न्यूज डेस्क
समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इन दिनों अपने राजनैतिक कॅरियर के बहुत चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। पिछले तीन चुनाव में हार, गठबंधन की राजनीति में विफलता और पार्टी-परिवार के विघटन के बाद अखिलेश की राजनैतिक कुशलता की कलई खुल गई है।
दरअसल, यूपी में समाजवादी पार्टी ने मुलायम के नेतृत्व में 2012 का चुनाव लड़ा था और उस चुनाव प्रचंड जीत भी हासिल की थी। नेता जी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश को अपनी राजनैतिक विरासत सौंपते हुए प्रदेश का मुखिया बना दिया था, जिसके बाद हुए तीन चुनाव 2014, 2017 और 2019 में पार्टी को बुरी हार झेलनी पड़ी ये सभी चुनाव सपा ने अखिलेश के नेतृत्व में लड़ा।
इस दौरान समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलायम को हटा कर अखिलेश पार्टी के प्रमुख बन गए लेकिन अभी भी वह मुलायम सिंह जैसी भूमिका में नहीं आ पाये हैं, जबकि जनता उनको मुलायम सिंह की छवि में ही देखना चाहती है।
राजनैतिक विशेषज्ञों की माने तो अखिलेश पार्टी के प्रमुख तो बन गए लेकिन वो कार्यकर्ताओं के नेता जी नहीं बन पाए हैं। पार्टी कार्यकर्ता और जनता अखिलेश में मुलायम सिंह यादव की छवि देखना चाहते हैं लेकिन उन्हें अखिलेश और मुलायम में फर्क दिख रहा है, इसीलिए वे अखिलेश को अपना पूरा समर्थन नहीं दे पा रहे हैं या जिस तरह मुलायम के लिए काम करते थे वैसा अखिलेश के नेतृत्व में नहीं कर पा रहे हैं।
हालांकि, इस बात का एहसास होने के बाद अखिलेश यादव ने पार्टी मुलायम नीति के तहत चलाने का फैसला किया है। अखिलेश पार्टी में अलग-थलग हो चुके वरिष्ठ नेताओं को फिर से मुख्य धारा में लाने के लिए कोशिश कर रहे हैं साथ ही सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर विरोध प्रदर्शन और धरने की रणनीति पर काम करने प्लान बनाया है। ये सब इसलिए किया जा रहा है कि ताकि जनता उनमें मुलायम सिंह यादव की छवि निहार सके।
लेकिन समाजवादी पार्टी के हाल फिलहाल की गतिविधियों को गौर से देखा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि अखिलेश यादव अभी भी राजनैतिक फैसले लेने में परिपक्व नजर आ रहे हैं। ताजा मामला उन्नाव रेप कांड का ही है। रेप पीड़िता के एक्सीडेंट मामले में समाजवादी पार्टी उग्र प्रदर्शन और मुआवजे तक ही सिमट गई है। वहीं, इससे पहले सोनभद्र मामले में वह सियासी माइलेज लेने में पीछे छूट गई थी।
उत्तर प्रदेश में अपनी साख बचाने के साथ योगी सरकार को घेरने के लिए अखिलेश के पास सोनभद्र-उन्नाव जैसे मौके थे, लेकिन पार्टी उन मौकों को भुना नहीं पाए। अब समाजवादी पार्टी ने वरिष्ठ नेता आजम खान के लिए अपनी लड़ाई शुरू कर दी है।
उन्नाव रेप पीड़िता जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रही है, लेकिन उसे इंसाफ मिलता नहीं दिख रहा। क्योंकि इस मामले का कथित आरोपी बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर पार्टी में बना हुआ है। वहीं, विपक्ष का दबाव भी अब तक बेअसर रहा है।
हालांकि, सपा प्रमुख अखिलेश यादव पीड़िता से मिलने लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर पहुंचे थे। उन्होंने पीड़िता के परिवार को 10 लाख रु. और घायल वकील के परिवार को 5 लाख रु. की आर्थिक सहायता मुहैया कराई। लेकिन पार्टी अब जौहर यूनिवर्सिटी मामले में फंसे आजम खान के लिए लड़ाई शुरू कर चुकी है। सपा कार्यकर्ताओं ने जिस तरह से आजम मामले में तत्परता दिखाई है अगर वैसा ही उन्नाव मामले में योगी सरकार को घेरने में दिखाती तो शायद जनता के बीच अखिलेश यादव को लेकर विश्वास बढ़ता।