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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि मनाने का एलान किया है। ममता बनर्जी सरकार का मुखर्जी के पुण्यतिथि को मनाने का फैसला उस समय आया है, जब पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लगातार मजबूत हो रही है।
पंचायत चुनाव हो या लोकसभा चुनाव पश्चिम बंगाल में बीजेपी लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है। बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने 18 सीटों पर कब्जा जमाया था। पिछले कई चुनाव में बीजेपी बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस को पीछे छोड़ तृणमूल कांग्रेस के सामने मुख्य प्रतिद्वंदी बन कर उभरी है।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों एक तरफ ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमसी लगातार बंगाल में बीजेपी और संघ से टक्कर ले रही है वहीं दूसरी ओर वह संघ के विचारकों और दिग्गज नेताओं का सम्मान कर रही हैं।
साल 2021 में होने वाले पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को देखते हुए ममता की ये कवायद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब टीएमसी ने मुखर्जी के प्रति अपनी भावनाएं जाहिर की हैं। करीब एक साल पहले दक्षिण कोलकाता में एक श्मशान में लगी मुखर्जी की प्रतिमा जब लेफ्ट से जुड़े अराजक तत्वों द्वारा तोड़ दी गई थी तो ममता सरकार ने उस टूटी प्रतिमा की जगह मुखर्जी की कांसे की प्रतिका लगाई थी। इतना ही नहीं, इस सिलसिले में ममता सरकार ने कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया था।
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पश्चिम बंगाल में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए टीएमसी का यह कदम काफी अहम माना जा रहा है। दरअसल, बीजेपी ने निपटने के लिए टीएमसी ने अब काफी हद तक उसी के नक्शेकदम पर चलने की पहल की है। मोदी युग मे बीजेपी गांधी-नेहरू परिवार से इतर कांग्रेस की विरासत में सेंध लगाने की कोशिश की, कुछ वैसी ही कोशिश टीएमसी बंगाल में करती नजर आ रही है।
बता दें कि सियासी हलकों में बीजेपी द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाली पार्टी के रूप में प्रचारित की जाती है। जिस तरह से हालिया लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने बंगाल में अपनी जमीन पुख्ता की है। उसने टीएमसी के लिए खतरे की घंटी बजा दी हे।
ममता को समझ में आ चुका है कि अपने अस्तिव के लिए जूझ रही है। ऐसे में उसके लिए अगर कहीं से कोई गंभीर चुनौती है, तो वह बीजेपी की ओर से ही है। इसलिए वह बंगाली अस्मिता के नाम पर मुखर्जी से जुड़ने की कवायद में है।
ममता बनर्जी की इस कवायद को मुखर्जी के जरिए हिंदुत्व के मुद्दे और भावनाओं को छूने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है। बता दें कि मोदी सरकार के आने के बाद बीजेपी ने महात्मा गांधी से लेकर सरदार पटेल, डॉ भीमराव अंबेडकर, लाल बहादुर शास्त्री और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे नेताओं को याद करना और उनके सम्मान में कार्यक्रमों का आयोजन शुरू किया। कुछ इसी तर्ज पर अब टीएमसी श्यामा प्रसाद मुखर्जी को बंगाली अस्मिता से जोड़कर उनके जरिए सियासी फायदा लेने की कोशिश मे हैं।