ओम प्रकाश सिंह
अयोध्या. रामनगरी के अवध विश्वविद्यालय में हुई शिक्षक भर्तियों में अनियमितता की शिकायत साकेत महाविद्यालय के शिक्षक नेता जनमेजय तिवारी ने कुलाधिपति से की है. कुलपति खेमे ने पलटवार में शिकायत कर्ता की थीसिस पर ही सवाल खड़ा कर दिया है. कुलपति पर नियम विरुद्ध व सजातीय लोगों की भर्ती का गंभीर आरोप है. शिक्षक नेता ने थीसिस जांच को शिकायत की प्रतिक्रिया बताया है.
कुलपति की शिकायत राज्यपाल, मुख्यमंत्री व केंद्रीय शिक्षा मंत्री से कई लोगों ने की है. जिसमें भारतीय जनता पार्टी के मीडिया प्रभारी डॉ. रजनीश सिंह, एडवोकेट व पत्रकार नाथ बख्श सिंह सहित कई लोग शामिल हैं. अभी कुलपति खेमे के निशाने पर पहले शिकायतकर्ता साकेत महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर, शिक्षक नेता जनमेजय तिवारी ही हैं. कुलपति के भ्रष्टाचार को लेकर यह लड़ाई और दिलचस्प होने की उम्मीद है. विश्वविद्यालय में निर्माण, वाहनों के दुरुपयोग को लेकर भी कुलपति पर आरोप लग रहे हैं.
योगी सरकार पर आरोप लग रहा है कि वह ओबीसी कोटे के पदों पर सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों की भर्ती कर रही है जबकि अवध विश्वविद्यालय में ठीक इसके उलट भर्तियां हो रही हैं. भाजपा नेता डॉ. रजनीश सिंह ने मांग की है कि कुलपति के कार्यकाल की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए.
अवध विश्वविद्यालय के कुलसचिव उमानाथ ने शिकायत कर्ता जनमेजय तिवारी को पत्र भेजकर उनकी थीसिस की इसकी हार्ड व साफ्ट कॉपी माँगी है. उन पर आरोप है कि उन्होंने कॉपी पेस्ट करके पीएचडी की डिग्री हासिल की है. जनमेजय तिवारी ने बताया कि कुलसचिव का पत्र मुझे मिला है जिसमें मुझसे थीसिस मांगी गई है. कुलसचिव का पत्र मेरी शिकायत की प्रतिक्रिया है. असल में विश्विद्यालय प्रशासन पूरी तरह से डरा हुआ है और बदले की कार्यवाही में लगा है.
शिकायत कर्ता का कहना है कि विगत माह मार्च 2022 में डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में संपन्न हुई प्राध्यापकों की चयन-प्रक्रिया में यूजीसी के मानकों की अनदेखी कर जो गम्भीर अनियमितता हुई है. विज्ञापन से लेकर अंतिम चयन तक की पूरी प्रक्रिया में मनमानी नियुक्तियों के लिए जिस तरह अर्हता के नियमों को बदला गया है, तथ्यों को छिपाया गया है, नियुक्ति की प्रक्रिया और परिणामों को प्रभावित किया गया है और सत्ता व लाभार्थियों के बीच के अन्तर को समाप्त किया गया है, उससे परीक्षा की शुचिता तार-तार हो गयी है. अयोध्या के जनमानस में इस घटना को लेकर बेहद अमर्ष व रोष है क्योंकि इसने शासन की भ्रष्टाचार व कदाचार के प्रति असहिष्णुता की नीति को संदिग्ध बना दिया है.
कुलाधिपति के निर्देशानुसार जारी शासनादेश के अनुक्रम में सहायक प्रोफेसर के पदों पर स्क्रीनिंग परीक्षा संपन्न कराने की जिम्मेदारी संबंधित विश्वविद्यालय के परीक्षा-नियंत्रक की थी. परीक्षा-नियंत्रक उमानाथ सिंह के भाई अनिल कुमार सिंह (अनुक्रमांक 2022002014) अंबेडकरचेयर के अभ्यर्थी थे. इसी क्रम में कुलपति प्रो रवि शंकर सिंह की पुत्रवधू सविता चंदेल (चयनित) गणित व सांख्यिकी की अभ्यर्थी थीं तथा विश्वविद्यालय की आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्चयन प्रकोष्ठ की संयोजक प्रोफेसर नीलम पाठक की रिश्तेदार गरिमा मिश्रा (अनु. 2022002089 प्रतीक्षा सूची) भी अंबेडकर चेयर विभाग में अभ्यर्थी थीं. कुलपति के ओएसडी डॉक्टर शैलेंद्र सिंह स्वयं भी अंबेडकर चेयर और साथ ही प्रौढ़ शिक्षा विभाग में अभ्यर्थी थे.
प्रश्न यह है कि इन परिस्थितियों में विश्वविद्यालय के किस अधिकारी ने संबंधित स्क्रीनिंग परीक्षा संपन्न करवाई? क्या शासन को इस सम्बन्ध में विश्वास में लिया गया था कि विश्वविद्यालय के उपर्युक्त सभी जिम्मेदार अधिकारियों के निकट-सम्बन्धी इस परीक्षा में सम्मिलित हो रहे हैं इसलिए उनमें से कोई भी इसके संयोजन की अर्हता नहीं रखता था.
विश्वस्त सूत्रों से यह भी पता चला है कि परीक्षा कराने वाली एजेंसी के सीधे संपर्क में कुलपति के निजी सहायक ओएसडी शैलेंद्र सिंह थे और मॉडरेशन के लिए प्रश्नपत्र भी उन्होंने संबंधित एजेंसी से प्राप्त कर लिए थे जबकि स्वयं ही दो-दो विभागों में अभ्यर्थी होने के कारण उनको इस पूरी प्रक्रिया से बाहर रखा जाना चाहिए था. बाद में समस्त मेल/पत्र व्यवहार का कार्य आइक्यूएसी निदेशक प्रोफेसर नीलम पाठक के नाम पर किया गया जिससे इन सभी कारनामों को छिपाया जा सके. कुलपति, उनके ओएसडी, परीक्षा नियंत्रक और आइक्यूएसी निदेशक की मिलीभगत से परीक्षा की शुचिता को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया.
यह भी पुष्ट खबर है कि इतिहास, संस्कृत व पुरातत्व विभाग में चयनित अभ्यर्थी डॉ. प्रीति सिंह व रवि प्रकाश चौधरी को पूर्व में ही प्रश्न पत्र उपलब्ध करा दिए गए थे, जिनसे पैसे का लेन-देन बनारस के रहने वाले चन्दन चौधरी के माध्यम से हुआ था. इसके अतिरिक्त अन्य पदों पर भी जो नियुक्तियाँ हुई हैं उनमें चयनित अभ्यर्थियों के बीच स्क्रीनिंग परीक्षा के अंकों में जो आश्चर्यजनक समानता है, उससे इस तथ्य की स्वतः ही पुष्टि होती है.
एसोसिएट प्रोफेसर पद पर नियुक्त डॉक्टर महिमा चौरसिया, डॉ. अवध नारायण व डॉक्टर प्रद्युम्न नारायण द्विवेदी द्वारा पूर्व में की गई सेवाएं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम 2018 की धारा 10.2 के तहत जोड़ने के योग्य नहीं थी परंतु विश्वविद्यालय ने नियमों के विपरीत जाते हुए उनकी पूर्व की सेवाओं को जोड़कर उन्हें अनुचित ढंग से एसोसिएट प्रोफेसर पद प्रदान करने का कार्य किया है.
डॉ. अवध नारायण जिन्होंने अंबेडकर चेयर व प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा दोनों विभागों में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था, अर्हता-परीक्षा उत्तीर्ण न कर सकने के कारण साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाए जा सके. परंतु इन्हीं अवध नारायण का चयन इसी समय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर पद पर हुआ, जिसमें वह एकल अभ्यर्थी के रूप में सम्मिलित हुए थे. ध्यातव्य है कि इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में एसोसिएट पद पर हुए इस साक्षात्कार में कोई भी अन्य अभ्यर्थी सम्मिलित नहीं हुआ था. यह किसी भी विज्ञापित पद पर आवेदन की न्यूनतम कोरम संख्या के नियमों की सरासर अनदेखी है.
पर्यावरण विज्ञान विभाग में 799 अंक के एपीआई धारक डॉ. अनूप सिंह तथा 473 अंक एपीआई प्राप्त करने वाली संगीता यादव का चयन न करके वरीयता-क्रम में सबसे नीचे 152 अंक एपीआई वाली अभ्यर्थी डॉक्टर महिमा चौरसिया का चयन किया गया है. इसी प्रकार अन्य विषयों में भी साक्षात्कार के लिए बुलाए गए अधिकतर अभ्यर्थी यूजीसी मानक 2018 के प्रावधानों की अनुरूपता में साक्षात्कार के लिए अर्ह नहीं थे परंतु मानकों की अनदेखी कर उन्हें आमंत्रित और चयनित किया गया.
डॉ. शैलेन्द्र सिंह को विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह अपने साथ वाराणसी से कार्यभार-ग्रहण के समय लेकर आये थे और तत्काल उन्हें अपना OSD बना लिया था. उनका चयन अम्बेडकर चेयर व प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग में दो अकादमिक पदों पर हुआ है. उन्होंने भूगोल विषय में परास्नातक व पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है. अंबेडकर चेयर जिसे उन्होंने ज्वाइन किया है और प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग जिसमें वह प्रतीक्षा-सूची में है, उनमें से वह किसी भी विभाग में सेवा की योग्यता धारित नही करते हैं. वास्तव में, उनकी नियुक्ति के लिए पहली बार अम्बेडकर चेयर में नियुक्ति के लिए अर्हता के नियमों को बदलकर अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र व राजनीति विज्ञान विषयों में स्नातक उपाधि के साथ-साथ समाज-भूगोल (Social Geography) व जनसंख्या विज्ञान ( Population Science) जैसे नए विषयों को भी जोड़ दिया गया. यह भी ध्यातव्य है कि डॉ शैलेन्द्र सिंह की अर्हता इन विषयों में भी स्नातक या परास्नातक की नहीं है. समाज-भूगोल का स्नातक/परास्नातक स्तर पर अध्ययन उन्होंने महज एक प्रश्नपत्र के रूप में किया है, स्वतंत्र उपाधि के रूप में नहीं. वह नियुक्ति के वर्तमान पद पर चयन की अर्हता नहीं रखते हैं. विश्वविद्यालय द्वारा जारी विज्ञापन में रोस्टर निर्धारण के लिए उ.प्र. आरक्षण अधिनियम 1994 का अनुपालन नहीं किया गया है. रोस्टर रिक्तियों पर न लगा कर समस्त स्वीकृत पदों पर लगाया गया है तथा मनमाने ढंग से अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विभागों के नाम भी सुविधानुसार कभी हिंदी तो कभी अंग्रेजी वर्णमाला क्रम के अनुसार ले लिये गए हैं.
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