प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. मजाज़ उस शख्सियत का नाम है जिसके कलम से निकलने वाली शायरी लोगों की ज़बान पर ही नहीं चढ़ती थी बल्कि दिल-ओ-दिमाग में जज़्ब हो जाती थी. आज मजाज़ की सालगिरह है. 19 अक्टूबर 1911 को फैजाबाद की रुदौली तहसील में पैदा हुए थे.
माँ-बाप ने बच्चे का नाम असरारुल हक़ रखा. यह बच्चा रुदौली के चौधरी सिराज-उल-हक के घर में पैदा हुआ था. सिराज-उल- हक़ चाहते थे कि यह बच्चा इंजीनियर बने. यह चाहत गलत भी नहीं थी क्योंकि यह लिखने-पढ़ने वालों का घर था. सिराज-उल-हक रुदौली की वह पहली शख्सियत थे जिसने वकालत की डिग्री हासिल की थी.
असरारुल हक शुरुआती पढ़ाई के बाद आगरा के मशहूर सेंट जोन्स कालेज भेजे गए. यहाँ उनकी पहचान मैकश अकबराबादी, जज्बी और फानी जैसे शायर मिल गया. यह साथ मिला तो असरारुल हक की मंजिल भी तय हो गई. यहाँ से वो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने चले गए. इस यूनीवर्सिटी में उनकी पहचान मंटो, अली सरदार जाफरी और जाँनिसार अख्तर जैसे चोटी के शायरों से हो गई.
असरारुल हक सेंट जोन्स में पढ़ाई के दौरान ही शायरी करने लगे थे लेकिन अलीगढ़ में वो कब मजाज़ में बदल गए उन्हें खुद भी पता नहीं चला. वह शानदार शायर थे तो गज़ब के हाज़िर जवाब भी थे. मजाज़ के बारे में यह मशहूर था कि लड़कियां उनके लिखे शेर अपने तकिये के नीचे रखकर सोती थीं. अलीगढ़ में पढ़ाई के दौरान एक बार इस्मत चुगताई ने मजाज़ से कहा कि लड़कियां आपसे काफी मोहब्बत करती हैं. इस पर उन्होंने फ़ौरन जवाब दिया कि शादी तो पैसे वालों से कर लेती हैं.
मजाज़ इश्क की नाकामी को बर्दाश्त नहीं कर पाए. उन्होंने लिखा था :-
होती है इस हुस्न की तौहीन ऐ मजाज़,
इतना न अहल-ए-इश्क को रुसवा करे कोई.
बहरहाल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने वह दिल्ली में आल इण्डिया रेडियो में असिस्टेंट एडीटर हो गए. दुनिया की नज़र में यह मजाज़ की बहुत बड़ी तरक्की थी लेकिन हकीकत बिलकुल इससे अलग थी. जिस मजाज़ की शायरी को लड़कियां अपने तकियों के नीचे रखती थीं उस मजाज़ को दिल्ली की एक लड़की से इश्क हो गया लेकिन उस लड़की ने मजाज़ का साथ गवारा नहीं किया.
वह लड़की नहीं मिली तो मजाज़ शराब के करीब चले गए. शराब में वो खुद को डुबोते चले गए. मजाज़ उस शायर का नाम है नर्गिस दत्त जिसका आटोग्राफ लेने पहुँची थीं. वह मजाज़ ज़िन्दगी से बड़े मायूस हो गए थे. उनकी शायरी लोगों के सर चढ़कर बोल रही थी मगर मजाज़ खुद नशे की गर्त में डूबते जा रहे थे.
तलत महमूद ने मजाज़ की शायरी को अपनी आवाज़ से सजाया तो दुनिया झूम उठी मगर मजाज़ को ध्यान में रखकर सुनें तो शायर का दर्द साफ़ महसूस होता है :-
ये रुपहली छाँव ये आकाश पर तारों का जाल,
जैसे सूफी का तसव्वुर, जैसे आशिक का ख्याल.
आह लेकिन कौन समझे, कौन जाने दिल का हाल,
ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं.
रास्ते में रुक के दम लूं, ये मेरी आदत नहीं,
लौट कर वापस चला जाऊं मेरी फितरत नहीं.
और कोई हमनवा मिल जाये ये किस्मत नहीं.
ऐ गम-ए-दिल क्या करूं, ए वहशत-ए-दिल क्या करूँ.
मजाज़ का आटोग्राफ लेने नर्गिस उनके सामने पहुँचीं तो मजाज़ ने उनकी डायरी पर लिखा :-
तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन,
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था.
दिल्ली ही नहीं पूरी दुनिया के दिल को अपनी शायरी से जीत लेने वाले मजाज़ दिल्ली में अपना दिल हार गए तो शराब में सहारा ढूंढ लिया. शराब में डूबते मजाज़ के लिए फिक्रमंद जोश मलिहाबादी ने उन्हें खत लिखा कि सामने घड़ी रखकर पिया करो. मजाज़ ने जवाब दिया कि घड़ी रखें आप, मैं तो सामने घड़ा रखकर पीता हूँ.
अपनी हाज़िरजवाबी में मजाज़ जोश से जीत गए मगर सच यह है कि शराब जीत गई थी. शराब उन्हें पीने लगी थी. फैजाबाद की रुदौली तहसील में पैदा हुआ एक शानदार शायर शराब में डूबकर धीरे-धीरे मौत की तरफ कदम बढ़ाने लगा था.
यह भी पढ़ें : सावधान! नौ दिन मैं ढोंग में हूं
यह भी पढ़ें : काहे का तनिष्क..
यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : कमलनाथ के आइटम से क्यों कुम्हलाने लगा कमल
यह भी पढ़ें : पहले डरती थी एक पतंगे से, मां हूं अब सांप मार सकती हूं
जानकार बताते हैं कि अपने आख़री दिनों में मजाज़ ने शराब छोड़ दी थी. शराब छोड़कर वह ज़िन्दगी में खुशी की तलाश में लगे थे. वह दिल्ली से लखनऊ आये हुए थे. लखनऊ में कुछ दोस्तों ने मजाज़ से शराब पीने का इसरार किया. दोस्तों की बात को वह टाल नहीं पाए. दिसम्बर की शदीद सर्दी थी मगर खुली छत पर जाम छलकाए जा रहे थे. दोस्त तो पीकर चले गए मगर मजाज़ रात भर छत पर ही पड़े रहे. पांच दिसम्बर 1955 की सुबह लोगों ने जब उन्हें घर की छत पर पड़ा देखा तो अस्पताल ले गए मगर मजाज़ तब दुनिया से रुखसत हो चुके थे. भारत सरकार ने साल 2008 में मजाज़ की याद में डाक टिकट निकाला.
मजाज़ लखनवी ने दुनिया में सिर्फ 44 साल गुज़ारे मगर इस छोटे से वक्त में ऐसी शायरी कर गए जिसकी तलाश में शायर की ज़िन्दगी गुज़र जाती है. मजाज़ ने दिल्ली छोड़ते वक्त जो शेर लिखा था वो लखनऊ में सच साबित हो गया :-
रुख्सत-ए-दिल्ली तेरी महफ़िल से अब जाता हूँ मैं,
नौहागर जाता हूँ मैं, नाला-ब-लब जाता हूँ मैं.