जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। कहते हैं कि जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में होती है। ये सच भी है और जिसका बुलावा आयेंगे उसको जाना होगा। ये बिल्लकुल सच है। अरसे से जेल में बंद उत्तर प्रदेश का कुख्यात माफिया डॉन मुख्तार अंसारी का बुलावा शायद गुरुवार को ईश्वर की तरफ से आया और गुरुवार (28 मार्च) की रात बांदा मेडिकल कॉलेज में दिल का दौरा पडऩे से वो हमेशा-हमेशा के लिए मौत की नींद सो गया।
गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी के खिलाफ 65 से ज्यादा मामले दर्ज हैं। ये वही मुख्तार है जिसका नाम से हर कोई डरता था। अगर खौफ का दूसरा नाम मुख्तार अंसारी कहा जाये तो गलत नहीं होगा।
यूपी में उसके नाम की दहशत का आलम ये रहा है कि लोग अपना घर-कारोबर सब छोडक़र भागने पर मजबूर हो जाते हैं लेकिन अब उसकी दहशता उसकी मौत के बाद हमेशा के लिए खत्म हो गई।
मुख्तार के नाम का मतलब
मुख्तार अपने नाम के हिसाब से काम करता था। उर्दू में उसके नाम का मतलब होता है अधिकार प्राप्त हो। अगर और सरल समझना है तो अतीत में बादशाहत के जमाने में लगान वसूली या क्षेत्र में किसी भी गतिविधि पर फैसला लेने के लिए जिन लोगों को अधिकृत किया जाता था।
उन्हें मुख्तार कहा जाता था। 30 जून 1963 को यूपी के यूसुफपुर में उसका जन्म हुआ तो उसके मां-बाप ने उसका नाम मुख्तार रखा लेकिन तब किसी को नहीं पता था कि आगे चलकर इसी मुख्तार नाम की दहशत पूरे यूपी में देखने को मिलेगी।
जब अपराध की दुनिया में कदम रखा
मुख्तार जब सिर्फ 18 साल का था तब उसने जुर्म की दुनिया में कदम रख लिया था और 80 के दशक में उसने अपना पैर जमाना शुरू कर दिया।
इसी दौरान उसने अपराध की दुनिया में अपना अलग मुकाम बनाने के लिए उसने अपने साथियों को जमा किया और कई खौफनाक हत्याओं के माध्यम से अपना दबदबा पूरे इलाके में कायम कर लिया।
जुर्म की दुनिया में उसका दबदबा देखने को मिला और इसी के बल पर 1996 में पहली बार विधायक बनकर राजनीति के अपराधीकरण का मुख्तार बनकर जीता रहा।
फैमिली हिस्ट्री पर एक नजर
मुख्तार अंसारी के फैमिली हिस्ट्री की बात करें तो उसका परिवार राजनीतिक घराने से संबंध रखता था और उसके दादा मुख्तार अहमद अंसारी ने महात्मा गांधी के साथ देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था।
इसके साथ ही 1926-27 के वक्त वो कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे. मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने 1947 में देश के लिए शहादत दी और मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजे गए। मुख्तार के पिता सुबहानउल्लाह का गाजीपुर में खानदानी रुतबा था।
अपराध की दुनिया से राजनीतिक सफर
मुख्तार अंसारी ने अपराध की दुनिया से होता हुआ राजनीति में धमाकेदार एंट्री करता है और 80 के दशक में अपने अपराधिक गुरु साधु और मकनू सिंह के कहने पर रंजीत सिंह की फिल्मी स्टाइल में दो दीवारों की सुराख से गोली मारकर हत्या के बाद मुख्तार के हौसले काफी बुलंद हो गए।
और फिर उसकी दहशत हर तरफ देखने को मिली।कोयला खनन, रेलवे निर्माण और अन्य क्षेत्रों से जुड़े कांट्रेक्ट परसिर्फ सिर्फ मुख्तार का कंट्रोल होता था। उसकी तूती बोलती थी।
1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधायक बना। इतना ही नहीं बीजेपी छोडक़र हर पार्टी में उसको हाथों-हाथ लिया गया। पहली बार 1996 में बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद अंसारी ने मऊ सीट से 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी जीत हासिल की. आखिरी 3 बार के चुनाव जेल में रहते हुए जीते। कृष्णानंद हत्याकांड और नंदकिशोर रूंगटा हत्याकांड में उसका नाम आया और फिर वो जेल में बंद हो गया।