- 85 फीसदी बढ़ गई काम की मांग
जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना काल में मनरेगा चर्चा में है। 14 साल पुरानी महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना इससे पहले इतनी चर्चा में कभी नहीं रही। देश के लगभग हर राज्य में मनरेगा के प्रति ग्रामीणों के साथ-साथ सरकारों का रूझान बढ़ा है।
पिछले दो माह से महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम की मांग तेजी से बढ़ रही है। इससे यह साबित होता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मनरेगा कितना महत्व रखती है।
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कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए मार्च के अंतिम सप्ताह से देशव्यापी तालाबंदी (लॉकडाउन) के बाद अप्रैल माह में मनरेगा के तहत सबसे कम काम की मांग की गई।
आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में केवल 1.20 करोड़ परिवारों ने काम की मांग की, जो कि साल 2013-14 के बाद से लेकर अब तक सबसे कम मांग रिकॉर्ड की गई, लेकिन तालाबंदी के बीच बरोजगार हुए प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने घर-गांव लौटने लगे तो उनके साथ-साथ सरकार के सामने सवाल था कि प्रवासी श्रमिक जब गांव लौटेंगे तो करेंगे क्या? इस सवाल का जवाब मनरेगा में ढूंढ़ा गया।
आंकड़ों के मुताबिक मई माह में 3.6 करोड़ से अधिक परिवारों ने मनरेगा के तहत काम मांगा और जून में तो काम मांगने के आंकड़े ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। 30 जून तक के आंकड़े बताते हैं कि 4.36 करोड़ से अधिक परिवारों ने काम की मांग की।
इससे पहले के आंकड़ों के अनुसार 2012-13 से लेकर 2019-20 के बीच जून महीने में काम औसत मांग 2.36 करोड़ रही। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जून 2020 में सामान्य से लगभग 85 फीसदी अधिक काम की मांग की गई, जो कि एक रिकॉर्ड है।
वहीं, मनरेगा के तहत काम की औसत मासिक मांग की बात की जाए तो 2012-2013 से 2019-20 के बीच औसतन हर माह 2.15 करोड़ परिवारों ने काम की मांग की।
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ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में रोजगार की क्या स्थिति है। लोगों ने अकसर बड़े संकट के समय में इस स्कीम पर भरोसा जताया है, क्योंकि यह स्कीम अकुशल श्रमिक को भी निश्चित मजदूरी पर गारंटी युक्त रोजगार प्रदान करती है।
राज्य-स्तरीय विश्लेषण से पता चलता है कि जून में की गई कुल मांग का 57 फीसदी केवल इन राज्यों में रिकॉर्ड किया गया। उत्तर प्रदेश में 74 लाख, राजस्थान में 54 लाख, आंध्र प्रदेश में 44 लाख, तमिलनाडु में 41 लाख और पश्चिम बंगाल में 39 लाख लोगों को मनरेगा से रोजगार मिला।
मई माह में भी उत्तर प्रदेश में ही मनरेगा के तहत अधिकतम काम की मांग की है। यहां 55 लाख परिवारों ने काम की मांग की, जबकि इसके बाद आंध्र में 42 लाख, राजस्थान में 41 लाख, तमिलनाडु में 26 लाख और पश्चिम बंगाल में 26 लाख परिवारों ने काम की मांग की। आंकड़े बताते हैं कि जून 2020 में लगभग 26 राज्यों में पिछले सात वर्षों (2013-2014 से 2019-20) के सामान्य औसत से ज्यादा परिवारों ने काम की मांग की।