Tuesday - 29 October 2024 - 6:38 PM

…तो शायद फिर निकले संभावनाओं का सूरज

शबाहत हुसैन विजेता

देश मंदी के दौर से गुजर रहा है। आटो सेक्टर बंदी की कगार पर है। कर्मचारियों की छंटनी शुरू हो चुकी है। कहां तो वादा यह था कि हर साल दो करोड़ रोजगार दिये जाएंगे कहां हालात ऐसे हो गये हैं कि रोजगार घट रहे हैं। आटो सेक्टर से ही तीन हजार कर्मचारी एक झटके में निकाल दिये गये। तस्वीर साफ है कि कहां तो तय था चरागां हर एक घर के लिये, कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिये।

राम मंदिर का मामला अपनी जगह पर ही रुका हुआ है। इस मामले को सुलझाने के लिये हर संभव उपाय किये गये। अदालत की सहमति से मध्यस्थता कमेटी बनायी गयी। इस कमेटी की कोशिशें पूरी तरह से फेल हो गयीं। मध्यस्थता के जरिये राम मंदिर का मसला सुलझाया नहीं जा सका तो तय हुआ कि अदालत रोजाना सुनवाई कर इस मामले का फैसला जल्दी से सुना देगी। सुनवाई शुरू होती उससे पहले ही निर्मोही अखाड़े के कागज चोरी चले गये। इतने महत्वपूर्ण मामले के कागजात भी सुरक्षित नहीं हैं तो फिर यह उम्मीद करना ही बेवकूफी है कि मंदिर मसला इतनी आसानी से हल हो जायेगा।

हिन्दुस्तान गंगा जमुनी तहजीब का मरकज रहा है। इस मुल्क में हिन्दू मुसलमान मिल जुलकर रहते आये हैं। शायद यह दुनिया का इकलौता मुल्क हो जहां पर हिन्दुओं ने मस्जिदें और इमामबाड़े बनवाये और मुसलमानों ने मंदिरों का निर्माण करवाया। यहां सदियों से सभी मिलकर रहते आये हैं लेकिन अब अचानक हालात ऐसे बनाये जा रहे हैं जैसे कि हिन्दू-मुसलमानों के बीच कभी कोई रिश्ता ही न रहा हो। सोशल मीडिया पर नफरत की आंधी चलाई जा रही है। आंधी भी इस तरह की है जिसमें हालात लगातार बदतर होते ही दिखाई दे रहे हैं। हालात बिगाड़ने की इस मुहिम में कई सीनियर अफसर भी शामिल हैं।

मीडिया को हमेशा से समाज का आइना कहा जाता रहा है। मीडिया की भूमिका हमेशा से विपक्ष की रही है। मीडिया सरकार को हकीकत से रूबरू कराने का सबसे बड़ा टूल रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में सबसे बुरी हालत मीडिया की ही बनी है। मीडिया को अब यह छूट नहीं है कि वह सरकार के खिलाफ आवाज उठाये। जिसने भी आवाज उठाने की कोशिश की उसकी आवाज बंद करने के लिये उसकी मुश्कें कसने का काम शुरू कर दिया गया। आटो सेक्टर के बाद मीडिया ही वह सेक्टर है जहां सबसे ज्यादा बेरोजगारी ने दस्तक दी है। कई नामचीन पत्रकार अपने संस्थानों से बाहर निकाल दिये गये। लोकतंत्र का चौथा खंभा इस कदर बीमार कभी नहीं रहा है।

कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है लेकिन पड़ोसी मुल्क से लगातार मिलने वाले जख्मों की वजह से यह आजादी के बाद से लगातार लहूलुहान होता रहा है। आजादी के वक्त कश्मीर में धारा 370 लगाई गई थी। इस धारा की वजह से इस सूबे में किसी दूसरे सूबे में पैदा होने वाला जमीन नहीं खरीद सकता था।

इस सूबे का अलग संविधान भी था। भारत सरकार ने कश्मीर से धारा 370 हटाकर इसे भारत का अभिन्न अंग फिर से कर दिया लेकिन दूसरे राजनीतिक दलों को विश्वास में न लिये जाने की वजह से कश्मीर में आ रही दिक्कतों से भी सरकार को अकेले ही जूझना पड़ रहा है। कश्मीर के एक बड़े हिस्से में कर्फ्यू लगा हुआ है और इंटरनेट सेवाएं रोक दी गयी हैं। कश्मीर के कई क्षेत्रों में हालात काबू में नहीं हैं। हालात को काबू में रखने के लिये ही सेना तैनात है और बाकी देश से कश्मीर का सम्पर्क टूटा हुआ है।

अपराधियों पर अंकुश का सरकार का दावा है लेकिन अपराध हैं कि थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। महिला सम्बन्धी अपराधों की तो बाढ़ जैसी आ गयी है। रेप जैसे खेल हो गया है। इस काम में जनप्रतिनिधि भी शामिल हैं। दिल्ली के निर्भया कांड के बाद सरकार ने सख्त कदम उठाये थे और रेप के मामलों में फांसी तक की सजा का प्राविधान किया गया था लेकिन इस कानून के बन जाने के बाद भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हो पाईं।

उन्नाव के रेप केस में पड़िता ने सत्ता पक्ष के विधायक पर उंगली उठा दी तो हंगामा खड़ा हो गया। हालांकि सरकार ने विधायक को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया लेकिन विधायक के जेल जाने के बाद सबूत मिटाने की तरकीबें निकाली जाने लगीं। रेप पीड़िता की गाड़ी पर हमला कर दिया गया। पीड़िता गंभीर हालत में दिल्ली के एम्स में जिन्दगी की जद्दोजहद में लगी है।

मामले बहुत से हैं जिनसे हर खास-ओ-आम जूझ रहा है। जनता को उम्मीद है कि सरकार की कोशिशों से हालात सामान्य जरूर हो जाएंगे लेकिन सरकार को लगता है कि इन सारी मुसीबतों की जड़ जनसंख्या विस्फोट है। सरकार ने जनसंख्या की बढ़ती रफ्तार पर हर हाल में ब्रेक लगाने का फैसला कर लिया है।

पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से एलान कर दिया है कि जनसंख्या की बढ़ती रफ्तार को हर हाल में रोका जायेगा। हम थोड़ा पीछे जाएं तो संजय गांधी ने जनसंख्या विस्फोट पर अंकुश की बात करीब 45 साल पहले की थी।

संजय गांधी ने अपनी नीति के तत्काल क्रियान्वयन के लिये नसबन्दी का प्लान पेश कर दिया था। डाक्टरों के लिये नसबन्दी का कोटा तय कर दिया गया था। इस कोटे को पूरा करने के लिये बहुत से लोगों के साथ अन्याय किया गया। बहुत से कुंवारे लोगों की नसबन्दी कर दी गयी। कुंवारों की नसबन्दी और इसके बाद आम आदमी की आवाज को रोकने के लिये इमरजेन्सी का एलान कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि इन्दिरा गांधी चुनाव हार गयीं।

आज देश फिर उसी दोराहे पर खड़ा है। मौजूदा सरकार ने फिर से जनसंख्या विस्फोट पर विराम लगाने का फैसला किया है। यह फैसला गलत भी नहीं है लेकिन बेहतर होता कि इन्दिरा गांधी को हराकर हुकूमत में आने वाली नयी सरकार परिवार में होने वाले बच्चो की संख्या तय कर देती। नसबन्दी की प्रक्रिया जारी रहती लेकिन लोगों पर जुल्म रुक जाता तो अब तक जनसंख्या का जिन्न काबू में होता। मौजूदा सरकार इस प्रक्रिया को फिर शुरू करे लेकिन पुरानी गल्तियों से सीखते हुए तो शायद आने वाले दिनों में संभावनाओं का नया सूरज निकल आये।

(लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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