जुबिली न्यूज डेस्क
भारत में किसानों और खेतिहर मजदूरों का आत्महत्या करना नई बात नहीं है। हां, यह अलग बात है कि किसानों की आत्महत्या पर अब शोर नहीं होता। सरकार किसानों की जिंदगी सुधारने के दावे तो करती है लेकिन उनके दावों की पोल किसानों के आत्महत्या के आंकड़े खोल देते हैं।
भारत में किसान आत्महत्या क्यों करते है इसकी वजह से सरकार अच्छी तरह वाकिफ है, बावजूद इस समस्या का अब तक समाधान नहीं ढूंढा जा सका है।
दरअसल भारत में लंबे समय से खेती घाटे का सौदा बन गया है। किसान के सामने एक समस्या नहीं है। खेती की लागत बढऩे के अलावा जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाले खतरों और बाजार की दोषपूर्ण नीतियों से घिरे किसान खुद को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।
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भारत में हर दिन 28 से ज्यादा किसान और खेतिहर मजदूर आत्महत्या करते हैं। यह कहना है सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा जारी की गई इस साल की रिपोर्ट स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट’ का। इस रिपोर्ट में किसानों की समस्यााओं की तरफ ध्यान दिलाया गया है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने जोर देकर कहा है कि किसानों का साथ दिया जाना चाहिए।
इस रिपोर्ट को आज (शुक्रवार) एक ऑनलाइन कार्यक्रम में देशभर के 60 पर्यावरण विश्लेषकों व कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और शिक्षाविदों की उपस्थिति में जारी किया गया।
स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट’ की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 5,957 किसानों और 4,324 खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की। 2018 में ये आंकड़े क्रमश: 5,763 और 4,586 थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2019 में 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किसान द्वारा आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए।
साल 2018 में 20 राज्यों में किसानों के आत्महत्या के मामले दर्ज किए, जबकि इसी साल 21 राज्यों में खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की। यह आंकड़ा 2019 में बढ़कर 24 हो गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, कुल मिलाकर, साल 2019 और 2018 के बीच नौ राज्यों में किसान आत्महत्या में इजाफा देखा गया। ये नौ राज्य हैं – आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मिजोरम, पंजाब, उत्तर प्रदेश व अंडमान व निकोबार द्वीप समूह।
एक हालिया लेख में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने बेहद विस्तार से उन कुरीतियों पर चर्चा की है, जिन्होंने कृषि को बुरी तरह प्रभावित किया है।
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लेख में कहा गया है कि एक तरफ जहां दुनियाभर के देश अपने यहां के किसानों और कृषि का सहयोग करते हैं और उन पर पैसा लगाते हैं, वहीं भारतीय किसान इस तरफ से नुकसान में रहते हैं।
नारायण ने लिखा है, “भारतीय किसानों को वो आर्थिक सहयोग नहीं मिलता, जिससे कृषि को लाभदायक बनाया जा सके। इसके साथ ही, बीज से लेकर पानी और मजदूरी तक की लागत बढ़ रही है, जलवायु परिवर्तन के चलते बेहद खराब मौसम देखने को मिल रहा है। जब फसल महंगी हो जाती है तो सरकार विदेश से सस्ता अनाज आयात कर लेती है। इसके चलते हमारे किसान दोनों तरफ से कष्ट उठाते हैं। यही कारण है कि किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मांग कर रहे हैं, ताकि कीमतों में बदलाव होने के बावजूद वे सुरक्षित रह पाएं।
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सुनीता ने इस तरफ भी ध्यान आकर्षित किया कि मौजूदा एमएसपी व्यवस्था दोषपूर्ण है। भले ही 22 फसलों के लिए एमएसपी तय की गई है लेकिन इसका इस्तेमाल सिर्फ गेहूं और चावल जैसी कुछ फसलों के लिए होता है जिनके लिए सरकार ने खरीद व्यवस्था बनाई है। इतना ही नहीं, सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि 600 थोक बाजारों में 10 चुनी हुईं फसलों के तकरीबन 70 फीसदी लेन-देन एमएसपी से कम पर हुए हैं।