मल्लिका दूबे
गोरखपुर। वही हुआ जिसका अंदेशा लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के दिन से बना हुआ था। बसपा सुप्रीमो मायावती ने सोमवार को दिल्ली में हुई पार्टी की समीक्षा बैठक के दौरान जो संकेत दिये हैं, उससे यूपी में सपा-बसपा का गठबंधन टूटना तय माना जा रहा है। पर, इस संकेत के पीछे मायावती ने जो तर्क दिए हैं, वो पूर्वी उत्तर प्रदेश के आंकड़ो के आईने में फिट नहीं बैठ रहे हैं।
मायावती का यह कहना कि सपा का यादव वोट बैंक बसपा के पक्ष में ट्रांसफर नहीं हुआ, शिवपाल सिंह यादव ने इसे भाजपा के पक्ष में ट्रांसफर करा दिया, बेहद अजीबोगरीब लगता है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि जहां भी शिवपाल की पार्टी के प्रत्याशी मैदान में रहे, उन्हें पूर्ण रूप से एक प्रतिशत मत भी प्राप्त नहीं हुआ है। ऐसे में शिवपाल और यादव वोट बैंक को लेकर बसपा सुप्रीमो द्वारा गढ़ा गया तर्क ही सवालों के जद में आ जा रहा है।
बिना सपा के वोट पाए कैसे सुधरा बसपा का ग्राफ !
दिल्ली में पार्टी के नवनिर्वाचित सांसदों, पराजित प्रत्याशियों और पदाधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक के दौरान बसपा सुप्रीमो मायावती ने यह माना कि लोकसभा चुनाव में सपा का यादव वोट बैंक बसपा के पक्ष में नहीं आया।
पूर्वी यूपी की बात करें तो बसपा के जीते दस सांसदों में से छह इसी अंचल से जीते हैं जबकि सपा से मात्र एक जीत पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को मिली। दोनों पार्टियों के पराजित प्रत्याशियों को मिले वोटों को देखे तो बसपा के प्रत्याशी तुलनात्मक रूप से कम मतों के अंतर से हारे जबकि सपा के प्रत्याशी बड़े अंतर से।
बसपा सुप्रीमो के तर्क को सही मान लें तो ऐसा लगता है कि बसपा के टिकट पर अंबेडकरनगर से रीतेश पांडेय, गाजीपुर से अफजाल अंसारी, घोषी से अतुल कुमार सिंह, लालगंज से संगीता आजाद, जौनपुर से श्याम सिंह यादव और श्रावस्ती से राम शिरोमणि सिर्फ बसपा के ही वोट बैंक से जीत गये, सपा के वोट बैंक का कोई योगदान नहीं था।
फिट नहीं बैठ रहा यादव वोट बैंक और शिवपाल का कनेक्शन
सपा के यादव वोट बैंक को शिवपाल सिंह यादव द्वारा भाजपा के पक्ष में ट्रांसफर कराने का तर्क फिट नहीं बैठ रहा है। लोकसभा चुनाव में शिवपाल सिंह यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का कोई भी प्रत्याशी पूर्वी यूपी में एक फीसद मत के आंकड़े पर भी नहीं ठहरता है।
मसलन वीआईपी सीट गोरखपुर पर शिवपाल की पार्टी के प्रत्याशी श्याम नारायण यादव को यादव जाति का होने के बादजूद महत 0.23 प्रतिशत (2708 वोट), बांसगांव सुरक्षित से सुरेंद्र प्रसाद को 0.9 प्रतिशत, सलेमपुर में पूजा पांडेय को 0.19 प्रतिशत, अंबेडकरनगर में प्रेमनाथ निषाद को 0.22 प्रतिशत, गाजीपुर में संतोष यादव को 0.22 प्रतिशत, लालगंज से हेमराज पासवान को 0.24 प्रतिशत, जौनपुर से संगीता देवी को 0.36 प्रतिशत, फूलपुर से प्रिया सिंह पाल को 0.16 प्रतिशत तथा मिर्जापुर से आशीष त्रिपाठी को 0.36 प्रतिशत वोट ही हासिल हुए।
तो क्या बसपा का वोट बैंक सपा को ट्रांसफर हुआ !
यूपी में सपा-बसपा का गठबंधन फाइनली टूटा तो सपा भी बसपा के वोट शिफ्टिंग को लेकर सवाल उठा सकती है। पूर्वी यूपी के चुनावी आंकड़े काफी हद तक उसे इस सवाल के लिए जमीन भी उपलब्ध कराएंगे। पूर्वांचल में सपा प्रत्याशियों की हार अधिक मार्जिन से हुई है। पूरे पूर्वांचल मे सिर्फ सपा प्रमुख अखिलेश यादव ही अपनी पार्टी को जीत दिला पाए, अन्य सभी प्रत्याशियों की हार हुई।
अब जरा सपा के कुछ पराजित प्रत्याशियों का रिकार्ड देखें तो उप चुनाव में सपा के कब्जे में रही गोरखपुर संसदीय सीट पर पार्टी के प्रत्याशी रामभुआल निषाद 25.47 प्रतिशत मतों के अंतर से हार गये। इसी तरह महराजगंज में सपा के पूर्व सांसद अखिलेश सिंह 27.75 प्रतिशत तथा कुशीनगर में नथुनी प्रसाद कुशवाहा 32.05 प्रतिशत मतों के फासले से चुनाव हारे।
सपा के इन तीनों प्रत्याशियों के हार का अंतर तीन लाख से अधिक वोटों का रहा। जबकि बसपा के संतकबीरनगर और बस्ती के प्रत्याशी 35 और 30 हजार मतों के अंतर से ही पराजित हुए। सवाल लाजिमी बनता है कि बसपा का वोट अच्छी तरह शिफ्ट हुआ होता तो सपा के प्रत्याशियों की इतनी करारी हार कैसे हो जाती।