Thursday - 31 October 2024 - 8:05 AM

मोदी सरकार ने आपातकाल की बरसी पर लिया संविधान रक्षा का संकल्प


कृष्णमोहन झा

25 जून की तारीख आते ही देशवासियों के मानस पटल पर उस आपातकाल की भयावह यादें ताजा हो उठती हैं जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काले अध्याय के रूप में जुड़ी हुई हैं। 25 जून 1975 की रात को थोपे गए इस आपातकाल के शिकंजे में देश को इस तरह जकड़ दिया गया था कि सरकार के विरुद्ध एक शब्द बोलना भी गुनाह हो गया था। उस आपातकाल की काली छाया में ढंके देश में हर तरफ बस सन्नाटा पसरा हुआ था।

अखबारों पर प्री सेंसर शिप लागू कर दी गई थी ताकि अखबार सरकार के खिलाफ एक शब्द भी छापने की जुर्रत न करें। जिन प्रकाशन संस्थानों ने थोड़ी बहुत हिम्मत दिखाई उन पर ताले डाल दिए गए। हजारों लाखों की संख्या में विपक्षी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को मीसा के तहत जेल में डाल दिया गया। यह एक ऐसी स्थिति थी जिसमें सत्ता का गुणगान करने और सरकार के हर फैसले को ‘ सहर्ष ‘स्वीकार करने के अलावा किसी के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था। जिसने भी सत्ता को चुनौती देने का साहस दिखाया उसे जेल के सीखचों के पीछे भेज दिया गया।

यह सिलसिला 21 माहों तक चलता रहा। अंततः ऐसे हालात पैदा हो गये कि तत्कालीन इंदिरा सरकार को आपातकाल उठाने के लिए विवश होना पड़ा और आपातकाल हटने के बाद हुए चुनावों में इंदिरा कांग्रेस को जनता के प्रचंड आक्रोश ने सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। लगभग डेढ़ साल तक लाखों लोगों को जेल में बंद रखने वाली कांग्रेस सरकार की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी स्वयं भी रायबरेली की लोकसभा सीट से चुनाव हार गईं। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काला अध्याय जोड़ने वाली इंदिरा सरकार से मुक्ति ने जब देशवासियों को खुली हवा में सांस लेने का अवसर प्रदान किया तो उसे दूसरी आजादी का नाम दिया गया।

25 जून 1975 की रात को देश में आपातकाल लागू करने का जो फैसला तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया उसके मूल में इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह फैसला था जिसके द्वारा पूर्व में संपन्न लोकसभा चुनावों में रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कर दिया गया था। इस फैसले के बाद विऱोधी दलों की ओर से इंदिरा गांधी पर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के लिए दबाव बढ़ाने का अभियान प्रारंभ हो गया। इंदिरा गांधी के विरोध में विपक्ष के इस अभियान को देशभर के कोने कोने से समर्थन मिलने लगा और फिर ऐसी स्थिति भी निर्मित हो गई जिस पर नियंत्रण स्थापित कर पाना इंदिरा गांधी के लिए असंभव हो गया।

इंदिरा गांधी के विरोध में प्रारंभ अभूतपूर्व आंदोलन के नेतृत्व की बागडोर जब महान सर्वोदय नेता और जीवट स्वाधीनता संग्राम सेनानी जयप्रकाश नारायण ने संभाली तो इस आंदोलन ने और उग्र रूप धारण कर लिया। प्रधानमंत्री की अपनी कुर्सी बचाने के लिए अंतिम उपाय के रूप में श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश भर में आपातकाल लागू कर देने का विकल्प चुना जो तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर से 25 जून 1975 की रात सारे देश में प्रभावशील हो गया। आपातकाल में संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं पर अनेक पाबंदियां लगा दी गईं।

आपातकाल में सरकार द्वारा की गई ज्यादतियों ने जनता के आक्रोश की आग में घी डालने का काम किया। इसी आक्रोश का परिणाम था कि 1977 के लोकसभा चुनावों में न केवल कांग्रेस को शोचनीय पराजय का सामना करना पड़ा बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी रायबरेली सीट से चुनाव हार गईं। पांच विरोधी दलों के विलय से बनी जनता पार्टी को भारतीय मतदाताओं ने प्रचंड बहुमत से दिल्ली की सौंप दी। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनावों की घोषणा के पूर्व तत्कालीन इंदिरा सरकार ने लगभग सभी मीसा बंदियों को रिहा कर दिया था।

25 जून 1975 को थोपे गए उस अभूतपूर्व आपातकाल की ज्यादतियों को देश लगभग 21 माह तक सहता रहा जिसे आज भी भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। जिन लोगों ने आपातकाल की ज्यादतियों को देखा और होगा है उनके मानस पटल को आपातकाल की दुखद यादें भयावह दुस्वप्न के रूप में आज भी झकझोरती रहती हैं। यह निःसंदेह आश्चर्यजनक है कि 1975 में जिस कांग्रेस पार्टी की सरकार ने आपातकाल के रूप में संविधान की पवित्रता को कलंकित करने का अपराध किया था वही आज अपने राजनीतिक हित साधने के लिए संविधान की दुहाई देकर मोदी सरकार पर निशाना साध रही है।

कांग्रेस और उसके साथ खड़े दिखाई दे रहे विपक्षी दल बहुत पहले ही यह नैतिक अधिकार खो चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नवनिर्वाचित लोकसभा के प्रथम सत्र के प्रथम दिन मीडिया को संबोधित करते हुए जिस तरह आपातकाल को लोकतंत्र के लिए कलंक निरूपित किया उससे कोई असहमत नहीं हो सकता। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में भारतीय संविधान के प्रति न केवल अपनी अटूट आस्था व्यक्त की है अपितु संविधान की रक्षा का भी संकल्प लिया है।

प्रधानमंत्री जब यह कहते हैं कि ” अपने संविधान की रक्षा करते हुए , भारत के लोकतंत्र की , लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करते हुए, देशवासी यह संकल्प लेंगे कि भारत में फिर कोई ऐसा करने की हिम्मत नहीं करेगा जो 50 साल पहले किया गया था। हम एक जीवंत लोकतंत्र का संकल्प लेंगे।” तो उनका यह कथन नवगठित मोदी सरकार के प्रति हर भारतवासी के भरोसे को और मजबूत करता है।

(लेखक राजनैतिक विश्लेषक है)

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com