जुबिली न्यूज़ डेस्क
दिल्ली की हवा में कापर या तांबे के कण अगर मुरादाबाद से पहुँच रहे हैं तो लेड के कण नेपाल के बैटरी कारखानों से उड़ कर आ रहे हैं. ऐसे में सर्दी के मौसम में हर साल दिल्ली एनसीआर की हवा में प्रदूषण का जहर अपना डेरा जमा लेता है. यह गंभीर समस्या कई सालों से बनी हुई है तथा इसके स्थाई रूप से खत्म होने के आसार नहीं हैं.
इस बात का ख़ुलासा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी की टीम द्वारा दिल्ली की हवा में घुले इन जहरीले तत्वों के “real time source apportionment inDelhi” शीर्षक से हुए अध्ययन में हुआ है.
इस अध्ययन के मुताबिक़ देश की राजधानी दिल्ली 26 प्रकार के ऐसे प्रदूषण फैलाने वाला कणों से ग्रस्त है जो दूसरे शहरों से उड़कर दिल्ली पहुँचते हैं. जहाँ कॉपर, कैडमियम, और सल्फर से भरपूर कण नेपाल और उत्तर प्रदेश की पूर्वी हवाओं से आते हैं वहीँ क्रोमियम, निकल और मैंगनीज़ उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्व दिशा की हवाओं से पहुँचते हैं.
शोध के मुताबिक़ सर्दियों में दिल्ली एनसीआर की हवा में अलग-अलग दिशाओं से जहरीले धूलकण घर बना लेते हैं. शोध में इन धूल कणों में 26 प्रकार के तत्व पाए गए हैं जिनकी ज्यादा मात्रा स्वास्थ्य के लिए घातक होती हैं. इन 26 तत्वों में मुख्य रूप से आर्सेनिक, कैडमियम, एलुमिनियम, सिलिकान, सल्फर, फास्फोरस, क्लोरीन, पोटेशियम, क्रोमियम, कोबाल्ट, निकल आदि तत्व पाए गए हैं. ये सभी तत्व पीएम 10 और पीएम 2.5, दोनों में पाए जाते हैं.
शोधकर्ताओं ने 20 जनवरी से 11 मार्च 2018 तथा 15 जनवरी से 9 फरवरी 2019 के दौरान दिल्ली में आनलाइन मैटीरियल मानीटर के जरिये धूलकणों की रियल टाइम मानीटरिंग की. इससे हवा में घुले तत्वों तथा उनके स्रोत की पहचान की गई. लेड, क्रोमियम समेत कई तत्व तो तय सीमा से अधिक मात्रा में पाए गए हैं.
साथ ही धूलकणों के अलग-अलग स्रोत भी पाए गए हैं. इन स्रोतों में दिल्ली में परिवहन से लेकर सड़कों पर टायरों के घिसने से उत्पन्न होने वाले धूलकण तो हैं ही, साथ ही उत्तर पश्चिम दिशा से पाकिस्तान, पंजाब तथा हरियाणा की तरफ से धूलकण दिल्ली के आसमान में आ जाते हैं. आईआईटी कानपुर का यह अध्ययन बताता है कि पूर्व की तरफ से उत्तर प्रदेश और नेपाल से भी प्रदूषण दिल्ली पहुंच कर वहां के आसमान में पैर पसार रहा है.
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इस शोध में तीसरी महत्वपूर्ण बात यह पाई गई है कि दिल्ली की हवा में सुबह तीन बजे से आठ बजे के बीच सबसे ज्यादा धूलकणों की मौजूदगी पाई जाती है. इसकी वजह ये है कि ये धूल कण देर रात से दिल्ली की हवा में टिकने लगते हैं और सुबह तक बने रहते हैं. इसके बाद इनकी धुंध छंटने लगती है. अध्ययन से साफ है कि सुबह की हवा घातक हो सकती है लेकिन विडम्बना ये है कि सुबह ज्यादातर लोग सैर पर निकलते हैं.
इस शोध से मिली जानकारी सरकार के लिए भावी योजनाओं का आधार बन सकती हैं और मौजूदा प्रदूषण नियंत्रण नीतियां और कानूनों में संशोधन का आधार भी साबित हो सकती हैं.