पॉलिटिकल डेस्क।
इस बार के लोकसभा चुनाव में कई निर्दलीय प्रत्यशियों ने अपनी किस्मत आजमाई लेकिन मोदी लहर में पार पाना आसान नहीं था। वहीं इसके ठीक उलट चार प्रत्यशियों ने जीत दर्ज कर अहसास कराया है कि चुनाव जीतने के लिए कोई करिश्माई चेहरा या मैनेजमेंट जरुरी नहीं बल्कि अपने काम और व्यवहार के दम पर भी चुनाव जीता जा सकता है।
मोहन एस डेलकर
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भाजपा प्रत्याशी नाटुभाई पटेल से दो बार मात खा चुके मोहन एस डेलकर ने तीसरी बार में निर्दलीय हो कर विजय प्राप्त की। नाटुभाई पटेल ने उन्हें तब शिकस्त दी जब डेलकर कांग्रेस में थे, लेकिन 2019 में ही डेलकर ने कांग्रेस से किनारा कर जीत दर्ज की, इसके पहले डेलकर दादरा औऱ नगर हवेली सीट का छह बार नेतृत्व कर चुके है।
नवनीत रवि राणा
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महाराष्ट्र की अमरावती सीट से मैदान में आई नवनीत रवि राणा ने शिवसेना के अडसुल आनंद राव विठोबा को हरा कर संसद में अपनी इंट्री कराई है।
आपकों बता दें कि नवनीत रवि राणा पूर्व तेलगु अभिनेत्री है, उन्होंने इसके पहले अडसुल के खिलाफ ही चुनाव लड़ा था जिसमें वो तकरीबन 1।50 लाख वोटों से हार गई थी। उन्होंने अपनी इस जीत को अमरावती की जनता का फ़ैसला बताया।
सुमलता अंबरीश
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कर्नाटक की मांड्या सीट से जीत दर्ज कर संसद में इंट्री में पायी सुमलता अमरीश ने मुख्यमंत्री मंत्री के बेटे निखिल को मात दी, उन्होंने क़रीब 1।25 वोटों से मुख्यमंत्री के बेटे को मात दी। सुमलता ने 250 से अधिक फिल्मों में काम किया है इनके पति अंबरीश भी लोकप्रिय स्टार थे।
सुमलता के सामने तगड़ी चुनौती थी लेकिन उससे पार पाते हुये उन्होंने इतिहास रच डाला क्योंकि अभी तक 1951 से केवल दो निर्दलीय प्रत्याशी ही जीत दर्ज कर पाये है।
नबा कुमार सरानिया
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असम की कोकराझार सीट एसटी के लिये रिजर्व सीट है। नबा कुमार इसके पहले भी 2014 में इसी सीट से जीत दर्ज कर संसद पहुँच चुके है, उन्होंने बोड़ोलैंड प्रादेशिक परिषद की प्रमिता कुमारी ब्रम्हा को हरा जीत दर्ज की। नबा कुमार पहले ऐसे गैर-बोडो नेता है जिन्होंने कोकराझार से चुनाव जीता है।