायावती ने पूरी निष्ठुरता के साथ न केवल सपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया बल्कि उसे जलील करने में भी कसर नहीं छोड़ी। स्वाभाविक है कि इससे मुलायम सिंह का मायावती को लेकर गुस्सा उभर आया होगा। फिर भी उन्होंने उम्मीदों के विपरीत इस पत्रकार वार्ता में मायावती को लेकर भी किसी तरह की भड़ास निकालने से परहेज रखा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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