सुरेंद्र दुबे
राज्यपाल का पद एक संवैधानिक पद होता है। ऐसा हमारा संविधान कहता है और ऐसा ही हमें नागरिक शास्त्र में पढ़ाया गया था। पर अब लिखा पढ़ा कुछ काम नहीं आ रहा है। लगता है नागरिक शास्त्र के पाठ्यक्रम में राज्यपाल के पद को नए सिरे से परिभाषित किया जाएगा है।
अब आप लोग तो समझी गए होंगे कि हम महाराष्ट्र के राजनैतिक घटनाक्रम में वहां के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बारे में विचार विमर्श करना चाहते हैं, जिन्होंने रातों-रात भाजपा के देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री तथा एनसीपी के अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बना कर राजनीति के आसमान में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया, जिससे पूरा देश भौच्चका रह गया। आज तक किसी भी राज्यपाल ने ऐसा कमाल नहीं किया था। इसलिए इनके धमाल पर चर्चा मौजू बनती है।
कहते हैं कि राज्यपाल का पद एक संवैधानिक पद है, इसलिए इसकी आलोचना नहीं होनी चाहिए। पर हमारा मानना है कि जब संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति स्वयं पद की गरिमा की रक्षा करने में असमर्थ है तो हमें भी लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए बाअदब राज्यपाल द्वारा उठाए गए गलत कदमों की मीमांसा जरूर करनी चाहिए। ताकि भविष्य में राज्यपाल के पद का स्वयं राज्यपाल द्वारा उपहास न किया जा सके।
चलिए 22 नवंबर से घटनाक्रम की चर्चा शुरू करते हैं। महाराष्ट्र में 22 नवंबर को शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस पार्टी ने राज्य में सरकार बनाने का दावा करने के लिए अंतिम रूप से फैसला लिया, जिसकी घोषणा बाकायदा प्रेस वार्ता में गई।
जाहिर है यह प्रेस वार्ता राजभवन में भी देखी गई होगी, जिसमें कहा गया था कि शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे कल राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। सरकार बनाने को लेकर 24 अक्टूबर के बाद से लगातार गहमा-गहमी चल रही थी। राज्यपाल इन सब परिस्थितियों से भिज्ञ रहे होंगे।
जाहिर है विपक्ष की उनसे यह अपेक्षा रही होगी कि राज्यपाल 23 नवंबर को उन्हें भेंट करने व दावा पेश करने का अवसर देंगे। जब जेल जाने के डर से एनसीपी विधानमंडल दल के तत्कालिन नेता अजित पवार को भाजपा अपने पाले में ला ही चुके थे तो राज्यपाल अगर एक दो दिन रूक कर शपथ ग्रहण कराते तो कोई आसमान नहीं फट पडता। महाराष्ट्र पर पाकिस्तान के हमले की आशंका नहीं थी इसलिए भी रातों-रात शपथ ग्रहण कराना जनता को कुछ हजम नहीं हो रहा है।
कुल जमा 12 घंटे में कई कीर्तिमान स्थापित हो गए। देवेंद्र फडणवीस ने अजित पवार के साथ मिलकर 170 विधायकों के समर्थन का दावा पेश कर दिया, जिसमें अजित पवार कि 56 विधायकों का समर्थन पत्र शामिल है, जिसे बाद में एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने धोखे से प्राप्त किया गया समर्थन पत्र बताया।
अजित पवार को नेता पद से हटा कर जयंत पाटिल को नया नेता नियुक्त कर दिया और 56 में से 51 विधायकों का समर्थन प्राप्त होने का पत्र राज्यपाल को सौंप दिया। इस पर कानूनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है, जिसपर कल 26 नवंबर को कोई निर्णय लिये जाने की संभावना है।
12 घंटे के भीतर ही राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन हटाये जाने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेज दी। हालांकि देश में किसी भी तरह की इमरजेंसी जैसी स्थिति नहीं थी। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट बैठक बुलाने के बजाए स्वयं प्रधानमंत्री की हैसियत से राष्ट्रपति शासन को हटाए जाने की संस्तुति स्वीकार कर ली। जिसका हक उन्हें संविधान के तहत प्राप्त है। हालांकि ये हक असाधारण परिस्थितियों के लिए है। अब अगर किसी राज्य में सरकार बनना इमरजेंसी जैसी स्थिति का परिचायक है तो अलग बात है।
जाहिर है इसके बाद राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को भी जगाया गया, जिन्होंने सुबह पौने छह बजे राष्ट्रपति शासन हटाए जाने की अधिसूचना पर हस्ताक्षर किए। अब राज्यपाल तो रातभर से जग ही रहे थे, तो उन्होंने आनन-फानन में नई सरकार को शपथ ग्रहण करा दी। यानी कि 22 नवंबर की रात आठ बजे से लेकर 23 नवंबर की सुबह आठ बजे के बीच सारा खेला संपन्न हो गया। किसी भी लोकतांत्रिक देश में ऐसी स्थिति पर चिंता तो व्यक्त ही की जानी चाहिए।
सारा खेल हो जाने के बाद इस बात पर लगातार संशय बना हुआ था कि राज्यपाल ने नई सरकार को किस तारीख को विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा है। न तो राजभवन ने कोई तारीख बताई और न ही भारतीय जनता पार्टी ने। पर पता नहीं कैसे इस बात पर चर्चा शुरू हो गई कि 30 नंवबर को शक्ति परीक्षण होगा।
हालांकि, विपक्ष लगातार ये कहता रहा कि उसे नहीं मालूम की किस तारीख को शक्ति परीक्षण होगा। भला हो गवर्नर के वकील मुकुल रोहतगी का जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में आज बताया कि राज्यपाल ने बहुमत साबित करने के लिए 14 दिन का ही समय तो दिया है। तब जाकर पूरे देश को पता चला कि महाराष्ट्र में बहुमत का फैसला 30 नवंबर को नहीं बल्कि दिसंबर के पहले हफ्ते में होगा।
कल सुप्रीम कोर्ट को फैसला देना है हो सकता है वह जल्द ही बहुमत परीक्षण कराने का आदेश दे दें। या फिर ये भी हो सकता है कि वह राज्यपाल द्वारा बरती गई जल्दबाजी पर कोई टिप्पणी करते हुए आदेश दे दें। चाहे फडणवीस सरकार बहुमत साबित कर दे या गिर जाए और कोई दूसरी सरकार बन जाए पर राज्यपाल द्वारा दिखाई गई अनावश्यक गोपनीय जल्दबाजी एक लंबे अर्से तक देश में चर्चा का विषय रहेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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