सुरेंद्र दुबे
आखिरकार लोकसभा में आज तीन तलाक बिल फिर से पेश कर दिया गया। यानि की सरकार ने फिर विपक्ष को उनकी बनायी गई पिच पर ही खेलने को मजबूर कर दिया। जाहिर है कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी सहित तमाम विपक्षी दल इसमें मीनमेख निकालेंगे और भाजपा फिर इसका राजनैतिक लाभ उठायेगी।
इसका सीधा-साधा कारण यह है कि उन्हें लगता है कि तीन तलाक बिल का किसी न किसी तरह विरोध करने से मौलाना उनके समर्थन में खड़े रहेंगे और उन्हें चुनाव में मुसलमानों का साथ मिलता रहेगा। परंतु यहीं विपक्षी दल गलती कर रहे हैं।
एक छोटी सी बात उनके समझ में नहीं आ रही है कि एकसाथ तीन तलाक के व्यवस्था से मुस्लिम महिलाएं लंबे अरसे से पीड़ित हैं तथा सुप्रीम कोर्ट में बड़ी लड़ाई लडऩे के बाद वह इसे गैरकानूनी घोषित करा पायी हैं, जिसमें उन्हें सरकार का खुलकर साथ मिला है।
यह एक बहुत बड़ा कारण था जिस वजह से वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में मुसलिम महिला मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी का साथ दिया। इसका आंकलन करने के बाद ही मोदी सरकार ने यह बिल फिर लोकसभा में पेश कर दिया।
वर्ष 2018 में इसको लेकर खूब राजनीति हुई। राज्यसभा से यह बिल भले ही न पास हो पाया हो पर आर्डिनेंस लाकर सरकार ने यह साफ कर दिया कि इस व्यवस्था को समाप्त कर मुस्लिम महिलाओं को देश के संविधान के अनुसार बराबरी का हक देने के पक्ष में है।
मैं इस पूरे मसले को एक दूसरे दृष्टिकोण से देखना चाहता हूं। आइये सिलसिलेवार इसका आंकलन करते हैं। मोदी सरकार ने इस बार सरकार बनते ही मुस्लिम बच्चों के लिए पांच करोड़ छात्रवृत्तियां देने व अन्य अनेक सुधार करने का खाका पेश कर दिया।
मोदी सरकार अगले 5 साल में अल्पसंख्यक वर्ग के 5 करोड़ छात्रों को प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति योजना का लाभ देगी। इस योजना के तहत 25 लाख युवाओं को टेक्निकल ट्रेनिंग देकर रोजगार में सक्षम बनाया जायेगा। अल्पसंख्यक मंत्रालय की कोशिश है कि जिन 5 करोड़ छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाएगी उनमें 50 फीसदी भागीदारी लड़कियों की होगी।
दरअसल सरकार अल्पसंख्यक वर्ग की लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए दृढ़संकल्प है और इसी के तहत राष्ट्रीय स्तर पर ‘पढ़ो-बढ़ो’ अभियान की शुरुआत की जा रही है। सरकार ने थ्री ई का लक्ष्य तय किया है। ये थ्री ई हैं-एजुकेशन, एंप्लॉयमेंट और एम्पावरमेंट। इस अभियान का लक्ष्य है अल्पसंख्यक लड़कियों को शिक्षा देकर रोजगार दिया जाए ताकि उनका सशक्तिकरण हो सके।
अब ये जो ढेर सारी सुविधाएं दी जा रही हैं, इतनी सुविधाएं कभी किसी अन्य वर्ग के लिए विशेषत: हिंदुओं के लिए भी नहीं घोषित की गईं। तीन तलाक बिल लाकर जहां उसने मुस्लिम महिलाओं का दिल जीतने की कोशिश की है, वहीं उसने छात्रवृत्तियों की घेाषणा करके मुस्लिम परिवार के बच्चों में भी अपनी घुसपैठ बनाने की कोशिश की है। शायद इसी को कहते हैं-सबका विश्वास जीतना और घर में घुसकर वोट बैंक में सेंध लगाना।
भाजपा हिंदुओं का विश्वास पहले ही लगभग जीत चुकी हैं वरना लोकसभा चुनाव में विपक्षियों के लिए इतने विस्मयकारी परिणाम नहीं आते। अब उसे लगता है कि मुस्लिमों के वोट बैंक में भी अच्छी पहुंच बना ली जाए तो चुनाव में उसे पचास से साठ प्रतिशत तक वोट पाने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
भाजपा का यह प्रयास कितना सार्थक होता है, इसका पता तो आने वाले विधानसभा चुनाव के समय ही पता चलेगा, पर है ये एक मास्टर स्ट्रोक। या कहें एक सर्जिकल स्ट्राइक। यानि की मोदी सरकार ने मुस्लिम परिवारों के घर में घुसकर अपनी राजनैतिक पकड़ बहुत मजबूत करने का महती बीड़ा उठाया है।
अगर मुस्लिम महिलाएं और उनके बाल-बच्चे मोदी सरकार के इन निर्णयों से खुश होते हैं तो फिर पुरुष वर्ग भागकर कहां जायेगा। इस्लाम के नाम पर डराने वाले या हिंदुओं के नाम पर आतंकित करने वाले मौलाना और कठमुल्ले अलग-थलग पड़ सकते हैं। अभी तक भाजपा पर ये आरोप लगता रहा है कि वह केवल हिंदुओं की पार्टी है और मुसलमानों के विकास से गुरेज करती है। पर अब ये तर्क बहुत मजबूत नहीं रह जायेगा।
मुस्लिम समाज आज बहुत बदल गया है। उनके भी बच्चे पढ़-लिखकर मुख्य धारा में आगे बढ़ना चाहते हैं। अच्छी नौकरियां चाहते हैं। और एक अच्छे भविष्य की कल्पना करते हैं। ये बातें अब समाज में स्पष्ट दिखाई दे रही है। इसलिए मौलानाओं की तकरीर और फतवों का कोई खास असर नहीं रह गया है।
अब तीसरी घटना का जिक्र करते हैं। 20 जून को सहारनपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता तथा संघ संचालित हिंदु-मुस्लिम एकता मंच के अध्यक्ष इंद्रेश कुमार दारुल उलूम संस्था के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी बनारसी से मिले और उनसे हिंदुओं और मुसलमानों के बेहतर संबंधों के परिप्रेक्ष्य में विचार विमर्श किया।
इंद्रेश कुमार की इस मुलाकात को बिटविन द लाइन्स पढ़ने की जरूरत है। पहले मुस्लिम छात्रों के लिए बड़े पैमाने पर छात्रवृत्तियों की घोषणा और इसके बाद इंद्रेश की मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी बनारसी से मुलाकात और आज लोकसभा में तीन तलाक बिल पेश किया जाना, ये तीनों घटनाएं साफ इशारा करती है कि मोदी सरकार हर कीमत पर मुस्लिम समाज में घुसपैठ सुनिश्चित कर लेना चाहती है।
इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह देखना है कि कल ही राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में तीन तलाक व हलाला प्रथा को समाप्त किए जाने का संकल्प व्यक्त किया था।
राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार ही तैयार करती है। राष्ट्रपति सिर्फ उसे पढ़ते हैं और उनके भाषण को सरकार का संकल्प समझा जाता है। तीन तलाक बिल तो सोलहवीं लोकसभा में ही पास किया जा चुका है और राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण सरकार इसे पास नहीं करा पायी थी। जिस वजह से सरकार ने अध्यादेश जारी कर इसे कानूनी रूप प्रदान किया था।
अब इन तीनों घटनाक्रमों को देखें तो बहुत स्पष्ट है कि सरकार ने पहले बड़े पैमाने पर छात्रवृत्तियां, मदरसों का आधुनिकीकरण व बड़े पैमाने पर मदरसा शिक्षकों की भर्ती की लोकलुभावन योजना पेश की। यानी सबसे पहले पढ़े-लिखे बच्चों व शिक्षकों के बीच विश्वास जगाने की पहल की गई।
तीन तलाक बिल क्योंकि पिछले कार्यकाल में ही कानून का रूप ले चुका था, इसलिए इसके संभावित विरोध व हो-हल्ले को कम करने के लिए आरएसएस की ओर से इंद्रेश कुमार ने दारूल उलूम के मौलाना से मुलाकात कर मोदी सरकार की मंशा को स्पष्ट करने की कोशिश की।
जाहिर है कि कोशिश यह है कि सरकार मुस्लिमों के उत्थान के लिए जो भी योजनाएं पेश करें, मौलानाओं और इस्लामिक विद्वानों का भी उसे भरपूर समर्थन मिले।
सरकार अगर इस मकसद में कामयाब होती है तो फिर तीन तलाक बिल का विरोध भी ठंडा पड़ जायेगा। अध्यादेश की अवधि समाप्त हो गई थी इसलिए नया बिल लाकर सरकार ने मुस्लिम समाज को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वह एकसाथ तीन तलाक की कुव्यवस्था को समाप्त करने के लिए कृतसंकल्प है, जिसे सुप्रीम कोर्ट पहले ही असंवैधानिक घोषित कर चुका है।
राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण सरकार शायद वहां इस बिल को पास न करा पाये पर इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह फिर अध्यादेश का सहारा ले लेगी और विपक्ष को कठघरे में खड़ा कर देगी,जो इस समय चारो खाने चित्त है।
वैसे राज्यसभा में भी सरकार ने अभी से बहुमत जुटाने की तिकड़म शुरु कर दी है। 20 जून को तेलगू देशम पार्टी के छह में से चार सांसद भाजपाई हो गए। पता नहीं और किन-किन पार्टियों के सांसदों पर इनकी नजर है। हो सकता है कि वह तोडफ़ोड़ कर राज्यसभा में बहुमत जल्द ही हथियाने में सफल हो जाय।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )