Wednesday - 30 October 2024 - 4:47 AM

उद्धव : फोटोग्राफर, संपादक, राजनीतिक कार्यकर्ता और अब मुख्यमंत्री

पॉलीटिकल डेस्क

इतिहास टूटने के लिए बनता है। जब इतिहास टूटता है तो उसके साथ ही एक नया इतिहास बनता है। महाराष्ट्र की राजनीति में आज ऐसा ही कुछ होने जा रहा है और यह सब संभव हुआ है शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की वजह से।

महाराष्ट्र की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में रहने वाला ठाकरे परिवार आज किंग बनने जा रहा है। ठाकरे परिवार में आज एक इतिहास टूटेगा तो एक इतिहास बनेगा। बाला साहेब ठाकरे परिवार का कोई भी सदस्य इससे पहले न चुनाव लड़ा था और न ही सत्ता में आया था। इस चुनाव में ठाकरे परिवार से चुनाव भी लड़ा गया और सत्ता भी संभालने जा रहे हैं।

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। किसी ने सपने में नहीं सोचा होगा कि बवालों से दूर रहने वाले उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनेंगे। इसीलिए कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी संभव है।

उद्धव को करीब से जानने वालों के मुताबिक उन्हें राजनीति से ज्यादा वाइल्ड फोटोग्राफी पसंद रही है। उद्धव ने अपना कॅरियर बतौर एक पेशेवर फोटोग्राफर ही शुरु किया था लेकिन उनके जीवन में इतना ट्विस्ट आया कि आज वह महाराष्ट्र की सत्ता के सिरमौर बन गए हैं।

उद्धव की कहानी उस फिल्म की तरह है जिसमें हर पल ट्विस्ट आता है। उन्होंने रजनीति का ककहरा अपने पिता से सीखा, फिर सामना में संपादकीय लिखा, राजनीतिक कार्यकर्ता बने फिर पार्टी प्रमुख और अब मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।

राजनीति तो उद्धव के खून में है। वह किसी संयोग से राजनीति में नहीं आए। उद्धव उस परिवार की विरासत को आगे ले जा रहे हैं जो राजनीति करने में नहीं, राजनीति चलाने में यकीन करता था। तभी तो ठाकरे परिवार को किंगमेकर कहा जाता है।

उद्धव ठाकरे की जुबान आम आदमी की जुबान है। सादगी से भरी और मीठी लेकिन खरी खरी। बाला साहेब ठाकरे ने मातोश्री से राजनीति की जो लकीर खींची थी, उद्धव ने उस लकीर को थोड़ा बदला है। सत्ता को रिमोट से चलाने वाला ठाकरे परिवार आज खुद सत्ता की ड्राइविंग सीट पर बैठने वाला परिवार बनने जा रहा है। आज का दिन शिवसेना और शिवसैनिकों के लिए बेहद अहम है।

अक्सर राजनीतिक विरासत संभालने वाले नेताओं के बारे में कहा जाता है कि उन्हें बिना मेहनत और संघर्ष के सबकुछ मिला गया। ऐसा उद्धव ठाकरे के लिए भी कहा जाता है लेकिन ऐसा नहीं है।

ठाकरे को नहीं जानने वाले लोग अक्सर उनके योगदान को नकार देते हैं लेकिन उन्होंने दशकों तक किसानों की लड़ाई लड़ी। उन्होंने
फोटोग्राफी प्रदर्शनियों के जरिए किसानों लिए फंड जुटाया, आम आदमी के हक के लिए आवाज उठाई, वर्षों तक समाजसेवा करते रहे।

उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र की सड़कों के गड्ढों को भरने का रिकॉर्ड बनाया। वह शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के प्रधान संपादक रहे और 2002 में बीएमसी में शिवसेना की जीत के सूत्रधार रहे।

उद्धव ठाकरे 1993 में शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष बने और 2004 में बाल ठाकरे ने पूरी तरह से शिवसेना की कमान उद्धव को सौंप दी। इससे नाराज उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ने 2006 में अपनी अलग पार्टी बनाकर उनके लाखों समर्थक अपने साथ ले गए।

जब तक बाला साहेब ठाकरे थे तब तक उद्धव के सामने बड़ी चुनौती नहीं रही लेकिन 2012 में उनके निधन के बाद उद्धव के सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी हो गई। एक ओर बिखरती शिवसेना को संभालने की बड़ी जिम्मेदारी तो दूसरा समर्थकों को राज ठाकरे के पाले से अपने पाले में लाना बड़ी चुनौती थी।

बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना का ग्राफ ढलान पर था। सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म था। उद्धव के लीडरशिप पर ऊंगली उठने लगी थी, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना झटकों से ऊबरी ही थी कि कुछ ही महीने बाद महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ 25 साल पुराना गठबंधन टूट गया। बीजेपी का साथ छूटने के बावजूद उद्धव अपने कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़े रखने में कामयाब रहे। हालांकि चुनाव के बाद फिर से बीजेपी शिवसेना का गठबंधन हो गया और महाराष्ट्र में एनडीए की सरकार बनी।

2019 के चुनाव में शिवसेना नए रूप में सामने आई। चुनाव तिथि की घोषणा से पहले ही वह सत्ता में भागीदारी को लेकर मुखर थी। बीजेपी के साथ वह समझौता करने को तैयार नहीं है। जाहिर है कभी शिवसेना के कंधे पर पैर रखकर महाराष्ट्र की राजनीति में उतरने वाली बीजेपी महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। उद्धव के आभास था कि अबकी बीजेपी के सामने झुक गए तो पार्टी के वजूद के संकट खड़ा हो जायेगा। इसलिए वह शुरु से मुखर रहे।

2019 में शिवसेना लोकसभा और विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी के साथ सीएम की कुर्सी को लेकर वह अड़ गई। दोनों के बीच तल्खी इतनी बढ़ गई कि शिवसेना ने तीन दशक पुरानी दोस्ती को तोड़ कर अपने विपरीत विचारधारा की पार्टी एनसीपी और कांग्रेस के खेमे में चली गई। अब उद्धव महाराष्ट्र के मुखिया बनने जा रहे हैं।

आज उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन जायेंगे। उनके सामने एक बार फिर चुनौतियों का अंबार होगा। अब देखना दिलचस्प होगा कि वह इन चुनौतियों से कैसे निपटेंगे। तिपहिया सरकार चलाना आसान नहीं होता वह भी उद्धव ठाकरे जैसे संवेदनशील कलाकार के लिए।

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