जुबिली स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली। बंगाल चुनाव के बाद से कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के रिश्तों में खटास देखने को मिल रही है। ममता बनर्जी दूसरे राज्यों में अपनी पार्टी को मजबूत करने में जुट गई है।
तृणमूल कांग्रेस अब बंगाल के बाहर भी अपना विस्तार करना चाहती है। इसके आलावा कांग्रेस और टीएमसी के संबंधों में उस समय दरार आ गई थी जब तृणमूल ने दावा किया था कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी नहीं बल्कि पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा बनकर उभरी हैं।
अब इसका ताजा उदाहरण एक और देखने को तब मिला जब संसद के मॉनसून सत्र में पेगासस और किसान आंदोलन जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने के लिए 29 नवंबर यानी कल कांग्रेस की तरफ से संसद की रणनीति बनाने को लेकर बुलाई गई विपक्षी पार्टियों की बैठक लेकिन इस बैठक से तृणमूल कांग्रेस ने किनारा किया है।
इससे अब पता चलता है कि तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के रिश्तों में अब पूरी तरह से खटास पैदा हो गई और उसे संसद में कांग्रेस की अगुवाई पसंद नहीं है।
इस वजह से तृणमूल कांग्रेस अपने आप को इस बैठक से अलग रखना चाहती है। अहम बात यह है कि टीएमसी ने रविवार को पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक में भाग लिया था लेकिन कांग्रेस की अगुवाई में होने वाली बैठक से किनारा किया है।
टीएमसी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का वैकल्पिक चेहरा बनने में राहुल गांधी विफल रहे हैं, इसलिए ममता को ही विपक्ष का नेतृत्व करना चाहिए।
हालांकि, बंगाल में कांग्रेस ने टीएमसी के दावे को ज्यादा महत्व देने से इनकार करते हुए कहा कि यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि पीएम मोदी का वैकल्पिक चेहरा कौन बनेगा।
बता दें कि टीएमसी ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी का वैकल्पिक चेहरा बनने में राहुल गांधी विफल रहे हैं, इसलिए ममता को ही विपक्ष का नेतृत्व करना चाहिए।
हालांकि, बंगाल में कांग्रेस ने टीएमसी के दावे को ज्यादा महत्व देने से इनकार करते हुए कहा कि यह अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि पीएम मोदी का वैकल्पिक चेहरा कौन बनेगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस और टीएमसी की राहे पूरी तरह से अलग हो गई है।