पॉलिटिकल डेस्क
एक बार फिर बीजेपी को शर्मिन्दगी उठानी उठी। महाराष्ट्र में कम सीटे होने के बावजूद बीजेपी ने सत्ता पाने की कोशिश की और परिणाम सामने हैं। सत्ता तो मिली नहीं अलबत्ता बीजेपी की छीछालेदर जरूर हो गई। बीजेपी इससे कितना सबक लेगी यह तो वक्त बतायेगा लेकिन ऐसा कहा जा रहा है बीजेपी को अजित पवार पर भरोसा नहीं करना चाहिए था। यह बीजेपी की बड़ी भूल है, जिसकी भरपाई बीजेपी को महाराष्ट्र में लंबे समय तक करना पड़ेगा।
बीजेपी का अजित पवार पर आंख मूंदकर भरोसा करना भारी पड़ गया। एनसीपी नेता अजित पवार ने भाजपा से सत्ता के लिए पर्याप्त नंबर मुहैया कराने का वादा किया, लेकिन वह वादा पूरा नहीं कर पाये। रविवार को अजित के इस्तीफा देने के बाद से जिस तरह बीजेपी बैकफुट पर आई उससे पार्टी की खूब किरकिरी हुई। ऐसा ही हाल कर्नाटक चुनाव के बाद बीजेपी का हुआ था।
महाराष्ट्र की तरह कर्नाटक में 2018 में विधानसभा चुनाव नतीजा आने के बाद बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। बीजेपी बहुमत हासिल करने में महज सात कदम दूर थी। बीजेपी के पास सात विधायक कम थे, लिहाजा विपक्षी दलों के विधायकों को अपनी तरफ लाने की कोशिश की गई। बीजेपी नेता येदियुरप्पा को उम्मीद थी कि वह सात विधायक मैनेज कर लेंगे लिहाजा उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। पर ऐसा हुआ नहीं और उन्हें कुछ ही घंटे बाद इस्तीफा देना पड़ा। महाराष्ट्र की तरह कर्नाटक में भी सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने को कहा लेकिन टेस्ट से पहले ही येदियुरप्पा के नीचे से फ्लोर खिसक गया। ऐसा ही महाराष्ट्र में हुआ।
अब जबकि बीजेपी सत्ता गवां चुकी है तो इस पर मंथन भी शुरु हो गया है। अब सिर्फ एक ही सवाल लोगों के जेहन में बार-बार आ रहा है कि क्या बीजेपी को अजित पवार के दावे पर भरोसा करना चाहिए था? हो सकता है कि बीजेपी ने एनसीपी मुखिया शरद पवार को थोड़ा कम करके आंका हो।
वहीं राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बीजेपी ने हड़बड़ी में सबकुछ किया जिसकी वजह से उसे यह दिन देखना पड़ा। बीजेपी सूत्रों के मुताबिक पार्टी की शुरुआती योजना यह थी कि शिवसेना की जीत के नतीजे को स्वीकार करे और खुद विपक्ष में बैठे।
पार्टी को लगा था कि यह उनके लिए काफी बेहतर होगा कि तीन विपरीत विचारधाराओं की पार्टियों को सत्ता में संघर्ष करता देखे और फिर जनता के बीच उसका फायदा उठाए, लेकिन एनसीपी नेता अजित पवार के दावों पर बीजेपी ने विश्वास कर अपना इरादा बदल दिया।
रविवार को अपने इस्तीफे से पहले देवेन्द्र फडणवीस ने कहा था, ‘अजित पवार ने अपना इस्तीफा मुझे सौंप दिया है और अब हमारे पास बहुमत नहीं है। हम विधायकों की खरीद-फरोख्त में भरोसा नहीं करते हैं। इसके बाद मैं राज्यपाल से मिलकर अपना इस्तीफा उन्हें दूंगा।’
फडणवीस के अनुसार, अजित ने भाजपा के साथ सत्ता में आगे न बढऩे के लिए अपने व्यक्तिगत कारण बताए हैं। उन्होंने कहा कि अजीत ने बिना शर्त समर्थन दिया था, उन्होंने समर्थन क्यों वापस लिया इसका जवाब वह ही देंगे। जब उनसे पूछा गया कि क्या अजीत का बीजेपी को समर्थन देना शरद पवार के इशारे पर हुआ है, इस पर उन्होंने कहा कि इसका जवाब भी पवार से पूछना चाहिए।
महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ जो कुछ हुआ उसके लिए फडणवीस अकेले जिम्मेदार ठहराए नहीं जा सकते। जो हुआ उसके लिए राष्ट्रीय नेतृत्व भी जिम्मेदार है। महाराष्ट्र कोई छोटा राज्य नहीं है और दूसरी ये कि कर्नाटक में बीजेपी यही गलती कर चुकी थी, फिर भी उसने सबक नहीं लिया।
अगर बीजेपी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की सरकार को बनने देते तो ये सरकार अपने अंदरूनी मतभेदों के कारण गिर जाती और बीजेपी के लिए बेहतर स्थिति होती। यदि राज्य में दोबारा चुनाव होते तब भी भाजपा के लिए बेहतर होता और अगर चुनाव न भी होते तो भी बीजेपी को लाभ होता। लेकिन अभी जो कुछ हुआ उससे बीजेपी को केवल नुकसान ही नुकसान है।
महाराष्ट्र के पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा नुकसान देवेंद्र फडणवीस की छवि को हुआ है क्योंकि वो एक ऐसे नेता के रूप में उभर रहे थे जिन्हें महाराष्ट्र से भविष्य के संभावित प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा था।
बीजेपी के सभी मुख्यमंत्रियों में फडणवीस को सबसे बेहतर और दिल्ली के अधिक करीब भी माना जा रहा था। उन्हें पार्टी हाईकमान से जैसा समर्थन मिल रहा था उतना किसी और मुख्यमंत्री को नहीं मिला। लेकिन वहां जो कुठ हुआ उससे उनकी प्रतिष्ठा और राजनीतिक समझ को बहुत बड़ा धक्का लगा है। इस पूरे घटनाक्रम में वो किसी भी कीमत पर और किसी से भी गठबंधन कर सत्ता हासिल करने वाले नेता के रूप में सामने आए हैं।
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