- झोपड़पट्टी में दिन काटने को मजबूर हैं हॉकी के ये धुआंधार खिलाड़ी
- गरीबी ने छीना परिवार, अब 2 वक्त की रोटी का मोहताज
सैय्यद मोहम्मद अब्बास
हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा भी मिला हुआ लेकिन भारतीय हॉकी गौरवपूर्ण अतीत वर्तमान में दम तोड़ चुका है। हॉकी के नाम पर ही खेल हो जाता है।
इसके उलट क्रिकेट जैसा खेल देश में लगातार विकास दौड़ की लगा रहा है। आलम तो यह है कि बाजारीकरण के खेल में क्रिकेट अव्वल रहा लेकिन हॉकी को लेकर लोगों की सोच अब तक नहीं बदली है।
आज की डेट में अगर कोई क्रिकेट खिलाड़ी भारतीय टीम को खेल लेता है तो उसे अमीर बनते हुए देर नहीं लगती लेकिन हॉकी के साथ ऐसा नहीं है।
आज भी भारतीय टीम के लिए दमदार प्रदर्शन करने वाले कई खिलाड़ी गरीबी के दौर से गुजर रहे हैं और उनके खाने तक के लाले पड़ गए है।
उनको पूछने वाला कोई नहीं है। इसका ताजा उदाहरण है 82 साल के टेकचंद यादव, जो गुमनामी की जिंदगी जीने पर मजबूर है।
इस देश की बदनसीबी है कि जो खिलाड़ी देश का मान सम्मान बढ़ाता है और करियर में कई स्वर्णिम सफलता हासिल करता है लेकिन जब उसके करियर का अंत होता है तो उसकी स्थिति इतनी खराब हो जाती है वो अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी तक नहीं जुटा पाता है। आज हम एक ऐसे हॉकी खिलाड़ी की कहानी बताने जा रहे हैं जिसे ध्यानचंद ने हॉकी खिलाड़ी बनाया…जिसने भारतीय हॉकी को टॉप पर पहुंचाया…एक वक्त पर भारत के धुरंधर फॉरवर्ड में टेकचंद यादव की गिनती हुआ करती थी…
जिस खिलाड़ी को ध्यानचंद ने खुद टिप्स दी और फिर आगे जाकर भारतीय हॉकी टीम को खेलता है और अपनी हॉकी के बल पर दुनिया जीतता है लेकिन जब हॉकी से उसका नाता टूटता है तो उसकी जिंदगी सडक़ पर आ जाती है…जी हां ये बिल्कुल सच है…भारत के धुरंधर फॉरवर्ड खिलाड़ी अब 2 वक्त की रोटी का मोहताज है।
टेकचंद भारत के हॉकी खिलाड़ी रहे हैं जो दिग्गज खिलाड़ी ध्यानचंद के शिष्य थे लेकिन अब जिस हाल में उसको देखकर आपको रोना आ सकता है।
टेकचंद पर अशोक ध्यानचंद ने क्या कहा
हालांकि जब इस बारे में जुबिली पोस्ट ने मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक ध्यानचंद से बात की तो उन्होंने कहा कि उनकी जानकारी में नहीं है। उन्होंने बताया कि उस जमाने में उनके पिता मेजर ध्यानचंद कई लोगों को हॉकी की टिप्स देते थे।
उन्होंने बताया कि अगर ऐसा है तो फौरन उनको सरकार से मदद मिलनी चाहिए। इतना ही नहीं अशोक ध्यानचंद ने ये भी कहा कि अगर भारतीय हॉकी को मदद के लिए आगे आना चाहिए।
अशोक ध्यानचंद ने ये भी कहा भारतीय हॉकी कहानी न जाने कितने दुख और तकलीफ से भरी पड़ी है। उन्होंने कहा कि उस जमाने में खिलाडिय़ों को किसी तरह की मदद नहीं मिलती थी।
उन्होंने अपने पिता ध्यानचंद और चाचा रूपसिंह को याद करते हुए बताया कि उस जमाने में उनके परिवार को काफी मुश्किलों को झेलना पड़ा लेकिन टेकचंदेे मामले में मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि उनके बारे में पता करना चाहिए और उनको मदद देनी चाहिए। हॉकी इंडिया टेकचंद यादव के बारे में पूरा पता करे और मिलकर उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए।
टेकचंद पर एक नजर
हॉकी के जनक मेजर ध्यानचंद के साथ हॉकी खेलने वाले मध्य प्रदेश के सागर के रहने वाले है टेकचंद यादव। मौजूदा स्थिति की बात की जाये तो उनकी उम्र करीब 82 साल की हो रही है और इस वक्त वो सागर जिले के कैंट क्षेत्र में टूटी-फूटी झोपड़ी में उनकी जिंदगी गुजर रही है।
भारत की टीम को खेलने वाले टेकचंद उस टीम का हिस्सा थे। उनके बारे में कहा जाता है कि हॉकी खिलाड़ी व रेफरी मोहर सिंह के गुरु हैं। साल 1961 में जिस भारतीय हॉकी टीम ने हॉलैंड को हॉकी मैच में धूल चटाई थी, टेकचंद उस टीम के अहम खिलाड़ी थ।
क्या कहना है टेकचंद का
टेकचंद ने कई बार पत्रकारों से बातचीत करते हुए अपनी स्थिति से लोगों को अवगत कराना चाहा है। उन्होंने बताया था कि साल 1960 में मेजर ध्यानचंद एमआरसी सागर आए थे और फिर सागर और जबलपुर में हॉकी खिलाडिय़ों को हॉकी टिप्स दी थी।
उस वक्त टेकचंद भी शामिल हुए थे और ध्यानचंद ने 3 महीने तक खिलाडिय़ों को ट्रेनिंग दी थी। इसके बाद भोपाल में इंटरनेशन हॉकी टूर्नामेंट आयोजित किया गया था।
टेकचंद को टीम इंडिया में शामिल किया गया था और हॉलैंड के खिलाफ मैच खेलने का मौका मिला था लेकिन आज गुमनामी की जिंदगी जीने पर मजबूर है।