Sunday - 27 October 2024 - 10:37 PM

मुनव्वर राना के “डर” के मायने

राजीव ओझा

ठीक ही कहा गया है अज्ञानता से कहीं ज्यादा खतरनाक है आधा अधूरा ज्ञान। यह हर क्षेत्र पर लागू होता है। बड़ा खतरा यह है कि लोग आप की इस कमजोरी का फायदा उठाकर आपका इस्तेमाल कर सकते हैं। जैसे आजकल दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं। कहा जा रहा है की सरकार मनमाने ढंग से इस धारा का नाजायज इस्तेमाल का रही है। खासकर नागरिकता संशोधन क़ानून पर देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर कई जगह धारा 144 लागू की गई है। इस समय लखनऊ समेत पूरे उत्तर में धारा 144 लागू है।

दिल्ली के शाहीनबाग की तर्ज पर पुराने लखनऊ के घंटाघर पर भी नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के विरोध में धरना चल रहा है। फर्क इतना है कि लखनऊ में धरना देने वालों ने रोड नहीं जाम की है। मुद्दा कोई भी हो लोकतंत्र में प्रदर्शन करने और अपनी बात कहने का सबको अधिकार है। लेकिन चिंता तब होती है जब मुनव्वर राना जैसे ज़हीन शायर भी धारा 144 को लेकर अधूरी जानकारी रखते हों। सीएए पर भी उनकी जानकारी एकतरफा है।

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मुनव्वर राना बहुत ही संवेदनशील और भावुक शायर हैं। लेकिन जब वो धारा 144 का जिक्र करते हुए भेदभाव का आरोप लगाते हैं और लखनऊ के धरना-प्रदर्शन की तुलना बीजेपी कार्यकर्ताओं की सभा से करते हैं तो चिंता की बात है। उनका आरोप है कि घंटाघर पर शांतिपूर्ण ढंग से धरना दे रही महिलाओं को पुलिस धारा 144 की आड़ में प्रताड़ित कर रही है लेकिन पिछले दिनों जब गृहमंत्री अमित शाह ने लखनऊ में हजारों कार्यकर्ताओं के साथ सभा की तब धारा 144 क्यों लागू नहीं होती? मुनव्वर राना ने सीएए में शरणार्थियों को नागरिकता देने वालों की लिस्ट में मुसलमानों का नाम न होने पर भी सवाल उठाये हैं। इस पर सरकार और कानूनविद बार बार सफाई दें चुके हैं और अब सीएए का मामला सुप्रीम कोर्ट में है।

इसी तरह कुछ दिनों पहले जब बंगलुरु में धारा 144 लागू होने के बाद बेंगलुरु में मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा को पुलिस ने हिरासत में ले लिया तो उस वक्त भी सवाल उठा कि था कि जब वहां दो ही लोग मौजूद थे तो रामंचद्र गुहा को धारा 144 के उल्लंघन में किस आधार पर हिरासत में लिया गया ?

आखिर क्या है मुनव्वर के तनाव की वजह

मुनव्वर राना गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल हैं और उत्तर प्रदेश के लोग उन्हें बेइंतहा पसंद करते हैं। लेकिन मुनव्वर इस तरह की आधी-अधूरी जानकारी के साथ जिस तरह के आरोप लगा रहे हैं, वह चिंताजनक है। इसकी दो वजह हो सकती है। पहली, धारा 144 की सही जानकारी न होना। दूसरी, किसी तरह का डर या तनाव।

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लखनऊ के घंटाघर पर धारने में मुनव्वर राना की पढी-लिखी बेटियों ने भी हिस्सा लिया और पुलिस ने उनके खिलाफ धारा 144 के तहत मामला दर्ज किया है। मुनव्वर राना के तनाव की एक वजह यह भी हो सकती है और दूसरी वजह कानून की पूरी जानकारी न होना, चाहे वह नागरिकता कानून हो या धारा 144 के तहत कारवाई का मामला।

क्या है सीआरपीसी की धारा 144

दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिए मुख्य कानून है। यह देश में 1 अप्रैल 1974 को लागू किया गया। इस बात को समझने की जरूरत है कि सीआरपीसी की धारा 144 के प्रावधानों के मुताबिक सिर्फ 3 या 5 से ज्यादा व्यक्ति के एक जगह पर इकट्ठा होने पर नहीं बल्कि एक व्यक्ति के भी वहां होने पर उसे हिरासत में लिया जा सकता है।

किसी जगह की शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए वहां धारा 144 लगाई जाती है। धारा 144 दंगा या विरोध प्रदर्शन के बाद भी लगाई जा सकती है और कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका को देखते हुए, इसे पहले भी लागू किया जा सकता है। इस धारा के जरिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार अधिकृत एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट धारा 144 लागू करने की सूचना जारी कर सकते हैं। ये किसी खास व्यक्ति, किसी खास जगह पर रहने वाले व्यक्तियों या फिर किसी खास जगह पर रहने या घूमने वाली आम जनता के खिलाफ जारी हो सकता है।

राम मनोहर लोहिया ने 1967 में एक ऐसे ही मामले में कोर्ट के सामने धारा 144 लगाए जाने को चुनौती दी थी। हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि कोई भी लोकतंत्र सुरक्षित नहीं रह सकता, अगर नागरिकों के एक समूह को तोड़-फोड़ और अराजकता फैलाने की इजाजत दे दी जाए। इस लिए यह तय करने का अधिकार मजिस्ट्रेट को है कि वह किसे शांति व्यवस्था के लिए खतरा मानता है।

अंत में यहाँ सवाल यह नहीं कि मुनव्वर राना डरे हुए हैं, सवाल यह है की समाज का एक बड़ा वर्ग डरा हुआ है। यह पूरे समाज के लिए नुकसानदायक है। इनको जो भी डरा रहा वह गुनहगार है। डर अगर अज्ञानता की वजह से है तो उनको सही जानकारी देनी की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। अंत में मुनव्वर राना का एक शेर…

बिछड़ेंगे तो मर जाएंगे हम दोनों बिछड़कर
इक डोर में हमको यही डर बांधे हुए हैं…

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