जुबिली न्यूज डेस्क
अफगानिस्तान में तालिबान राज आने के बाद पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण होते जा रहे हैं। वहीं नई अफगान सरकार ने इसके विपरीत भारत के साथ रिश्तों को बेहद मजबूत करना शुरू कर दिया है। एक रिपोर्ट की माने तो भारत और तालिबान दोनों ही एक- दूसरे के साथ रिश्ते और आपसी भरोसे को मजबूत करने के लिए उत्सुक हैं। रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान को भारत के साथ दोस्ती में दोतरफा फायदा नजर आ रहा है। आइए समझे क्या है फायदा।
बता दे कि इस रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान को यह अहसास हो गया है कि भारत के साथ दोस्ती करने से विदेशी निवेश आएगा और क्षेत्रीय व्यापार बढ़ेगा। वहीं उसे दूसरा बड़ा फायदा यह होने जा रहा है कि भारत पहले की तरह से अब नार्दन अलायंस जैसे किसी तालिबानी विरोधी हथियारबंद समूह को समर्थन नहीं देगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और दुनिया के साथ जुड़ने के पीछे तालिबान की 3 बड़ी मंशा है। पहला- तालिबान को उम्मीद है कि राजनीतिक और आर्थिक संबंध से विदेशी निवेश आएगा और क्षेत्रीय व्यापार बढ़ेगा। इससे तालिबान सरकार का राजस्व बढ़ेगा।
दानदाता देशों से मानवीय सहायता मिलेगी
वहीं तालिबान चाहता है कि उसके शासन की राह में आने वाले हर कांटे को उखाड़कर फेंक दिया जाए। खासतौर पर तालिबानी नहीं चाहते हैं कि कोई भी क्षेत्रीय ताकत अफगानिस्तान में उनके विरोधियों को सैन्य मदद दे। तीसरा- तालिबान को लगता है कि दुनिया के साथ अच्छे रिश्ते करने से उसे दानदाता देशों से मानवीय सहायता मिलेगी। भारत ने तालिबानी सरकार आने के बाद भी मानवीय सहायता को देना जारी रखा है। भारत ने तालिबान कई तरह से मद्द की है।
राजनयिक मान्यता की मांग
तालिबान की सरकार बार-बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांग कर रही है कि उसे राजनयिक मान्यता दी जाए। उसने दलील दी है कि अफगानिस्तान की नई सरकार इस मानदंड को पूरा करती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान के पड़ोसी देशों ने उसे स्वीकार कर लिया है और राजनयिकों की तैनाती कर दी है। हालांकि इससे तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत मदद नहीं मिली है। इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत इस क्षेत्र का एक बड़ा खिलाड़ी है और उसने शुरू में तालिबान से दूरी बनाई थी लेकिन अब विभिन्न स्तरों पर दोनों के बीच सहयोग चल रहा है।
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भारत और तालिबान के बीच दोस्ती
रिपोर्ट में कहा गया है कि जून महीने में भारतीय विदेश मंत्रालय के आला अधिकारी काबुल गए थे। तालिबान के कब्जे के बाद ऐसा पहली बार हुआ था। यही नहीं 1994 में तालिबानी आंदोलन शुरू होने के बाद इतने उच्च स्तर पर भारत की ओर से पहली बार बैठक हुई है। इस चर्चा के बाद भारत ने अपने दूतावास को काबुल में फिर से खोल दिया।
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