सुरेंद्र दुबे
शीतकालीन सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में एनसीपी और बीजू जनता दल (बीजेडी) की यह कहते हुए तारीफ कर दी कि दोनों दलों ने संसद के वेल में जाकर धरना या प्रदर्शन न करने करने का जो निश्चय किया है, उससे सभी दलों को ऐसा ही व्यवहार करने की सीख लेनी चाहिए।
इसके एक दिन पहले ही शरद पवार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद सरकार बनने पर गोल-मटोल जवाब देकर मीडिया की नजर में आ चुके थे। अब जब पीएम मोदी ने एनसीपी की तारीफ कर दी तो इसके राजनैतिक मायने लगाए जाना स्वाभाविक था। बीजू जनता दल तो पहले ही मोदी के साथ है, लगता है एनसीपी को साथ लाकर महाराष्ट्र में कोई राजनैतिक धमाका करने की तैयारी चल रही है। कम से कम अटकलें तो यहीं हैं।
अगर हम प्रधानमंत्री मोदी के बयान को देखें तो सबसे पहले यह प्रश्न उठता है कि वह अन्य दलों को सीख देने के बजाए भाजपा के सांसदों को वेल में न आने की नसीहत उन्होंने क्यों नहीं दी। जाहिर है उनका उद्देश्य सिर्फ एनसीपी नेता शरद पवार की तारीफ करना था, जिसका नतीजा आज ही सामने आ गया।
आज प्रधानमंत्री और नरेंद्र मोदी के बीच मुलाकात हुई, जिसके कुछ राजनैतिक मायने निकाले जा रहे हैं। निकाले भी जाने चाहिए, कहा जा रहा है कि शरद पवार किसानों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री से बात करने के लिए मिले हैं। पर यह बात तो महाराष्ट्र में सरकार बनाने के बाद भी हो सकती थी। इसलिए हजम नहीं हो रही है।
दो-तीन दिन पहले एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के बीच महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर लगभग सभी मुद्दों पर बातचीत तय हो गई थी। पर शरद पवार ने सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद एक अनिश्चय की स्थिति उत्पन्न कर दी।
शिवसेना के संजय राउत ने यह कह कर कि शरद पवार को समझने में कई जन्म लगेंगे, महाराष्ट्र में सरकार गठन की नई कुंडली बनने की ओर इशारा कर दिया। यही संजय राउत पूरी तरह मुतमईन थे कि उनकी सरकार बन जाएगी। पर अब इनके बोल बदले-बदले से नजर आते हैं।
महाराष्ट्र का नया राजनैतिक घटनाक्रम और शरद पवार का नया बयान तथा उसके बाद शरद पवार और प्रधानमंत्री के बीच मुलाकात इस आशंका को जन्म दे रही है कि कहीं सीबीआई और ईडी महाशय तो कोई भूमिका नहीं निभा रहे हैं।
ऐसा कई बार हो चुका है कि इसलिए इसकी चर्चा बनती है। हम सबको मालुम है कि अजित पवार के विरूद्ध सीबीआई की जांच चल रही है और प्रफुल्ल पटेल से ईडी साहब पूछताछ कर चुके हैं। पवार साहब पर भी ईडी की नजर है। भले ही चुनाव के दौरान ईडी पवार के मामले में बैकफुट पर आ गई थी।
पिछले छह सालों में हम सब भाजपा के सरकार बनाने के तौर तरीकों से वाकिफ हो चुके हैं। इसलिए इस तरह की आशंका जरूरी नहीं कि निर्मूल ही हो। जेल जाने से किसे डर नहीं लगता, वो भी बुढ़ापे में। महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार न बन पाना मोदी और अमित शाह के लिए एक करारी चोट होगी। ऐसे में डरा धमका कर विपक्ष की सरकार बनने का मनसूबा तोड़ने का कुचक्र रचने में सत्ताधारी दल को क्या गुरेज हो सकती है?
अब जब बात राजनैतिक पतंगबाजी की है तो चलो दूर तक पतंग उड़ा लेते हैं और ढील देते हैं। पतंग कांग्रेस के आंगन में उड़ाते हैं वहां भी तो वाड्रा साहब ईडी के मांझे से कराह रहे हैं। अब अगर एक ही पतंग से कई आसमानों पर आफत के बादल टल सकते हैं तो पतंगबाजों के बीच पतंग न लड़ाने का निर्णय क्यों नहीं लिया जा सकता है। राजनीति में कब कौन कैसा दांव चल दे इसके बारे में हमेशा दावे से नहीं कहा जा सकता। पर आशंकाओं के बादलों के बीच राजनैतिक विश्लेषण का अधिकार तो बना ही रहता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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