उत्तर प्रदेश में सियासी शक्ति को पुनः हासिल करने के लिए बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अपनी रणनीतियों को धार देना शुरू कर दिया है। 13 साल से सत्ता से दूर बसपा अब मिशन-2027 पर केंद्रित है, और पार्टी का सियासी आधार फिर से मजबूत करने की कवायद शुरू हो गई है। मायावती ने पार्टी संगठन में बदलाव, ओबीसी समुदाय को जोड़ने के लिए नए प्रयास और सपा के वोटबैंक में सेंधमारी के लिए रणनीतियां बनाई हैं।
ओबीसी नेताओं को बैठक में बुलाना:
मायावती ने पहली बार प्रदेश के ओबीसी नेताओं को पार्टी की बैठक में बुलाया है। इसका उद्देश्य ओबीसी समुदाय को फिर से बसपा के साथ जोड़ने के लिए नए समीकरण तैयार करना है। ओबीसी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पार्टी नए तरीके से रणनीति बना रही है।
भाईचारा कमेटी का पुनर्गठन:
मायावती ने 13 साल बाद ‘भाईचारा कमेटी’ को फिर से बहाल करने का निर्णय लिया है। इस कमेटी का उद्देश्य दलित, ओबीसी, मुस्लिम, और अन्य सामाजिक समूहों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है। पहले चरण में एससी, एसटी, ओबीसी और मुस्लिम समाज को शामिल किया गया है।
सपा के पीडीए में सेंधमारी:
मायावती ने सपा के पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) फॉर्मूले पर आक्रमण करने की योजना बनाई है। बसपा ओबीसी और दलित वोटों के आधार पर सपा के समीकरण में सेंधमारी करने की कोशिश में है।
नई नियुक्तियों और संगठनात्मक सुधार:
मायावती ने संगठन को नया दिशा देने के लिए जिले और विधानसभा क्षेत्रों में नए जिला अध्यक्ष और प्रभारी नियुक्त किए हैं। इस प्रक्रिया में युवा नेताओं को प्रमुख जिम्मेदारियां दी गई हैं ताकि पार्टी को मजबूत किया जा सके।
चंदा लेने की प्रथा समाप्त करना:
मायावती ने पार्टी कैडर को चंदा देने की परंपरा समाप्त करने का आदेश दिया है। अब पार्टी के कार्यकर्ता आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से आते हैं, और इससे पार्टी की छवि में सुधार लाने की कोशिश की जा रही है।
200 विधानसभा सीटों पर प्रभारी नियुक्ति:
मायावती ने 2027 विधानसभा चुनाव के लिए लगभग 200 कमजोर सीटों पर पार्टी प्रभारी नियुक्त करने की योजना बनाई है। यह प्रभारी आगामी चुनावों के लिए उम्मीदवारों का चयन करेंगे और पार्टी की चुनावी तैयारी को तेज करेंगे।
समान सामाजिक समूहों को जोड़ना:
बसपा अब दलितों और ओबीसी के साथ-साथ अन्य सामाजिक वर्गों को भी जोड़ने की कोशिश कर रही है। पार्टी का लक्ष्य एक मजबूत सामाजिक गठबंधन बनाने का है, जैसा कि 2007 में बसपा ने किया था, जब कांशीराम के नेतृत्व में दलित, ओबीसी और ब्राह्मण समाज को जोड़कर सत्ता में आई थी।
पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण और बैठकें:
पार्टी ने मार्च से कैडर बैठकें शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देना और चुनावी रणनीतियों पर चर्चा करना है। इसके अलावा, अक्टूबर से देशभर में बैठकें आयोजित करने का भी कार्यक्रम है।
बसपा का फोकस सपा और बीजेपी पर:
बसपा प्रमुख मायावती ने यह स्पष्ट किया है कि पार्टी का फोकस सपा और बीजेपी दोनों पर है। ओबीसी और दलित समुदाय को जोड़ने की योजना के तहत बसपा सपा के पीडीए फॉर्मूले में सेंधमारी की कोशिश कर रही है, वहीं बीजेपी के कोर वोटबैंक को भी प्रभावित करने की रणनीति बनाई है।
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चुनावी उम्मीदवारों का चयन:
मायावती ने चुनावी तैयारियों को और तेज कर दिया है। पार्टी ने अपनी कमजोर सीटों पर उम्मीदवारों का चयन करना शुरू कर दिया है और मजबूत सीटों पर भी उम्मीदवारों को तलाश रही है, ताकि 2027 के चुनाव में उन्हें पूरी ताकत मिल सके।
इन कदमों के माध्यम से मायावती अपनी पार्टी को पुनः मजबूत करने की दिशा में काम कर रही हैं। बसपा की यह रणनीति सपा और बीजेपी दोनों के लिए चुनौती बन सकती है, क्योंकि वह अपनी पुरानी ताकत को वापस लाने और यूपी में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।