न्यूज़ डेस्क
बात साल 2013 की है उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। मनमोहन सिंह बतौर प्रधानमंत्री अपना दूसरा कार्यभार संभाले हुए थे। तभी कुछ ऐसा हुआ जिससे नाराज होकर पूर्व कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अध्यादेश को फाड़ दिया था। यानी कि राहुल गांधी शुरू से ही मनमाने ढंग से काम करने के आदी थे। तब उन्होंने अध्यादेश फाड़ा था और अब उन्होंने पार्टी को ही दो फाड़ कर दिया है।
एक तरफ राहुल समर्थक है तो दूसरी तरफ पता नहीं किसके समर्थक हैं। राहुल गांधी ने अचानक कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर पार्टी को जिस भंवर में फंसा दिया था पार्टी आज भी उसी भंवर में फंसी हुई हैं। मनमोहन सिंह का दुःख अब काफी कम हो गया होगा क्योंकि जो आदमी बिला मतलब पार्टी को फाड़ सकता है। अगर उसने सरकार का कोई अध्यादेश फाड़ दिया तो इसमें दुखी होने की कोई बात नहीं।
उस समय योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया से पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने अपने इस्तीफे को लेकर बात की थी। इस बात का खुलासा उन्होंने खुद रविवार को किया।
अहलूवालिया के अनुसार, साल 2013 में राहुल गांधी के अध्यादेश फाड़ने के बाद तब प्रधानमंत्री रहे मनमोहन ने उनसे पूछा था कि क्या उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। इस पर मैंने प्रधानमंत्री से कहा कि इस्तीफा देना सही नहीं होगा। उस समय मनमोहन अमेरिका दौरे पर थे। इस बात का खुलासा अहलूवालिया ने अपनी नई किताब ‘बैकस्टेज: द स्टोरी बिहाइंड इंडिया हाई ग्रोथ ईयर्स’ में किया।
उन्होंने कहा कि ‘मैं न्यूयॉर्क में प्रधानमंत्री के प्रतिनिधिमंडल में शामिल था। इस बीच मेरे भाई संजीव ने यह बताने के लिए मुझे फोन किया कि उन्होंने एक आर्टिकल लिखा था। इस आर्टिकल में प्रधानमंत्री की आलोचना की गई थी। उसके बाद संजीव ने इस आर्टिकल मुझे ईमेल किया और कहा था कि मुझे इससे शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए। बाद में इस आर्टिकल की काफी चर्चा हुई।
गौरतलब है कि अहलूवालिया ने तीन दशकों तक भारत के आर्थिक नीति निर्माता के तौर पर काम किया है। उन्होंने अपनी किताब ‘बैकस्टेज: द स्टोरी बिहाइंड इंडिया हाई ग्रोथ ईयर्स’ में यूपीए सरकार की सफलताओं और विफलताओं का जिक्र किया है।
जब मनमोहन सिंह ने पूंछा ये सवाल
उन्होंने अपनी किताब में लिखा कि, ‘मैंने पहला काम यह किया कि आर्टिकल को लेकर प्रधानमंत्री के पास गया, क्योंकि मैं चाहता था कि वह मुझसे ही इसके बारे में पहली बार सुनें। आर्टिकल को पढ़ने के बाद प्रधानमंत्री ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन थोड़ी देर बाद अचानक मुझसे पूछा- क्या मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए?
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कुछ देर सोचने के बाद मैंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस्तीफा देना सही होगा। मुझे विश्वास था कि मैंने उन्हें सही सलाह दी है।’
उन्होंने आगे लिखा कि ‘मेरे काफी दोस्त संजीव से सहमत थे। दोस्तों का यह भी मानना था कि प्रधानमंत्री ने लंबे समय से बाधाओं में काम किया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हुई। अध्यादेश फाड़ने वाले घटनाक्रम को प्रधानमंत्री पद की गरिमा कम करने के रूप में देखा गया और इस्तीफा देना उचित ठहराया गया। लेकिन उनके इस फैसले से मैं सहमत नहीं था।’
यूपीए सरकार को झेलनी पड़ी शर्मिंदगी
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने दागी जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने के खिलाफ फैसला सुनाया था। इस फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए यूपीए सरकार ने अध्यादेश जारी किया था। इस अध्यादेश पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था, ‘यह पूरी तरह बकवास है, जिसे फाड़कर फेंक देना चाहिए।’ इसके पूरे घटनाक्रम के बाद यूपीए सरकार की खूबकिरकिरी हुई थी।