सुरेन्द्र दूबे
वैज्ञानिक कई बार दोहरा चुके हैं कि कोरोना वायरस से दुनिया का पीछा तब तक पूरी तरह नहीं छूटेगा जब तक इसका टीका नहीं बन जाता, लेकिन साथ में वह यह भी कह रहे हैं कि कोरोना वायरस को वही हरा पायेगा जिसका इम्यून सिस्टम अच्छा होगा। डॉक्टर बार-बार जोर दे रहे है कि इस वायरस से बचने की जरूरत है न कि डरने की। कोरोना से लड़ने के लिए लोगों को खान-पान पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
एक कहावत है मन के हारे हार, मन के जीते जीत। इस कहावत का अर्थ यह है कि हम मन में जीतने का संकल्प कर लेते हैं, तो जीत ही जाते हैं। मन ने हार मान ली, तो हम हार जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि मन जो कुछ सोचता है, वह उसी के अनुकूल संकेत भेजता है और शरीर उसी संकेत के अनुसार काम करना आरंभ कर देता है। यदि हमने पहले ही हारने की बात सोच ली है, तो फिर हमारा शरीर इतनी स्फूर्ति से हमारा साथ नहीं देगा। यह कोरोना वायरस के संदर्भ में भी लागू होती है। जब से कोरोना का इस दुनिया में उदय हुआ है लगातार इस पर शोध हो रहा है और हर शोध में कुछ चीजे बार-बार निकल कर आ रही हैं।
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शोध के मुताबिक कोरोना से बचने का रास्ता यह है कि हम ज्यादा से ज्यादा अपने घरों में रहे। हाथ नियमित धोते रहे और फिजिकल डिस्टेंस बनाकर रखें। कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए ही दुनिया के अधिकांश देशों में लॉकडाउन है। राशन-दवा की दुकानों के वहीं दफ्तर या फैक्ट्रियां खोली गई है जिससे लोग अपने घरों में आराम से रह सके। लोग सरकार के आदेशों का पालन करते हुए घरों में बंद हैं।
शोध में एक बात और कई बार कही जा चुकी है कि इस बीमारी को मात वहीं व्यक्ति दे पायेगा जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है। रोग प्रतिरोधक क्षमता तभी अच्छी होगी जब हम मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ्य रहेंगे। इसमें एक बात ज्यादा जरूरी है और वह है मन से स्वस्थ्य होना। जब मन स्वस्थ रहेगा तभी शरीर स्वस्थ होगा और तभी हम बीमारियों का मुकाबला कर पायेंगे। इसलिए जरूरी है कि हम इन दिनों तनाव से दूर रहे।
सबसे पहले यह जानना चाहिए कि मनुष्य का मन कैसे बनता है और उसकी शक्ति का स्रोत क्या है। अब से दो सौ वर्ष पहले प्राच्य तथा पाश्चात्य दर्शन और धर्म की मान्यता यह थी कि मन और शरीर दो अलग-अलग संज्ञाए हैं। शरीर नाशवान है परंतु मन आत्मा की शक्ति है जो शरीर के नष्ट होने पर अपना काम बंद कर सकती है लेकिन नष्ट नहीं हो सकती। हालांकि जीव विज्ञान की खोजों के फलस्वरूप इस मान्यता में परिवर्तन हो गया है। परंतु हजारों-लाखों ऐसे उदाहरण हमारे आस-पास मौजूद है जिसने अपनी मजबूत इच्छाशक्ति से ऐसे-ऐसे कारनामा कर चुके हैं जिसके बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। इसलिए कोरोना से लड़ने के लिए अपनी इच्छाशक्ति को भी मजबूत करना जरूरी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये लेख उनका निजी विचार है)