ओम कुमार
अपने दिनांक 25 जनवरी 2020 के अंक में जुबिली पोस्ट ने खुलासा किया था कि यूपी का मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन कमीशन के चक्कर में जिलों में करोड़ों रूपये की घटिया (अधोमानक) दवाओं की सप्लाई कर रहा है।
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि किसी दवा के एक बैच की दवा का सैम्पल फेल होता है तो केवल उस बैच की दवा का प्रयोग रोकने का आदेश कार्पोरेशन के अधिकारी जारी करके, कोरम पूरा कर देते हैं और शेष बैच की दवायें यह जाने बिना ही कि अधोमाक हैं या नहीं मरीजों को खिला देते हैं। न तो फर्म को प्रतिबंधित करते हैं और नही जो अधोमानक दवा बंट गयी है ,उसके सम्बन्ध में कोई कार्यवाही।
ये भी पढ़े: यूपी में बड़ा खेल : ड्रग वेयरहाउस के नाम पर बड़ा गड़बड़झाला
अधोमानक दवा किसे कहते हैं
जब कोई दवा मरीज के लिये कम्पनियां सप्लाई करती हैं तो यह देखने के लिये कि वह दवा मरीज को देने लायक (मानक के अनुसार)है या नहीं या फिर दवा मरीज पर उल्टा असर तो नहीं करेगी, इसके लिये दवा के सैम्पल का लैब में टेस्ट कराया जाता है । मानक के अनुसार पाये जाने पर ही इसे मरीजों को दिया जाता है।
ये भी पढ़ें : उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन में सरकारी पैसे पर अय्याशी
Azithromycin Suspension 100mg/5 ml के कुल 27 बैच अधोमानक घोषित
उ०प्र०मेडिकल सप्लाईज कार्पोरेशन लि.ने अपने आदेश सं.यू.पी.एम/एससीएल/1096 दिनांक 29 जनवरी के द्वारा टेरेस फार्मास्यूटिकल्स प्रा. लि. द्वारा आपूर्तित औषधि Azithromycin Suspension 100mg/5 ml के उपयोग पर तत्काल रोक लगाने का आदेश जारी किया है।
आदेश में कहा गया है कि नमूना जांच में Azithromycin Suspension के 27बैच की दवाओं को अधोमानक(घटिया) पाया गया है, इसलिये इसको मरीजों को वितरित न किया जाय।
ये भी पढ़ें : ड्रग माफिया दे रहा घटिया दवा, स्वास्थ्य विभाग बता रहा जीवन रक्षक
मरीज खा चुका दवाई,तब कार्पोरेशन उस दवा के वितरण पर लगाता है रोक
Azithromycin Suspension(सीरप) की जिला चिकित्सालयों में जुलाई और अगस्त के महीने में ही सप्लाई कर दी गयी थी और अधिकांश मरीजों को यह दवा बंट भी गयी तब पांच छह महीने बाद कार्पोरेशन इसके वितरण पर लगाई रोक।
एक जिले में सीएमओ के स्टोर में 35000 सीरप की बोतल में से केवल 9700 ही स्टोर में शेष बचे हैं, बाकी 25300 बोतल का मरीज सेवन कर चुके। बदायूं के जिला अस्पताल में तो अभी भी इस अधोमानक दवा के वितरण किये जाने की सूचना है। जिला अस्पताल एटा में 7180 फाइल सीरप में से केवल 176 शीशी ही शेष है। यही हाल कमोबेस सभी जिलों में यही स्थिति है।
ये भी पढ़े: यूपी मेडिकल सप्लाई कॉर्पोरेशन का मकड़जाल: दवाओं की सप्लाई करने में विफल
इसी तरह से Tab.Ciprofloxacin Hcl की दवा के सैम्पल होने पर जब कार्पोरेशन ने इस दवा के इस्तेमाल पर पर रोक लगाई तब तक 1,50,000 में से केवल 1340टैब. ही स्टाक में रह गये।
इससे साफ है कि सारी अधोमानक दवा तो मरीज खा चुके तो उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करके लिये जिम्मेदार कौन है, क्या उन पर कारवाई नहीं होगी।
अधोमानक Azithromycin Suspension(सीरप) की खरीद पर सरकार को करोड़ों का लगाया चूना
प्रदेश में जिलों से प्राप्त सूचना के अनुसार 17,50,000 फाइल सीरप पर रू. 8.90 की दर से लगभग एक करोड़ पचपन लाख पचहत्तर हजार रूपये की अधोमानक Azithromyci Suspension(सीरप) की खरीद हुई जिसमें से अधिकांश की खपत हो गयी, इसलिये इनकी वसूली भी नहीं होगी और सरकार के राजस्व को लगेगा चूना।
अधोमानक दवाओं को मरीजों को देने पर सरकार क्यों नहीं करती कोई कारवाई
कार्पोरेशन की डायरेक्टर, क्वालिटी कन्ट्रोल अफसर लगातार मरीजों को अधोमानक दवा खिलाने के बाद न तो उन मरीजों पर इसका असर हुआ, यह तक नहीं देखते हैं, फिर भी सरकार इनके ऊपर कारवाई न करके अपनी क्षवि को ही धूमिल कर रही है।
जिला चिकित्सालय के एक फार्मेसिस्ट के अनुसार, दवाओं के भण्डारण और वितरण के लिये फार्मेसी ऐक्ट में साफ निर्देश है कि मरीज को दवा देने से पहले ही उसकी गुणवत्ता की जांच करा लेनी चाहिये।
स्वास्थ्य महानिदेशालय के सी एम एस डी में पहले सभी दवाओं की सैम्पलिंग की जाती थी और जिलों में भी दवाओं की गुणवत्ता जांची जाती थी।जिस दवा को अधोमानक पाया जाता उसको बनाने वाली फर्म पर प्रतिबंध लगाते हुए पेनाल्टी सहित दवा का मूल्य वसूला जाता था।
ये भी पढ़े: UP मेडिकल कारपोरेशन के खेल से करोड़ों की घटिया दवाएं खा रहे हैं मरीज
लेकिन कार्पोरेशन के अधिकारी ज्यादा से ज्यादा कमीशन के फेर में फर्म को प्रतिबंधित नहीं करतेऔर न ही भुगतान मूल्य की वसूली।
सवाल है कि मरीजों की सेहत के नाम पर जिला अस्पतालों में दवा की व्यवस्था को ध्वस्त करने वाला कार्पोरेशन कब अपनी सांसे लेगा।
ऐसा न हो कि सरकार के मुखिया प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था के बेहतर होने के बडे़ बडे़ दावे करते रहें और जनता उनके दावों को झूठा मानते हुए सबक दिखा दे।इस लिये जरूरी है कि सरकार कागजी आंकणों पर विश्वास न करके जमीनी हकीकत समझे और जिम्मेदार अधिकारियों पर कारवाई करके अपनी भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के दावे में जनता का विश्वास पैदा करे।