शबाहत हुसैन विजेता
लॉक डाउन के दौर में सबसे बड़ा संकट पेट भरने का है। जिनके पास पैसा है वह सामान खरीदने की जद्दोजहद में हैं और जिनके पास पैसा भी नहीं है वह किसी की मदद के इंतजार में हैं। देश भर की सरकारों की प्राथमिक कोशिश यही है कि कोई भूखा न सोने पाए।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद सामुदायिक रसोई के निरीक्षण और खाने की गुणवत्ता जांचने में लगे हैं। आम आदमी तक खाना पहुंचाने की जो कोशिशें हो रही हैं वह सीएम योगी की कोशिशों में पलीता लगाने वाली हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जानकारी में क्या यह बात है कि पुराने लखनऊ में गरीबों को खाना पहुंचाने के लिए नगर निगम की कूड़ा गाड़ी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
पुराने लखनऊ की तंग गलियों में आज दोपहर कूड़ा ढोने वाली गाड़ी में खाने के पैकेट लेकर नगर निगम की टीम पहुंची। कुछ लोगों ने दबी ज़बान में जब इस पर एतराज जताया तो नगर निगम कर्मी ने कहा कि गाड़ी को धो दिया तो वह साफ हो गई। कूड़ा कोई उसमे चिपक तो गया नहीं है।
सीएम योगी सामुदायिक किचेन में सफाई व्यवस्था ही जांचने जा रहे हैं। खाना पैक करने वालों के हाथ में ग्लब्ज़ और सर पर टोपी चेक कर रहे हैं। पैक किये गए डिब्बे खोलकर भी वह देख लेते हैं लेकिन क्या उन्हें पता है कि खाना बांटने के लिए नगर निगम के पास पर्याप्त वाहन नहीं हैं।
दावा है कि यूपी सरकार 60 लाख पैकेट रोज़ बांट रही है। यह 60 लाख पैकेट बांटने की प्रक्रिया क्या है इस पर नज़र रखने के लिए कोई टीम नहीं है शायद।
पुराने शहर में कूड़ा गाड़ी से खाना बांटने आये नगर निगम कर्मी के पास 450 लोगों की लिस्ट थी लेकिन वह छोला-चावल के 428 पैकेट लेकर बांटने आया था। उसने कुछ पैकेट बांटे भी लेकिन कूड़ा गाड़ी को लेकर सवाल उठा तो वह गाड़ी लेकर वापस चला गया।
यह कोरोना जैसी महामारी का दौर है। इस बीमारी से निबटने के लिए राज्य सरकार रात-दिन एक किये है। एक तरफ लोगों को बीमारी से बचाने की कोशिशें हैं तो दूसरी तरफ लोगों को भूख से निजात दिलाने की कोशिश भी है।
लोगों का पेट भरने के लिए सरकार ही नहीं तमाम स्वयंसेवी संगठन भी रात-दिन एक किये हुए हैं। आपदा के समय मे खाद्य सामग्री वितरण में जो बड़ा गोलमाल हो रहा है, सरकार को उस पर भी नज़र रखने की ज़रूरत है।
14 अप्रैल को बहराइच में एक स्वयंसेवी संगठन ने जिलाधिकारी से सम्पर्क किया कि वह लोग शहर की मलिन बस्तियों में खाना वितरित करना चाहते हैं।
अगर जिलाधिकारी साथ रहें तो टीम का हौंसला बढ़ेगा। जिलाधिकारी कार्यालय से कहा गया कि खाने के पैकेट कलेक्ट्रेट में लाकर सौंप दें। प्रशासन खुद मलिन बस्तियों में वितरित करा देगा। संगठन के लोग डीएम साहब के साथ तस्वीर खिंचाना चाहते हैं तो कलेक्ट्रेट में ही खिंचवा देंगे।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एक वरिष्ठ पत्रकार ने कल बताया था कि राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक गल्ला व्यापारी को फोन कर 80 लाख रुपये की खाद्य सामग्री का बिल बनाने को कहा था।
व्यापारी ने पूछा कि सामान कहाँ पहुंचाना है तो अधिकारी ने कहा कि सामान कहीं नहीं पहुंचाना। तुम बिल बनाकर ले आओ। जितना जीएसटी कटेगा वह मुझसे ले जाओ। व्यापारी ने मना कर दिया। अधिकारी ने कोरोना संकट निबटने के बाद व्यापारी से बात करने को कहा है।
इस मामले में कितना सच है यह तो जांच का मुद्दा है लेकिन जिस तरह से पूरे सूबे में स्वयंसेवी संस्थाएं, व्यापारी और कुछ पत्रकार संगठन खाना वितरण का कार्यक्रम चला रहे हैं उसमें यह सवाल बड़ा अहम हो जाता है कि सरकार जो 60 लाख लोगों का खाना बनवा रही है वह कहां जा रहा है।
आपदा के समय में सरकार के साथ-साथ पब्लिक का सहयोग ज़रूरी है। सबको साथ मिलकर यह जंग लड़नी है लेकिन सरकार अगर ईमानदार कोशिश कर रही है तो उन कोशिशों में पलीता कौन लगा रहा है उसकी पहचान किया जाना भी ज़रूरी है।