शबाहत हुसैन विजेता
लखनऊ. मोती लाल वोरा भारतीय राजनीति का ऐसा चेहरा जिनकी पूरी ज़िन्दगी कांग्रेस के लिए समर्पित रही..लेकिन सभी राजनीतिक दलों में उनकी इज्जत थी. उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह राजनेताओं के बीच भी लोकप्रिय थे और पत्रकारों के बीच भी खूब पसंद किये जाते थे.
पत्रकारिता से आये थे राजनीति में
मोतीलाल वोरा पत्रकारिता से राजनीति में आये थे, इसी वजह से पत्रकार किसी भी मुद्दे पर उन्हें बोल्ड नहीं कर पाए. उनके पास हर सवाल का जवाब रहता था. प्रेस कांफ्रेंस के बाद वह पत्रकारों के बीच उसी तरह से घुलमिल जाते थे जैसे कि पत्रकारिता के जीवन को छोड़ ही न पा रहे हों.
वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे लेकिन सच पूछा जाए तो वह देश के नेता थे. मोती लाल वोरा राजस्थान में पैदा हुए. छत्तीसगढ़ से सांसद रहे. मध्य प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे. उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे. केन्द्रीय मंत्रीमंडल में उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय भी कुशलता से संभाला और नागरिक उड्डयन मंत्रालय भी अच्छी तरह से संचालित किया.
राजभवन को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने दिया
अपने जन्मदिन के ठीक अगले दिन उन्होंने दिल्ली के अस्पताल में आख़िरी सांस की. उत्तर प्रदेश में राज्यपाल रहने के दौरान राष्ट्रपति शासन के दौरान राजभवन आने वाले विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग उनसे संतुष्ट होकर लौटते थे. उन्होंने राजभवन को कभी राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने दिया.
राज्यपाल का कार्यकाल पूरा करने के बाद वह दिल्ली लौटे तो फिर से कांग्रेस पार्टी में रम गए. मोतीलाल वोरा के क्योंकि राजीव गांधी से अच्छे रिश्ते थे इसलिए वह राहुल गांधी से काफी स्नेह करते थे. राहुल भी उनका बहुत सम्मान करते थे.
एक-एक रुपये का रखते थे हिसाब
कांग्रेस ने मोती लाल वोरा को कोषाध्यक्ष की भूमिका सौंपी तो इस भूमिका को उन्होंने बहुत शानदार तरीके से निभाया. पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व गवर्नर होने के बावजूद उनके पास पार्टी के एक-एक रुपये का हिसाब रहता था. वह कंजूस कोषाध्यक्ष माने जाते थे. सब लोग जानते थे कि खजाने की चाबी उनके पास रहते कोई एक रुपये की भी फिजूलखर्ची नहीं कर सकता था.
मोती लाल वोरा ने जब अपनी आँख मूंदी वह 93 साल के थे. अपनी ज़िन्दगी की हर पारी को उन्होंने बहुत अच्छी तरह से खेला. इस उम्र में भी वह बिस्तर पर नहीं थे. वो लगातार एक्टिव रहे. वह बड़े और ज़िम्मेदार पदों पर रहे लेकिन पद की छाया कभी उन पर हावी नहीं हो पाई. राजभवन में रहने के दौरान भी उनसे जिसने भी मिलना चाहा उन तक पहुँच ही गया.
गांधी परिवार से रिश्ता बराबरी का था
गवर्नर से रिटायर होकर वह दिल्ली गए तो उन्होंने यह नियम बना लिया था कि हर दिन कांग्रेस के दफ्तर जाना है. अकबर रोड स्थित कांग्रेस दफ्तर में भी वोरा जी से कोई भी कभी भी मुलाक़ात कर सकता था. ज़रूरतमंद की वह हरसंभव मदद भी करते थे. उन्हें गांधी परिवार का वफादार कहा जाता था लेकिन हकीकत यह है कि रिश्ता दोनों तरफ से बराबरी का था. गांधी परिवार भी उनकी खूब इज्जत करता था.
बात 1985 की है. मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह के नेतृत्व में बनने वाली सरकार में मोतीलाल वोरा मंत्री बनना चाहते थे. इस बारे में उन्होंने अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह से बात भी की. लेकिन इसी बीच प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह से कहा कि मध्य प्रदेश में अपनी पसंद के आदमी का नाम बताकर आप पंजाब जाओ. अर्जुन सिंह ने मोती लाल वोरा का नाम लिया. राजीव गांधी ने कहा उन्हें बुलाओ.
अजय सिंह मोती लाल वोरा को विशेष विमान से दिल्ली लेकर गए. एयरपोर्ट पर राजीव गांधी से मुलाकात कराई. राजीव गांधी के साथ अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह थे. राजीव गांधी ने उन्हें देखते ही कहा कि आप मध्य प्रदेश के सीएम हैं. जाइये और काम संभालिये. दिग्विजय सिंह को मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. वोरा कैबिनेट में सारे लोग अर्जुन सिंह के थे. तीन साल बाद अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के सीएम बने तो वोरा स्वास्थ्य मंत्री के रूप में दिल्ली चले गए.
…लेकिन अहमद पटेल पहले ही चले गए
मोती लाल वोरा लम्बे समय तक कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे. उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए राहुल गांधी ने यह ज़िम्मेदारी अहमद पटेल को दे दी थी लेकिन अहमद पटेल उनसे पहले ही दुनिया छोड़कर चले गए. वोरा जी जीवट के व्यक्ति थे. उन्हें कोरोना संक्रमण भी हुआ था लेकिन उसे हराकर वह अस्पताल से अपने घर लौट आये थे. कल उन्होंने अपना 93 वां जन्मदिन भी मनाया.
संक्रमण काल से गुज़र रही कांग्रेस को संजीवनी देने के लिए वह लगातार कोशिश कर रहे थे लेकिन अचानक उनका सफ़र पूरा हो गया. उन्हें दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ उन्होंने आख़री सांस ली. जिस दौर में राजनीति सत्ता के लिए दल से बड़ी होती दिख रही है उस दौर में एक ही पार्टी के साथ जीवन बिता देने का जो फन मोती लाल वोरा ने दिखाया है उसकी वजह से राजनीति में उनका नाम हमेशा इज्जत से लिया जायेगा.
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