- प्रवासी श्रमिकों के पलायन ने महाराष्ट्र के उद्योग मुश्किल में
- कामगारों के इस रिवर्स माइग्रेशन से राज्य के औद्योगिक केंद्रों में चिंता
- देश में प्रवासी मजदूरों की संख्या 10 करोड़ के आसपास
- देश की जीडीपी में लगभग 15 फीसदी का योगदान है महाराष्ट्र का
न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी के बीच जब तालाबंदी की गई तो किसी ने प्रवासी मजदूरों की चिंता नहीं की। और जब प्रवासी मजदूर मजबूरी में पलायन करने लगे तो सरकारों की चिंता बढ़ गई। सरकारों की चिंता प्रवासी मजदूरों को लेकर नहीं बल्कि राज्यों में चलने वाले उद्योग धंधों को लेकर है। प्रवासियों के पलायन से उद्योग चलाने में दिक्कत आने लगी है, जिसकी वजह से केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें चिंतित हैं।
प्रवासी मजदूरों के पलायन से महाराष्ट्र सरकार भी चिंतित है। उसे समझ नहीं आ रहा कि तालाबंदी में बंद हुए उद्योग धंधों को अब कैसे शुरु करें।
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महाराष्ट्र की पहचान भारत के अग्रणी औद्योगिक राज्य के रूप में होती है। देश की जीडीपी में लगभग 15 फीसदी का योगदान देने वाला महाराष्ट्र कोरोना महामारी और इसके चलते लागू किए गए देशव्यापी तालाबंदी से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
तालाबंदी ने प्रवासी कामगारों को बेरोजगार तो किया ही साथ ही अब राज्य की औद्योगिक पहचान पर भी खतरा मंडराने लगा है। महाराष्ट्र की औद्योगिक इकाइयों में सबसे ज्यादा प्रवासी कामगार काम करते है। बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों से श्रमिक महाराष्ट्र में काम की तलाश में आते हैं। राज्य के कुल कामगारों में 20 फीसदी कामगार बाहरी हैं।
तालाबंदी के ऐलान के बाद से लगातार प्रवासी श्रमिकों का पलायन जारी है। जो मजदूर अभी अपने घर नहीं जा पाये हैं वह भी जाने की जुगत में हैं। सरकार की मिन्नतों के बाद भी ये रूकने को तैयार नहीं है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में प्रवासी मजदूरों की संख्या 10 करोड़ के आसपास है। एक अनुमान के मुताबिक अकेले महाराष्ट्र में ऐसे कामगारों की संख्या 70 लाख से अधिक है। हालांकि राज्य सरकार के पास प्रवासियों का सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
महाराष्ट्र में ये प्रवासी कामगार रियल इस्टेट, इंफ्रास्ट्रक्चर और टेक्सटाइल मिलों में काम करते हैं। इसके अलावा लाखों ऐसे लोग भी हैं जो घरेलू नौकर, सुरक्षा गार्ड और सब्जी बेचने का काम करते हैं।
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एक रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में लगभग 3 लाख रेहड़ी पटरी वाले हैं, जिनमें से अधिकतर प्रवासी हैं। ऑटो-टैक्सी चलाने या छोटा व्यवसाय करने में माहिर ये लोग स्वतंत्रता के पहले से ही यहां आर्थिक गतिविधियों का हिस्सा रहे हैं।
तालाबंदी के बाद से महाराष्ट्र से प्रवासियों का पलायन जारी है। राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख के मुताबिक 20 लाख से ज्यादा प्रवासी कामगारों ने अपने गृह प्रदेश जाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है और इससे कहीं अधिक कामगार पहले ही अपने गृह राज्यों को लौट चुके हैं।
इतनी भारी संख्या में प्रवासी मजदूरों के पलायन की वजह से राज्य की औद्योगिक इकाईयों में मैनपावर की कमी हो गई है। सरकार को भी इसका एहसास हो चुका है। सरकार जानती है कि जल्द ही मजदूरों का इंतजाम नहीं किया गया तो उद्योगों के चरमराने की नौबत आ सकती है। इस संकट को देखते हुए ही उद्धव सरकार अब स्थानीय लोगों से आगे आने की अपील कर रही है।
राज्य के प्रधान सचिव भूषण गगरानी का कहना है कि तालाबंदी की वजह से राज्य की आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है। इसे पटरी पर लाने का प्रयास किया जा रहा है।
गगरानी के अनुसार मुंबई और पुणे को छोड़कर राज्य के अन्य सभी जिलों में 56,600 उद्योग-धंधों को शुरू करने की अनुमति दी गई है। यहां कामगारों की कमी के चलते कारखाने पूरी क्षमता के साथ काम कर पाने में असमर्थ हैं।
कुछ दिनों पहले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार ने भी कहा था कि उद्योग अपना काम काज बहाल करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में मजदूर अपने मूल स्थानों को जा चुके हैं।
शरद पवार ने महाराष्ट्र में औद्योगिक गतिविधियां फिर शुरू करने के लिए श्रमिकों की व्यवस्थित वापसी की योजना की वकालत की है। वहीं नेशनल रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अनुराग कटियार का कहना है कि रेस्तरां इंडस्ट्री को अब स्थानीय लोगों के भरोसे ही चलाना पड़ेगा। वह कहते हैं कि मुंबई जैसे शहरों में नए कामगारों को ढूंढना चुनौतीपूर्ण होगा।
हालांकि सरकार इसे अवसर के रूप में भी देख रही है। सरकार स्थानीय लोगों को मौका देने की तैयारी में है। उद्योग क्षेत्र में आगामी चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार ने नीतियां और योजना तैयार की है। इसमें प्रवासी कामगारों की भरपाई के साथ राज्य के युवाओं रोजगार मुहैया कराने की कवायद की गयी है।
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सरकार उद्योग धंधों को फिर से सुचारू रूप से चलाने के लिए काम करना शुरु कर दिया है। मैनपावर से जूझ रहे उद्योगों के लिए सरकार कामगार विनिमय ब्यूरो बनाने की तैयारी में हैं। ब्यूरो उद्योगों को मजदूर उपलब्ध कराएगा। इसके साथ ही सरकार अल्पकालीन प्रशिक्षण केंद्र भी शुरु करने जा रही है। यह प्रशिक्षण स्थानीय लोगों को दिया जायेगा और ये प्रवासी कामगारों की जगह ले पायेंगे। हालांकि उद्योग जगत को इसमें संदेह है कि शायद ही स्थानीय लोग प्रवासियों की जगह ले पायेंगेे।
इतना ही नहीं उद्धव सरकार राज्य ऐसी कंपनियों का स्वागत करने को तैयार है जो कोरोना संकट के चलते चीन से निकल रही है। इन कंपनियों को आकर्षित करने के लिए जमीन, सड़क और अन्य सुविधाएं तैयार रखा गया है। इसके अलावा उद्यमशीलता को बढ़ावा देने का फैसला किया है। नए उद्योगों को कागजी कार्रवाई से बचाने के लिए एक महालाइसेंस सुविधा शुरू की गई है। इसी तरह बड़े निवेशकों को उद्योगमित्र की सुविधा दी जाएगी जो कुछ रिलेशनशिप मैनेजर की तरह सभी जरूरी मदद करेगा।
उद्योग मंत्री सुभाष देसाई का कहना है कि कोरोना संकट के कारण उद्योग क्षेत्र में मराठी युवाओं के लिए नए अवसर पैदा हुए हैं। इसलिए मराठी नौजवानों को नए मौके का फायदा उठाना चाहिए।