कुमार भवेश चंद्र
महाराष्ट्र की सियासत और देश की सियासत के लिए उसके मायनों पर बात शुरू करने से पहले शिवसेना के नेता संजय राउत के एक ट्विट की चर्चा करना जरूरी लग रहा है। “हम शतरंज में कुछ ऐसा कमाल करते हैं कि बस पैदल ही राजा को मात करते हैं।”
हम शतरंज में कुछ ऐसा कमाल करते हैं
कि बस पैदल ही राजा को मात करते हैं— Sanjay Raut (@rautsanjay61) November 29, 2019
यह भी इत्तफाक है कि संजय राउत का यह ट्विट उसी सुबह का है जब शिवसेना के अखबार सामना ने प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी को उद्धव ठाकरे का बड़ा भाई बताया है। जाहिर है महाराष्ट्र में उद्धव सरकार के शपथ के साथ महाविकास अघाड़ी और केंद्र की सत्ता पर काबिज सियासी ताकत के बीच एक प्रतिद्वंद्विता की शुरुआत हो चुकी है। ये सियासी विरोध-प्रतिरोध क्या मोड़ लेगा, किस अंजाम तक पहुंचेगा, इसको लेकर मुट्ठी बंद रखने की जरूरत है।
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महाराष्ट्र ने ही सिखाया है कि सियासी नतीजों के निष्कर्ष पर पहुंचने की हड़बड़ी अच्छी नहीं होती। लेकिन महाराष्ट्र ने जो सियासी सुर छेड़ा है उसके बाद इतना कहते हुए भरोसा है कि महाराष्ट्र ही नहीं देश की राजनीति की दिशा भी बदलती हुई दिख रही है। बेमेल गंठजोड़ की तोहमत और अस्थिरता की सियासी भविष्यवाणी के बीच उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महाविकास अघाड़ी सरकार ने अपने एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया है।
शिवाजी पार्क के शपथ ग्रहण समारोह में प्रदेश भर के किसानों को जुटाकर नए नेतृत्व ने उनके मुद्दे पर संजीदगी का संकेत दिया है। उद्धव सरकार अगर किसानों की राहत के लिए कोई ठोस कदम लेकर आती है इसका सकारात्मक संदेश जाएगा। इसके साथ ही पहले कैबिनेट में शिवाजी महाराज की राजधानी रायगढ़ के विकास के लिए 20 करोड़ की मंजूरी भी इस बात का संकेत है कि ये मौजूदा सरकार मराठा अस्मिता के उभार को अपना हथियार बनाए रखेगी।
इस सरकार के गठन के पहले से शुरू हुई सियासी विवेचना और भविष्यवाणियों पर गौर करें तो आपको साफ दिखेगा कि केंद्र की सत्ता में काबिज बीजेपी को कभी ये रास नहीं आएगा कि यह सरकार अधिक दिन चले। वे निश्चित ही महाराष्ट्र में कर्नाटक दोहराने की कोशिश करेंगे। लेकिन अपना मुख्यमंत्री बनाने की शिवसेना की जिद से शुरू हुई ये कहानी पवार की एनसीपी और सोनिया के कांग्रेस की जिद छोड़ने तक आ पहुंची है। इस महाविकास अघाड़ी की कामयाबी इसी बात पर निर्भर है कि ये सभी दल वोट बैंक की सियासत और अपने अपने अहं को छोड़कर आगे बढ़ें।
शिवाजी पार्क में आयोजित महाशपथ में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का शामिल नहीं होना बता रहा है कि कांग्रेस अभी भी शिवसेना के साथ को लेकर सहज नहीं है। शीर्ष नेतृत्व के अलावा दूसरी कतार के उसके नेता शपथ ग्रहण में शामिल हुए। मुमकिन है कांग्रेस नेतृत्व को कर्नाटक का वह दृश्य याद रह गया हो जिसमें उसके तमाम त्याग के बावजूद कहानी बदल गई। पर सियासत हमेशा अतीत के अनुभवों से नहीं चलती, भविष्य की संभावनाएं नए रास्ते बनाते हैं।
कांग्रेस को यह बात शायद देर में समझ में आए पर मराठा छत्रप शरद पवार के सामने तस्वीरें साफ दिख रही हैं। सियासत के गंभीर सूरमा तो वह पहले से ही माने जाते रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र के मौजूदा सियासी उथलपुथल में उनकी भूमिका और उनका नेतृत्व जिस रूप में उभर कर आया है उसे लेकर भाजपा नेतृत्व की चिंता जरूर बढ़ी होगी।
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नेताओं के बयान और सोशल मीडिया पर चल रहे शोर शराबों को नजरंदाज करते हुए शरद पवार ने अपने परिवार और पार्टी को जिस कौशल से संभाला और विपक्षी एकता की कोशिशों को अंजाम तक पहुंचाया उससे उनका सियासी कद बड़ा हो गया है। शिवसेना और कांग्रेस को एक साथ लाने की कवायद किसी और राजनेता के वश की बात नहीं थी।
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अब रही बात कि महाविकास अघाड़ी सरकार की स्थिरता को लेकर कितना आश्वस्त हुआ जा सकता है। साफ है कि सदन में भाजपा की 105 सीटों की ताकत को देखते हुए किसी असंतोष को हवा देकर कर्नाटक दोहराने की कोशिश हुई तो कुछ भी संभव है। लेकिन क्या ऐसी कोशिश को लेकर बीजेपी को अपनी विश्वसनीयता की चिंता नहीं होगी।
खास तौर पर तब जब उनका पहला प्रयास फेल हो चुका है। दूसरी ओर तीन दलों के गठबंधन को पूरी तरह मालूम है कि उनकी अपनी विश्वसनीयता भी अब महाअघाड़ी सरकार की कामयाबी और नाकामयाबी से जुड़ गई है। एक तरफ उनके सामने जम्मू कश्मीर की बीजेपी-पीडीपी सरकार का उदाहरण तो दूसरी ओर बिहार की बीजेपी-जेडीयू सरकार का नज़ीर।
अगले कुछ दिनों में महाराष्ट्र सरकार की दिशा दिखने लग सकती है। लेकिन अभी जो दिख रहा है वह ये कि शरद पवार के तौर पर विपक्ष को एक ऐसा चमत्कारी सियासी चेहरा मिल गया है जो ताकतवर होती जा रही भाजपा के खिलाफ उसका हथियार बन सकता है।
लोकसभा के चुनाव तो अभी दूर हैं। पर महाराष्ट्र के उथलपुथल सियासी हलचल की छाया में हो रहे झारखंड के चुनाव के नतीजों में इसकी झलक दिख सकती है। इसके साथ ही अगले साल में दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनाव विपक्षी एकता को लेकर एक नई तस्वीर दिखने के आसार है। महाराष्ट्र में सरकार की कामयाबी इसमें अहम भूमिका निभाएगी। इस रूप में देखा जाए तो आर्थिक रूप से देश को ताकत देने वाला राज्य अचानक ही सियासत के केंद्र में आ गया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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