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मध्‍य प्रदेश में किसका नुकसान करेंगी मायावती

जुबिली न्यूज़ डेस्क

बिहार हो रहे विधानसभा चुनाव के बीच राजनीतिक दलों की नजरें उत्‍तर प्रदेश और मध्‍य प्रदेश में हो रहे उपचुनाव पर टिकीं हुई हैं। राज्‍यसभा चुनाव के बीच यूपी में नए राजनीतिक समीकरण बनने लगे हैं। वहीं इसका असर मध्‍य प्रदेश में देखा जा रहा है।

दरअसल, मायावती ने बीजेपी को समर्थन देने की बात कह सियासी भूचाल ला दिया है। जिसके बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा होने लगी है कि क्‍या कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए मायावती एमपी उपचुनाव में बीजेपी को समर्थन करेंगी।

बता दें कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि यूपी में विधान परिषद चुनावों में समाजवादी पार्टी को हराने के लिए उनकी पार्टी बीजेपी से भी हाथ मिला सकती है। स्पष्ट है कि बसपा बीजेपी-विरोधी पार्टियों का खेल खराब करने की रणनीति पर काम कर रही है।

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माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर हो रहे उपचुनावों में भी मायावती की पार्टी कमोबेश इसी रणनीति पर काम कर रही है। उपचुनावों के लिए बसपा ने जिन सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं, उन पर वे कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए मुसीबत बन सकते हैं।

उपचुनाव की 28 में से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की हैं, जहां पहले से ही बीएसपी का प्रभाव ज्यादा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा को जिन दो सीटों पर जीत मिली थी, वे भी इसी क्षेत्र की हैं। इसके अलावा कई सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। बसपा ने 28 में से 27 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं जो बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस की वोटों में सेंधमारी कर सकते हैं।

2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल संभाग की 15 सीटों पर बसपा को निर्णायक वोट मिले थे। दो सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे, जबकि 13 सीटों पर बसपा प्रत्याशियों को 15 हजार से लेकर 40 हजार तक वोट मिले थे। ग्वालियर-चंबल की जिन सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, उनमें से मेहगांव, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, भांडेर, करैरा और अशोकनगर में पहले बसपा जीत दर्ज कर चुकी है।

2018 में मुरैना में बीजेपी प्रत्याशी की हार में बसपा की मौजूदगी प्रमुख कारण था। इसके अलावा पोहरी, जौरा, अंबाह में बसपा के चलते बीजेपी तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी। उसकी मौजूदगी से इनमें से अधिकांश सीटों पर उपचुनावों में भी मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है।

2018 के विधानसभा चुनावों से पहले एससी-एसटी एक्ट को लेकर हुए आंदोलन के चलते माहौल बीजेपी के खिलाफ था। इसलिए, बसपा को मिले वोट कांग्रेस की जीत में मददगार साबित हुए थे, लेकिन इस बार माहौल पूरी तरह अलग है।

ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब बीजेपी के साथ हैं। एससी-एसटी एक्ट जैसा कोई मुद्दा भी नहीं है। इसलिए, बसपा को मिलने वाले वोट बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।

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गौरतलब है कि मध्‍य प्रदेश का उपचुनाव तय करेगा कि राज्‍य में शिवराज सिंह की सरकार बचेगी या फिर कांग्रेस की फिर से वापसी होगी। इसलिए 28 सीटों पर होने वाले चुनावों को प्रदेश में मिनी विधानसभा चुनाव भी कहा जा रहा है।

ऐसा कहना इसलिए भी लाजमी है कि प्रदेश में 16 साल में 30 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए, लेकिन 15वीं विधानसभा में पहली बार एक साथ 28 सीटों पर उपचुनाव होंगे। इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का भविष्य दांव पर लगा हुआ है।

शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ का आगे का राजनीतिक रास्ता कैसा होगा ये सब चुनाव नतीजे ही बताएंगे। हालांकि रिक्त हुए विधानसभा क्षेत्रों से जो रुझान मिल रहे हैं उनके अनुसार चुनाव में दोनों ही पार्टियों को भितरघात का खतरा ज्यादा है।

 

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