Monday - 28 October 2024 - 6:44 PM

यह टास्क फोर्स है शिवराज का आपातकालीन मंत्रिमंडल

कृष्णमोहन झा

शिवराज सिंह चौहान ने लगभग तीन सप्ताह पूर्व जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब वे जिस उत्साह और आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई दे रहे थे उस पर भले ही अब प्रश्न चिन्ह लगते दिखाई दे रहे हैं। परंतु मुख्यमंत्री चौहान का दावा है कि मध्यप्रदेश में लाक डाउन को सुनियोजित तरीके और पूरी सख्ती के साथ लागू करने से ही स्थिति नियंत्रण में आ सकती है।

अगर ऐसा नहीं होता तो मध्य प्रदेश में स्थिति गंभीर हो सकती थी। तीन सप्ताहों में प्रदेश में कोरोना वायरस के संक्रमण को बढने से रोकने के लिए मुख्यमंत्री ने अपनी ओर से भरसक प्रयास करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और विकसित निरंतर प्रदेश की जनता को यह विश्वास दिलाते रहे कि उनके एकल नेतृत्व में प्रदेश में कोरोना के विरुद्ध जो लडाई लड़ी जा रही है, उसमें कोरोनावायरस को हारना ही होगा।

इन तीन सप्ताहों के दौरान प्रदेश में इस वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए किए गए भरसक प्रयासों की बदौलत ही प्रदेश के वे तीन जिले रेड जोन में और 21 जिले आरेंज जोन में हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने लाक डाउन बढ़ाने के बारे में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ 11 अप्रैल को वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के जरिए जो चर्चा की थी उसमें शिवराज सिंह चौहान ने भी लाक डाउन बढ़ाने का जो सुझाव दिया था।

उसमें प्रदेश की सारी जनता उनके साथ है। परंतु अब यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या मुख्यमंत्री चौहान का वहआत्मविश्वास अभी भी बरकरार है जो उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते वक्त प्रदर्शित किया था। मुख्यमंत्री ने उस समय कहा था कि वे प्रदेश में कोरोना वायरस के संक्रमण पर नियंत्रण पाने के बाद अप्रैल के दूसरे सप्ताह में अपना मंत्रिमंडल गठित करेंगे। परंतु अगर वे संक्रमण पर नियंत्रण के बाद ही मंत्रिमंडल का गठन करने के फैसले पर अडिग हैं तो फिर और इन्तजार करना पड़ेगा।

क्योंकि आज की तारीख़ में तो किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि उसके राज्य में कोरोना वायरसके संक्रमण को कब तक पूरी तरह नियंत्रित कर लिया जाएगा। शायद इसीलिए उन्होंने मंत्रिमंडल की कवायद में समय जाया करने का विचार फिलहाल त्याग दिया है।

मुख्यमंत्री के इस फैसले से सत्ताधारी दल के उन विधायकों का हताश होना स्वाभाविक है जो यह आस लगाए बैठे थे कि अप्रैल के मध्य तक ऱाज्य मंत्रिमंडल का गठन होने पर उन्हें मुख्यमंत्री की टीम का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिलना तय है।

परंतु मुख्यमंत्री चौहान ने केन्द्र के निर्देश पर एक टास्क फोर्स का गठन कर लिया और इसमें केवल अति महत्व पूर्ण नेताओं को ही स्थान मिल सका है। इसे दूसरे शब्दों में शिवराजसिंह चौहान का आपात कालीन मंत्रिमंडल भी कहा जा सकता है। मुख्यमंत्री ने बड़ी चतुराई से इस टास्क फोर्स में सत्ता और संगठन, दोनों के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है।

इस सर्वशक्तिमान टास्क फोर्स में संगठन से जहाँ प्रदेशअध्यक्ष वी डी शर्मा, राष्टीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत को शामिल किया गया है। वहीं दूसरी ओर उपमुख्यमंत्री पद के दावेदार नरोत्तम मिश्र के अलावा पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार के दौरान विपक्ष के नेता रहे गोपाल भार्गव, सिंधिया गुट के विधायक तुलसी सिलवट, पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ल को सत्ता पक्ष से स्थान मिला है।

गौरतलब है कि इन्दौर इस समय कोरोना संक्रमण के मामले में प्रदेश में सबसे ऊपर है। इसलिए वहाँ से पार्टी के सबसे कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के अलावा और किसी नाम पर विचार करने का तो सवाल ही नहीं उठता था।

गोपाल भार्गव की विपक्ष के नेता होने के अलावा शिवराज की पिछली सरकार में भी शक्तिशाली मंत्री की छवि रही है इसलिए वे भी टास्क फोर्स के महत्वपूर्ण सदस्य होंगे।

प्रदेश में सत्ता परिवर्तन में महत्व पूर्ण भूमिका निभाने वाले नरोत्तम मिश्र को शिवराज सिंह के नए मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री पद मिलना तय माना जा रहा है। राजेन्द्र शुक्ल विन्ध्यक्षेत्र से आते हैं। तुलसी सिलावट की ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ निकटता होने के कारण उन्हें टास्क फोर्स में शामिल करने की अनिवार्यता को समझाजा सकता है। उन्हें टास्क फोर्स में सिंधिया गुट का प्रतिनिधि माना जा सकता है।

ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्य मंत्री ने इस टास्क फोर्स का गठन करते समय क्षेत्रीय संतुलन का भी ध्यान रखा है। प्रदेश में अधीरता से शिवराज मंत्रिमंडल के गठन की प्रतीक्षा की जा रही थी। परन्तु मुख्यमंत्री ने मंत्रिमंडलगठन के बजाय सर्व शक्तिमान टास्क फोर्स का गठन कर यह संदेश दे दिया है कि वे संकट के समय में मंत्रिमंडल को ज्यादा उपयुक्त मानते हैं।

इस नाजुक घड़ी में अब इस वाद विवाद को जन्म देना उचित नहीं होगा कि शिवराज सिंह चौहान अगर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय ही टास्क फोर्स का गठन कर लेते तो प्रदेश में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामलों की बेहतर तरीके से मानीटरिंग की जा सकती थी।

अब आवश्यकता इस बात की है किमुख्यमंत्री नवगठित टास्क फोर्स के सदस्यों के बीच तत्काल ही काम का बटवारा करें ताकि इस फोर्स के सारे सदस्य शीघ्रतिशीघ्र अपनी अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन में जुट सकें।

मुख्यमंत्री चौहान और उनकी ऩवगठित टास्क फोर्स के सामने इस समय जो कठिन चुनौतियां हैं और उनसे सफलतापूर्वक निपटना भी आसान टास्क नहीं है परंतु कुशल रणनीति और बेहतर समन्वय से कठिन चुनौतियों को। अवश्य जीता जा सकता है। मुख्यमंत्री चौहान को अब यह ध्यान अवश्य रखना होगा किस टास्क फोर्स में शक्ति के अलग अलग केन्द्र न बनने पाएं।

यहाँ क्या इस हकीकत से इंकार किया जा सकता है कि इस फोर्स में शामिल सभी सदस्य अपनी विशिष्ट पहचान और हस्ती रखते हैं। यह भी उत्सुकता का विषय है कि कोरोना वायरसके प्रकोप पर नियंत्रण पाने में सफल होने के बाद क्या इस टास्क फोर्स को भंग कर दिया जाएगा अथवा किसी नए स्वरूप में इसका अस्तित्व बना रहेगा?

(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक सलाहकार है)

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