जुबिली न्यूज डेस्क
देश में जब ज़्यादातर पार्टियों ने आने वाले लोकसभा चुनाव में अपना साइड चुन लिया है, ऐसे समय में मायावती उन चंद अहम नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने कहा है कि वो लोकसभा चुनाव किसी गठबंधन में नहीं लड़ेंगी.
चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती ने मंगलवार को एक प्रेस रिलीज़ के ज़रिए ये कह दिया है कि वो चुनाव में अकेले मैदान में उतरेंगी. लेकिन इंडिया गठबंधन की मुंबई में होने वाली तीसरी मुलाक़ात से पहले ये अटकलें तेज़ हो गई हैं कि वो इस गठबंधन का हिस्सा हो सकती हैं.
भले ही अभी मायावती ने ये कह दिया है कि वो आगामी आम चुनाव अकेले लड़ेंगी लेकिन बसपा पर नज़र रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि वो अपने पत्ते तब खोलेंगी जब चुनाव और क़रीब होगा. 80 लोकसभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश आम चुनाव के लिहाज़ से सबसे बड़ा राज्य है.
एक अनुमान के मुताबिक़ यहां 21 फ़ीसदी आबादी दलितों की है और दलितों के बीच मायावती की अच्छी पैठ मानी जाती है. ऐसे में मायावती का सियासी क़दम क्या होगा इस पर सबकी नज़रें हैं.
क्या मायावती विपक्षी गठबंधन में जाएंगी?
लेकिन सवाल ये है कि आख़िर मायावती किसी गठबंधन के साथ क्यों नहीं जा रही हैं? 31 अगस्त से एक सितंबर तक मुंबई में इंडिया गठबंधन की 26 पार्टियां मिलने वाली हैं और माना जा रहा है कि इसमें सीट शेयरिंग पर बात होगी. राजनीति के जानकार ये बात बार-बार दोहरा रहे हैं कि इंडिया गठबंधन को ये तय करना होगा कि चुनावी लड़ाई द्विपक्षीय हो, यही उनके लिए फ़ायदेमंद होगा.
मायावती से किसे नफ़ा किसे नुक़सान?
भले ही ये कहा जा रहा हो कि मायावती का वोट बैंक दरक रहा है, वो आज उतनी मज़बूत नहीं हैं, जितनी हुआ करती थीं. लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि मायावती इतना दम ज़रूर रखती हैं कि वो आने वाले चुनाव में गठबंधन को नुक़सान पहुंचा सकें.
कहा जा रहा है कि अगर मायावती इंडिया और एनडीए दोनों के साथ चुनाव नहीं लड़ती हैं तो ज़्यादा नुकसान इंडिया गठबंधन का हो सकता है. लेकिन बीजेपी के लिए ये एक ‘मनपसंद’ परिस्थिति होगी, क्योंकि अगर विपक्ष को नुक़सान पहुँचता है तो इससे उसे फ़ायदा होगा.
सपा और बसपा के बीच जो हुआ है, उससे दोनों का साथ आना थोड़ा मुश्किल लगता है और अगर दोनों पार्टियां साथ आ भी गईं तो सीटों की शेयरिंग पर बात बननी मुश्किल होगी. बीजेपी भी यही सोच रही है कि अगर बसपा के साथ गठबंधन किया को सीटों की शेयरिंग में दिक्क़त होगी.
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कौन सी पार्टी दोनों गठबंधन से दूर हैं?
जो पार्टियां अब तक दोनों ही बड़े गठबंधनों से दूर हैं, उन पर और उनकी राजनीति पर एक नज़र शिरोमणि अकाली दल, बीजू जनता दल वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और तेलगू देशम पार्टी, जानकार मानते हैं कि यहां दोनों ही दल एनडीए में शामिल होना चाहते हैं लेकिन बीजेपी सोचसमझ कर फ़ैसला लेना चाहती है कि वो किसे अपना साझेदार बनाएगी.