अविनाश भदौरिया
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों को आए 11 दिन का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक सरकार किस पार्टी की बनेगी, ये स्पष्ट नहीं हो सका है। 50-50 फॉर्मूले को लेकर शिवेसना और बीजेपी के बीच खींचतान जारी है। वहीं एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन की सरकार बनाने की भी चर्चा तेज है।
शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने रविवार को बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि, हमें 170 से ज्यादा विधायकों का समर्थन है। उन्होंने कहा कि यह आंकड़ा 175 तक भी पहुंच सकता है।
संजय राउत के बयान को सच मान ले तो सवाल ये उठता है कि अगर शिवसेना के पास सरकार बनाने के लिए विधायकों की संख्या पूरी है फिर वह किस बात का इंतजार कर रही है। इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें महाराष्ट्र की राजनीति को समझना पड़ेगा।
शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस का साथ केर-बेर का होगा
बता दें कि शिवसेना और बीजेपी दोनों ही कट्टर हिंदुत्व के एजेंडा वाली पार्टी हैं जबकि एनसीपी और कांग्रेस सेक्युलर विचारधारा वाली पार्टी हैं। ऐसे में शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस के एक साथ आने पर तीनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं में आपसी तालमेल बना पाना मुश्किल होगा। साथ ही यह गठबंधन ज्यादा टिकाऊ साबित नहीं हो पाएगा और महाराष्ट्र में फिर चुनाव होगा। जिसका लाभ बीजेपी को होगा।
NCP को सबसे ज्यादा नुकसान होने की सम्भावना
एनसीपी महाराष्ट्र में शिवसेना के बाद सबसे बड़ा दल है। शरद पवार एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ हैं और वह यह बात भलीभांति जानते हैं कि उनकी पार्टी को इस गठबंधन से भविष्य में बड़ा नुकसान हो सकता है। हालांकि कांग्रेस के लिए शिवसेना के साथ जाना ज्यादा घाटे का सौदा नहीं है।
शिवसेना की शर्तों पर बीजेपी क्यों नहीं हो रही राजी
बीजेपी की ओर से लगातार बयान आ रहे हैं कि महाराष्ट्र में सरकार उनकी ही बनेगी। यहां तक की शपथग्रहण की तैयारियां भी की जा रही हैं। बीजेपी को पूरा भरोसा है कि देर से ही सही शिवसेना उनके साथ ही आएगी। दरअसल बीजेपी को मालूम है कि पिछले वर्षों में जिस तरह नरेंद्र मोदी ब्रांड के सामने क्षेत्रीय दलों की जमीन दरकी है उसी तरह महाराष्ट्र में भी शिवसेना की भी पकड़ कमजोर हुई है। इसके आलावा शिवसेना अगर कांग्रेस के साथ जाती है तो उसकी हिन्दुत्ववादी छवि धूमिल होगी और बीजेपी इसे पूरी तरह कैश करवाएगी।
बीजेपी इस बार शिवसेना के सामने झुककर खुद को कमजोर भी साबित नहीं करना चाहती। क्योंकि बीएमसी के मेयर चुनाव में भाजपा ने शिवसेना की ज़िद के आगे समर्पण कर दिया था। जिसका परिणाम है कि इस बार फिर से शिवसेना जिद पर अड़ गई है।
शिवसेना को अपनी साख बचानी है
चुनाव परिणाम आने के इतने दिनों बाद भी शिवसेना कोई निर्णय नहीं ले पाई है। न तो वह अभी तक एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर पाई है न ही बीजेपी को समर्थन दे रही है। इसके पीछे शिवसेना की भी मजबूरी है। गौरतलब है कि पहली बार ठाकरे परिवार का कोई शख्स चुनाव लड़ा है। बाला साहब ठाकरे का जो रसूख रहा है वह धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। ऐसे में आदित्य ठाकरे को बड़े स्तर पर ब्रांडिंग करके मैदान में उतारा गया है। आदित्य को महाराष्ट्र का भावी बाला साहब बनाना है तो उन्हें महाराष्ट्र सरकार में कम से कम डिप्टी सीएम का पद तो मिलना ही चाहिए। अगर शिवसेना इन पांच वर्षों में खुद को बीजेपी का छोटा भाई बनाए रखेगी तो जाहिर सी बात है कि भविष्य में उसे नुकसान उठाना पड़ेगा।
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