न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव से पूर्व समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने ढाई दशक की दुश्मनी को खत्म कर जिस तरह दोस्ती की थी, वह दोस्ती तो नहीं रही, लेकिन 1995 के गेस्ट हाउस कांड में मुलायम सिंह के खिलाफ दर्ज मुकदमा खत्म हो गया है। चुनावी गठबंधन के एक महीने के भीतर मायावती ने सुप्रीम कोर्ट से औपचारिक रूप से मुकदमा वापस ले लिया था।
बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने स्वयं इसकी पुष्टि की है, लेकिन विस्तृत जानकारी कोई नहीं दी है। गठबंधन टूटने के छह माह बाद सपा के प्रति यह नरमी चौंकाने वाली है।
गौरतलब है कि बसपा-सपा से गठबंधन करके 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ी थी। स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा-बसपा करीब 24 साल बाद एक साथ आए थे, लेकिन चुनाव में बेहतर परिणाम न आने के बाद मायावती ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर 4 जून 2019 को सपा से गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया।
इसके बाद दोनों पार्टियों के बीच राजनीतिक रिश्ते पूरी तरह से खत्म होते नजर आए। इसके ठीक छह महीने बाद अचानक बसपा सुप्रीमो द्वारा सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ स्टेट गेस्ट हाउस कांड में मुकदमा वापस लेने के लिए शपथ पत्र देने के अब राजनीतिक मायने तलाशे जा रहे हैं।
जानकारों की माने तो उपचुनाव में जिस तरह से सपा तीन सीटों पर जीत हासिल की और प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। उसके बाद मायावती एक बार फिर 2022 में सपा के साथ गठबंधन पर विचार कर सकती हैं। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चल रहे मुकदमा वापस लेने को इस कड़ी के रूप में देखा जा सकता है।
12 नेताओं के खिलाफ दर्ज
बताते चले कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2 जून 1995 का दिन स्टेट गेस्ट हाउस कांड के रूप में जाना जाता है। मायावती पर हमले के विरोध में मुलायम सिंह यादव उनके छोटे भाई शिवपाल यादव, सपा के वरिष्ठ नेता धनीराम वर्मा, मो. आजम खान, बेनी प्रसाद वर्मा समेत 12 नेताओं के खिलाफ हजरतगंज कोतवाली में तीन मुकदमे दर्ज हुए थे।
इनमें से सिर्फ मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के लिए शपथ पत्र दिया गया है। सतीश चंद्र मिश्रा ने इसकी पुष्टि करते हुए सिर्फ इतना कहा कि मुलायम के खिलाफ मुकदमा वापस लेने का शपथ पत्र भेज दिया गया है।
26 फरवरी के आदेश में कोर्ट ने कहा है कि आठ जनवरी को दोनों पक्षों ने संयुक्त रूप से अनुरोध किया था कि उन्हें चार सप्ताह का समय दिया जाए। आठ जनवरी से पहले यह मुकदमा गत वर्ष 19 सितंबर और 14 नवंबर को भी लगा था। इन तारीखों पर भी पक्षकारों ने आपस में समझौते की बातचीत चलने के आधार पर सुनवाई स्थगित करा ली थी।
जनवरी में जब सपा-बसपा का गठबंधन हुआ था उस वक्त अखिलेश यादव ने बसपा सुप्रीमों से यह मुकदमा वापस लेने का अनुरोध किया था। मौजूदा वक्त में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।
बसपा सुप्रीमो मायावती ऐसा करने का संकेत देकर सपा को उत्साहित तो किया था, लेकिन कभी औपचारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं की। सुप्रीम कोर्ट में बसपा की अपील पूरे 15 साल लंबित रही।
दोनों दलों के बीच बातचीत और समझौता होने की संभावनाओं के आधार पर पहले तो कई सुनवाइयों पर दोनों पक्षों ने सहमति से अपीलों पर सुनवाई का स्थगन लिया। इसके बाद 26 फरवरी, 2019 को बसपा की ओर से पेश वकील ने न्यायाधीश एनवी रमना, इंद्रा बनर्जी और हेमंत गुप्ता की पीठ से अपील वापस लेने की इजाजत मांगी।
क्या हुआ था
घटना दो जून 1995 को लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित वीआइपी गेस्ट हाउस में हुई थी। बसपा ने उत्तर प्रदेश में सपा की तत्कालीन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। उस समय मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे। बसपा का आरोप था कि समर्थन वापस लेने के बाद सपा ने उसके पांच विधायकों का गेस्ट हाउस से अपहरण कर लिया और उन्हें विक्रमादित्य मार्ग ले गए जहां मुलायम सिंह व अन्य मंत्री मौजूद थे।
वहां विधायकों को समर्थन के बदले में 50-50 लाख रुपये और मंत्री पद का प्रलोभन दिया गया। इसी मामले को लेकर मायावती ने गेस्ट हाउस में बसपा के विधायकों की बैठक बुलाई थी। इस बीच सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया। मायावती खुद को बचाने केलिए कमरे में बंद हो गईं। सपा कार्यकर्ता बुरी तरह हमलावर थे।