जुबिली न्यूज डेस्क
दुनिया का 28वां सबसे गरीब देश नेपाल इन दिनों अनचाही प्रेग्नेंसी रोकने के मामले में रोल मॉडल बना हुआ है। ‘कॉन्ट्रासेप्टिव इम्प्लांट्स’ की एक छोटी सी डिवाइस इस छोटे से देश को बड़ा बना रही है। फैमिली प्लानिंग का सबसे पुराना और सफल मॉडल लागू करने वाले भारत में भी अनचाही प्रेग्नेंसी रोकने की करीब 100 फीसदी कामयाब यह तकनीक नहीं अपनाई गई है। यहां से बड़ी संख्या में महिलाएं सीमापार करके नेपाल जा रही हैं।
अनचाही प्रेग्नेंसी बड़ी समस्या
कपल्स के लिए अनचाही प्रेग्नेंसी हजारों साल से समस्या बनी हुई है। तभी इससे बचने के लिए तरह-तरह के जतन किए जाते रहे हैं। साढ़े 3 हजार साल पहले इजिप्ट में शहद, पेड़ों की छाल और पत्तियों से बने लेप का इस्तेमाल स्पर्म को यूट्रस में जाने से रोकने के लिए किया जाता था।इतनी तरह के गर्भनिरोधकों के आविष्कार के बाद भी ऐसे परफेक्ट कॉन्ट्रासेप्टिव की तलाश खत्म नहीं हुई, जो मेल और फीमेल दोनों के लिए सेफ हो, जो उन्हें संतुष्टि दे और जिसे वे बेहिचक, खुलकर अपना सकें। ऐसे में ‘कॉन्ट्रासेप्टिव इम्प्लांट्स’ कपल्स के लिए बेहतर साबित हो सकते हैं।
29 साल की मीना पुणे में रहती हैं। 3 बच्चे होने के बाद उन्होंने कॉपर टी लगवा ली। लेकिन, इंटरकोर्स के दौरान पति इसकी वजह से असहज महसूस करते थे। फिर कपल इसे निकलवाने फैमिली प्लानिंग असोसिएशन ऑफ इंडिया (FPA) के क्लीनिक पहुंचा। वहां काउंसलर ने उन्हें दूसरे तरीके बताए। जिनमें से उन्होंने कॉन्ट्रासेप्टिव इम्प्लांट्स को चुना, ताकि वे एक-दूसरे के साथ को एंजॉय कर सकें और अनचाही प्रेग्नेंसी से भी बच सकें।
‘माचिस की तीली’ बराबर डिवाइस
इस मेडिकल डिवाइस का इस्तेमाल प्रेग्नेंसी रोकने के लिए किया जाता है। इसे महिला की बांह में स्किन के अंदर डाल दिया जाता है। फ्लेक्सिबल प्लास्टिक से बने कॉन्स्ट्रासेप्टिव इम्प्लांट्स का साइज माचिस की तीली जितना छोटा होता है।मेडिकल भाषा में इसे फ्लेक्सिबल प्लास्टिक रॉड कहते हैं। इस रॉड से ‘प्रोजेस्टोजन’ नाम के एक सिंथेटिक हॉर्मोन का रिसाव होता है, जो प्रेग्नेंसी रोकने में मदद करता है। एक बार यह छोटी सी रॉड लगवा ली, तो 3 साल तक के लिए छुट्टी। इस बीच, अगर आप प्रेग्नेंट होना चाहें, तो आराम से इसे निकलवाइए और कुछ ही दिनों में अपनी फर्टिलिटी वापस पाइए।
यह डिवाइस 3 तरीकों से काम करती है
1.डिवाइस से प्रोजेस्टोजन हॉर्मोन का रिसाव धीरे-धीरे होता रहता है। इससे शरीर में प्रोजेस्टोजन का स्तर बढ़ जाता है। इससे ओवरी से एग के रिलीज होने की प्रक्रिया रुक जाती है।
2.असल में स्पर्म को यूट्रस के अंदर जाने के लिए सर्विक्स से होकर गुजरना पड़ता है। सर्विक्स में मौजूद लिक्विड स्पर्म को जीवित रहने और तैरने में मदद करता है। इस लिक्विड को सर्वाइकल म्यूकस कहते हैं। प्रोजेस्टोजन हॉर्मोन इसी लिक्विड को गाढ़ा करता है। जिससे स्पर्म आगे नहीं बढ़ पाता।
3.प्रोजेस्टोजन यूट्रस की भीतरी लाइनिंग को बहुत पतला कर देता है। अगर किसी तरह एग और स्पर्म मिल भी जाएं, तो इसके बाद इससे फर्टिलाइज एग यूट्रस में टिक नहीं पाता और मेंस्ट्रुअल पीरियड्स के समय शरीर से बाहर निकल जाता है।
महिलाओं ने नेपाल जाकर लगवाई ये डिवाइस
भारत में सरकारी अस्पतालों में कॉन्ट्रासेप्टिव इम्प्लांट्स नहीं लगाए जाते। प्राइवेट अस्पतालों में भी इन्हें लगवाना आसान नहीं है। जबकि, पड़ोसी देश नेपाल के सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर यह फ्री में लगाए जाते हैं। ऐसे में भारत के कई राज्यों से महिलाएं यह डिवाइस लगवाने के लिए सीमा पार कर पड़ोसी देश नेपाल जा रही हैं। ‘फैमिली प्लानिंग असोसिएशन ऑफ नेपाल (FPAN)’ परिवार नियोजन के मुद्दे पर नेपाल सरकार के साथ काम कर रही है। नेपाल में इन्हें लगवाने के लिए डॉक्टर की जरूरत नहीं है। यहां नर्स और स्वास्थ्य कर्मचारी महिलाओं को यह डिवाइस लगा रहे हैं। हमारे पास भारत से आने वाली महिलाओं की संख्या भी काफी ज्यादा है। ये महिलाएं उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से आती हैं।
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प्रेग्नेंसी रोकने में 99% से ज्यादा कारगर
यह डिवाइस प्रेग्नेंसी रोकने में 99% से ज्यादा कामयाब है। इसे इस्तेमाल करना भी काफी आसान है। जिसके बाद प्रेग्नेंसी रोकने के लिए इंजेक्शन (इंजेक्टिबल कॉन्ट्रासेप्टिव) लगवाने, गोली खाने की टेंशन छूमंतर हो जाती है।जो महिलाएं एस्ट्रोजन हॉर्मोन वाली गोलियां नहीं खा सकतीं या जिनके लिए गोली खाने की टाइमिंग याद रखना एक बड़ी समस्या है, उनके लिए इम्प्लांट बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। बच्चे को जन्म देने के बाद इसे कभी भी लगवाया जा सकता है और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान यह पूरी तरह सेफ है।
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