Wednesday - 30 October 2024 - 9:19 AM

एमपी में चुनावी मुद्दा क्‍यों नहीं बना ‘संविधान का उल्लंघन’

आराधना भार्गव

वर्तमान में देश में चारों तरफ लोकतंत्र पर हमला होता दिखाई दे रहा है। इसे किस तरह रोका जाए, यह हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है और उस चुनौती को हम स्वीकार करते है।

वर्तमान में मध्यप्रदेश में उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है, कांग्रेस के विधायकों को मंत्री पद का लालच देकर, कांग्रेस की सरकार को भाजपा द्वारा गिराया गया, उसके पश्चात् भी कांग्रेस के पूरे चुनाव अधियान में इस तरह का मुद्दा जनता के बीच नही पहुँचाया जा रहा है।

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भारत के संविधान की 10वीं अनुसूची 2 में दलबदल के आधार पर निरर्हता का उल्लेख किया गया है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि किसी राजनीतिक दल का सदस्य सदन का सदस्य होने के लिए उस दशा में निरर्हित होगा जिसमें उसने ऐसे राजनीतिक दल की अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी हो।

स्पष्ट है कि जिन विधायकों ने कांग्रेस की सदस्यता छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली हो वे उस सदन के विधायक नही रहे। जो विधायक नही रहे वो मंत्री कैसे बन गए? संविधान के अनुच्छेद 164 को तोड़ मरोड़ कर शिवराज सिंह सरकार ने जो लोग चुने हुए नही है उन्हें मंत्री बना दिया।

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अनुच्छेद 164 में उल्लेख किया गया है कि विशेष परिस्थिति में ऐसे लोग चुनकर आ सकते है,

  1. जो व्यक्ति विशेष गुण रखता है।
  2. परिस्थितियाँ विशेष हो।

वे 14 विधायक दल बदल कानून और भारत के संविधान की अनुसूची 10 के मुताबिक अयोग्य घोषित किये गये, उनके पास कौन से विशेष गुण या योग्यता थी या ऐसी कौन सी विषम परिस्थिति प्रदेश में निर्मित हो गई थी? जिसके कारण अयोग्य व्यक्तियों को शिवराजसिंह चैहान ने अपने मंत्री मण्डल में शामिल किया।

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अनुच्छेद 164 (1 क) में उल्लेख किया गया है कि मंत्री परिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नही होगी। शिवराजसिंग सरकार ने लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन किया।

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स्पष्ट है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार को गिराने के लिए शिवराज सिंह चैहान ने विधायकों को मंत्री पद का लालच दिया, इसलिए अयोग्य हुए लोगों को मंत्री पद से नवाजा गया। शिवराज सिंह चैहान अगर चहाते तो भाजपा के चुने हुए विधायकों को मंत्री बनाकर मध्यप्रदेश में आराम से अपनी सरकार चला सकते थे।

अयोग्य हुए विधायकों को 6 महिने के अन्दर चुनाव लड़ने की आवश्यकता नही थी, अयोग्य व्यक्तियों को मंत्रीमण्डल में शामिल करने के कारण मध्यप्रदेश को कोविड-19 महामारी के दौरान मध्यवर्ती चुनाव के खर्चे से बचा सकते थे। अयोग्य व्यक्तियों को मंत्री बनाने का खामियाना मध्यप्रदेश की जनता आर्थिक संकट तथा कोविड-19 महामारी के भयंकर रूप से फैलने को झेल रही हैं।

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शिवराज सिंह चैहान ने भारत के संविधान का उल्लंघन करके मंत्री परिषद का गठन किया। संविधान के अनुच्छेद 164 में उल्लेख किया गया है कि राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या 12 से कम नही होगी किन्तु खरीद फरोक्त करने के पश्चात मध्यप्रदेश की सरकार को गिराने के बाद जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तब एक माह तक वे अकेले मंत्री रहे।

अप्रैल माह में 4 अयोग्य व्यक्तियों को मंत्री पद की शपथ दिलाई और जुलाई माह में 34 लोगों को मंत्री पद से नवाजा। उन्होंने अनुच्छेद 164 में उल्लेख किये कम से कम 12 मंत्री होने का भी उल्लंघन किया और ज्यादा से ज्यादा 15 प्रतिशत से ज्यादा मंत्री ना होने का उल्लंघन किया, जो सरकार लालच देकर मंत्री बना सकती है वह सरकार भारत के संविधान के अनुसार चलेगी ऐसा दिखाई नही देता।

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सरकार की स्थापना जनकल्याण के कार्य करने के लिए की गई है। खरीद फरोक्त के आधार पर चुने हुए विधायक और मंत्री सत्ता में बैठने के बाद जल, जंगल, जमीन की लूट, महिला हिंसा जैसे अपराधों को बढ़ावा देंगें।

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जो सरकार खुलेआम भारत के संविधान का उल्लंघन कर रही है उसके खिलाफ आवाज उठाना हम सब समाजवादियों का दायित्व है और हम अपने दायित्व का निर्वाहन अदालत में चुनौती देकर मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग कर रहे है। ताकि मध्यप्रदेश की जनता आर्थिक नुकसानी तथा कोविड-19 महामारी के फैलाव से बच सके।

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