उत्कर्ष सिन्हा
लम्बे इंतज़ार के बाद आखिर सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए मध्यस्थता कमेटी का ऐलान तो कर दिया , मगर कमेटी की घोषणा के साथ ही जिस तरह विरोधी सुर उठने लगे हैं, उसके बाद इस कमेटी के फैसले स्वीकार्यता कितनी होगी इस पर फ़िक्र बढ़ गयी है.
संतो की तीखी प्रतिक्रियाएं
मध्यस्थों के नाम की घोषणा के बाद ही अयोध्या के संतो की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आने लगी हैं. अयोध्या विवाद से सुर्ख़ियों में आये बजरंग दल और भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत तो किया मगर साथ ही ये भी कह दिया कि इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि जहां राम की जन्म भूमि है जहां पूजा और अर्चना होती है जिस स्थान को लेकर ढाई तीन लाख लोग बलिदान हो गए कई बार युद्ध हो चुका उस स्थान पर ही राम मंदिर का निर्माण होगा दुनिया की कोई भी ताकत उसको रोक नहीं सकती पूजा अनवरत चलती रहेगी.
कटियार इस सिलसिले में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर के प्रयासों का जिक्र करते हुए ये भी कह गए कि उस वक्त दोनों सरकारें चली गई थी इसलिए फैसला नहीं हो सका और अब देखिये क्या होता है?
महंतो को भी पैनल रास नहीं आ रहा
इस पहल पर संदेह जताने वाले कटियार अकेले नहीं हैं. अयोध्या के ज्यादातर महंतो को भी ये पैनल रास नहीं आ रहा. अयोध्या के महंतो को श्री श्री रविशंकर से पहले भी एतराज रहा है. निर्मोही अखाड़े से जुड़े लोगों ने हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले में मध्यस्थता का आदेश देने का स्वागत किया है. लेकिन महंत राजू दास कह रहे हैं कि क्या अयोध्या में संत नहीं थे जो मध्यस्थता के लिए श्री श्री रविशंकर को भेजा जा रहा है. साफ पता चल रहा है कि मामले को फिर से लटकाने की कोशिश हो रही है.
अयोध्या के ज्यादातर संत महंत इस पैनल में जस्टिस पलोक बासु को देखना चाहते थे. जस्टिस पलोक बासु ने अपने स्तर से अयोध्या में बाबरी मस्जिद- राम जन्मभूमि विवाद में काफी कोशिशे की थीं. सुप्रीम कोर्ट में अब मौजूद हजारो पन्नो के दस्तावेजों का अनुवाद भी उनकी ही कोशिशों का नतीजा था. हालांकि बासु इस कोशिश में कामयाब नहीं हुए और उन्होंने खुद को मामले से पीछे कर लिया.
श्री श्री रविशंकर ने जब अयोध्या विवाद को कोशिशें शुरू की तो भी उन्हें अयोध्या में प्रभावी महंतो का समर्थन नहीं मिला था। हालांकि रविशंकर के प्रयासों के पीछे पहले भी सरकार का हाँथ था लेकिन अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद् और स्थानीय महंतो के बीच चल रहे शीत युद्ध के कारण ज्यादातर महंत रविशंकर से दूर ही रहे.
हिंदू पक्ष के भी काफी लोग इस मामले में रविशंकर के रुख से सहमत नहीं थे. उन्हें लगता था कि रवि शंकर का झुकाव बाबरी एक्शन कमेटी और मुस्लिम पक्ष के प्रति कुछ ज्यादा ही रहता है. कुछ महीने पहले तो अयोध्या के एक बड़े महंत ने यहाँ तक कह दिया कि रविशंकर इस मामले के जरिये खुद को नोबल पुरस्कार दिलवाने की कोशिश में हैं.
अयोध्या मामले में मध्यस्थता को ले कर मुस्लिम लचीला रुख बनाये हुए हैं. दारुल उलूम नदवा और बाबरी एक्शन कमिटी तरफ से सकारात्मकता दिखाने की पूरी कोशिश हो रही है. लेकिन खेमो में बंटे हिन्दू पक्ष का संदेह बरक़रार है.
राम मंदिर निर्माण को ले कर विश्व हिन्दू परिषद् चाहे जितना भी बोले मगर आज की हकीकत ये ही है की विहिप को अयोध्या में समर्थन नहीं मिल रहा. बीते दिनों जब विहिप ने इस मुद्दे को गरमाने के लिए अयोध्या में बड़ा कार्यक्रम किया तभी ये बात साफ़ हो गयी की अशोक सिंघल और प्रवीण तोगड़िया के बाद विहिप की कमान सम्हालने वाले नेता असरदार साबित नहीं हो पा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामला मध्यस्थता के लिए जिन न्यायाधीश एफ एम कलीफुल्ला को पैनल का मुखिया बनाया है वे जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं और बाद में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रहे. वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू इस पैनल में दूसरे और श्री श्री तीसरे सदस्य हैं. कोर्ट ने कहा है की एक हफ्ते के भीतर प्रक्रिया शुरू कर के चार हफ्तों बाद उसे प्रगति बताई जाए. कमेटी से ये भी कहा गया है की पुरे मामले पर 8 हफ्तों में उसे अपनी रिपोर्ट दाखिल कर देनी होगी.
यानी, जब देश में आम चुनाव हो रहे होंगे उसी वक्त अयोध्या में मध्यस्थता कर रही कमेटी की रिपोर्ट भी आएगी। अयोध्या विवाद ने बीते तीन दशकों में भारतीय चुनावी राजनीती पर अपना खूब असर डाला है।
तो क्या इस बार भी चुनावो के बीच संभावित ये रिपोर्ट भारत की अगली सरकार तय करने में अपनी भूमिका निभाएगी ये एक सवाल है। सवाल ये भी हैं की अयोध्या के संतो महंतो का इस कमेटी को कितना सहयोग मिल रहा है ? और सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या ये कमेटी देश के सबसे बड़े धार्मिक विवाद का एक खूबसूरत अंत कर पाने में कामयाब होगी ?
देश तो यही चाहता है।