मोदी ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मशविरे की जगह अपने उग्र, जोशीले राष्ट्रवादी भाषणों को तरजीह दी
जुबिली न्यूज डेस्क
भारत में कोरोना वायरस कहर बरपा रहा है। हर दिन हजारों लोग मर रहे हैं। स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि पूरी दुनिया की निगाहें भारत पर बनी हुई है।
भारत में जो कोरोना की वजह से जो हालात है उस पर विदेशी मीडिया लगातार लिख रहा है। आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, चीन, बांग्लादेश से लेकर फ्रांस की मीडिया ने इस हालात के लिए मोदी सरकार की आलोचना की है।
कुछ दिनों पहले ही भारत में कोरोना के हालात के जिम्मेदार कौन है इसको लेकर आस्टे्रलियाई अखबार ने तीखी टिप्पणी की थी। हांलाकि इस पर भारतीय उच्चायोग ने अखबार के संपादक को पत्र भेजकर नसीहत भी दे दी थी।
अब ऐसी टिप्पणी फ्रांस के अखबार ली मॉण्दे ने किया है। अपने संपादकीय में अखबार ने लिखा है कि भारत की मौजूदा कोविड-त्रासदी के लिए दोषी बातों में कोरोना वायरस की अप्रत्याशिता के अलावा जनता को बहला-फुसला कर रखने वाली सियासत और झूठी हेकड़ी भी शामिल है।
अखबार ने अस्पतालों और श्मशानों के मंजर का चित्रण करते हुए लिखा है कि कोरोना महामारी गरीब या अमीर किसी को नहीं बख्श रही। मरीजों के बोझ से चरमराते अस्पताल, गेट पर लगी एम्बुलेंसों की कतार और ऑक्सीजन के लिए गिड़गिड़ाते तीमारदार। ये ऐसे दृश्य हैं जो झूठ नहीं बोलते। फरवरी में जिस कोरोना का ग्राफ नीचे जा रहा था, उसकी लाइन अब लंबवत, खड़ी उठ रही है।
अखबार ने लिखा है कि इस हालत के लिए सिर्फ कोरोना वायरस के छलावा को दोषी नहीं माना जा सकता। साफ है कि इसके अन्य कारणों में नरेंद्र मोदी की अदूरदर्शिता, हेकड़ी और जनता को बहला-फुसला कर रखने वाली उनकी सियासत शामिल है। आज नियंत्रण से बाहर दिखती स्थिति में विदेशी मदद की दरकार हो रही है।
अखबार ने लिखा है कि साल 2020 में भारत में अस्तव्यस्त करने वाले बेहद पीड़ादायी, पंगुकारी लॉकडाउन की घोषणा हुई, करोड़ों प्रवासी मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया और फिर 2021 की शुरुआत में पीएम नरेन्द्र मोदी ने सुरक्षा में ढिलाई कर दी।
मोदी ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मशविरे की जगह अपने उग्र, जोशीले राष्ट्रवादी भाषणों को तरजीह दी। झुकाव आत्मप्रवंचना की ओर न कि जनता को बचाने की ओर। इस तरह हालात बद से बदतर हो गए।
इस संपादकीय लेख में कुंभ का भी जिक्र है। लिखा गया है कि इस आयोजन ने गंगाजल को संक्रमणकारी बना दिया।
ली मॉण्दे के संपादकीय में पीएम मोदी की बहुप्रचारित वैक्सीन रणनीति की भी कठोर शब्दों में निंदा की गई है। कहा गया है कि मोदी की वैक्सीन नीति महत्वाकांक्षाओं का पोषण करने वाली थी। यह देखा ही नहीं गया कि देश में वैक्सीन उत्पादन की क्षमता कितनी है।
फ्रांस के ली मॉण्दे अखबार के अलावा ग्लोबल टाइम्स, इंडिपिंडेंट, गार्जियन आदि ने भी जलती चिताओं के चित्रों के साथ भारत के हालात पर रिपोर्ट छापी हैं।
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इन सभी अखबारों ने लिखा है कि श्मशान छोटे पड़ रहे हैं। सो, यहां-वहां खाली जगहों पर शव जलाए जा रहे हैं। ग्लोबल टाइम्स ने भारत में रह रहे कोरोना पीडि़त एक चीनी नागरिक के हवाले से लिखा है कि अत्यधिक मौतों के कारण अंत्येष्टि से जुड़ा कारोबार भी चरमरा गया है।
इन तमाम रिपोर्ट्स के बीच बांग्लादेश के एक अखबार न्यू एज की टिप्पणी बहुत मार्मिक है। लिखा है: कोरोना महामारी के चलते भारत की हालत उस रात के वक्त सड़क पर खड़े उस जानवर की तरह हो गई है जिसकी आंखों के सामने कार की हेडलाइट चमक रही है और वह समझ नहीं पा रहा कि वह क्या करे।
मालूम हो कि पिछले दिनों जब आस्ट्रेलिया के एक प्रमुख अखबार ने भारत सरकार की निंदा की थी तो भारतीय हाइ कमीशन ने अखबार को फटकार लगाई थी। लेकिन, क्या विदेशी मीडिया को कोई नियंत्रित कर भी सकता है?
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