Saturday - 2 November 2024 - 10:51 PM

सिध्दांतों की दुहाई पर जनाधार बटोरने वाले दलों की स्वार्थपरिता से लेना होगी सीख

डा. रवीन्द्र अरजरिया

राजनैतिक मापदण्डों का सीधा प्रभाव सामाजिक व्यवस्था पर पडता है। नेतृत्व करने वालों की सोच के अनुरूप ही प्रबंधन शुरू हो जाता है। सत्ताधारी व्यक्ति या दल के सिध्दान्तों ही सर्वोपरि होते हैं। तंत्र का रुख अपने आप मुखिया के इशारे पर मुड जाता है।

अतीत में सिध्दान्तों को स्वीकारने वाले को ही संस्थागत माना जाता था यानी सरल शब्दों में कहें तो पार्टी की नीतियों, रीतियों को स्वीकार करने के बाद ही व्यक्ति को सदस्यता देने का प्राविधान रखा गया है। प्रत्यक्ष में जमीनी कार्यकर्ताओं के लिये यह बाध्यता आज भी है।

बदलाव तो केवल इतना आया है कि पार्टियों की लोकतांत्रिक प्रणाली बदल कर चंद लोगों के हाथों में सिमट कर तानाशाही में बदल गई है। मंच और मंच के पीछे के दर्शन एक दम विपरीत होते जा रहे है। महाराष्ट्र की सत्ता महाभारत में विपरीत सिध्दान्तों की त्रिवेणी बनकर सामने आ रही है। सिंहासन की चमक ने आदर्शों को अंधेरे में धकेल दिया है।

हिन्दुत्व का मुद्दा लेकर पहचान बनाने वाली बाला साहब की शिवसेना ने आज आलोचना करने वालों को गले लगा लिया है। प्रत्यक्ष में तो यही दिख रहा है। हमारा मानना है कि प्रत्यक्ष में जो दिखता है उसका कारण कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष में अवश्य होता है। उसी छुपे हुए कारक की खोज में सुबह से ही उलझा था कि अचानक कालबेल का मधुर स्वर गूंजा।

स्क्रीन पर नजर दौडाई तो मुख्यव्दार पर देश के जानेमाने विचारक जयसिंह रावत दिखाई दिये। नौकर को आवाज देने के स्थान पर हमने स्वयं गेट पर जाकर उनका स्वागत किया। अभिवादन का आदान प्रदान होने के बाद कुशलक्षेम पूछने-बताने के साथ ही हम मुख्यव्दार से ड्राइंग रूम तक पहुंच गये।

उन्हें सोफे तक पहुंचाने के बाद हमने अन्दर जाकर चाय और स्वल्पाहार की व्यवस्था हेतु रसोइये को निर्देश दिये और वापिस रावत साहब के पास आ गये। देहरादून, हिमाचल टाइम्स और केदारखण्ड से जुडी संयुक्त स्मृतियों को ताजा करने के बाद हमने अपने विचारों की खोज से उन्हें अवगत कराया। एक पल तो उन्होंने खामोशी से छत को घूरा। चेहरे पर गम्भीरता उतर आई।

स्वाधीनता के बाद के राजनैतिक जगत का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि बदलाव प्रकृति का नियम है। यह नियम अमिट है। हमें काल और परिस्थितियों के साथ देश को ले चलने की बाध्यता से गुजरना पडता है परन्तु इसके मायने यह कदापि नहीं है कि आदर्शों, सिध्दान्तों और मर्यादाओं को तिलांजलि दे दी जाये। जब जब ऐसा हुआ है, तब तब विनाश का पांचजन्य बजा है।

महाराष्ट्र में जिस महाभारत के दृश्य देखने को मिल रहे है, वह व्यक्तिगत अहम् की व्यवहारिक परिणति से अधिक कुछ नहीं हैं। परिवारवाद की परम्परा से जुडे दलों से और उम्मीद ही क्या की जा सकती है। चाटुकारों की फौज के कडे पहरे को स्वयं का वर्चस्व मानने वाले कभी भी जमीनी हकीकत से रू-ब-रू नहीं हो सकते।

वे तो केवल उतना ही जाने-समझते हैं जितना उन्हें बताया-समझाया जाता है। उनके लिये सत्य केवल वहीं तक सीमित है। चुनावी जंग में एक दूसरे को जमकर कोसने वालों का गले लगना उतना ही सत्य है जितना हमेशा सत्ता में बने रहने का भ्रम। उनकी व्याख्या ज्यादा लम्बी होती देखकर हमने उन्हें बीच में ही टोकते हुए मुख्य मुद्दे पर आने को कहा।

प्रत्यक्ष परिदृश्य पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि देश की हिन्दू आबादी को शिवसेना पर भाजपा से कहीं अधिक विश्वास था। इस विश्वास के पीछे बाला साहब ठाकरे की सोच, शब्द और व्यवहार था। तीनों एक सीध में थे। विरासत में पार्टी हथियाने की जंग में अपने राज ठाकरे से जीतकर उध्दव ने पिता की गद्दी सम्हाली। अगली पीढी को भी इसी दिशा में अग्रसर कर दिया।

महाराष्ट्र के बाहर के लोगों को पार्टी के नीतिगत लचीलेपने का ज्यादा कुछ पता नहीं था। वह तो शिवसेना को भगवान शंकर से जोडकर भी देखती थी और भवानी को दुर्गा का पर्याय भी मानती रही। यही कारण है कि पार्टी की कट्टर हिन्दूवादी छवि के कारण कई जगह तो भाजपा का हिन्दुत्व कार्ड फेल होता रहा।

यह पहली बार है कि महाराष्ट्र सहित देश के आम मतदाताओं के सामने शिवसेना को अवसरवादी दल के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। उनकी बात को हमने एक बार फिर बीच में ही काटते हुए कहा कि इस पूरे कथानक को क्या शतरंज की चालों की व्यवहारिक परिणति के रूप में देखा जाना चाहिये। उनकी मुस्कुराहट खिलखिलाहट में बदल गई। बोले क्या कहना चाहते हैं आप।

हमने कहा कि यह सब कहीं भाजपा की सोची समझा योजना का स्वचलित प्रबंधन तो नहीं है। हमारी बात का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि हम कहना नहीं चाहते थे, आपने कह दिया। यही सत्य है। सिध्दांतों की दुहाई पर जनाधार बटोरने वाले दलों की स्वार्थपरिता से लेना होगी सीख।

बात चल ही रही थी कि नौकर ने टी पाट के साथ स्वल्पाहार से भरी ट्राली लेकर ड्राइंग रूम में प्रवेश किया। निरंतरता में व्यवधान उत्पन्न हुआ परन्तु तब तक हमें अपनी मानसिक खोज को दिशा देने हेतु पर्याप्त साधन मिल चुके थे। सो चर्चा को पटाक्षेप की ओर पहुंचाकर भोज्य पदार्थों को सम्मान देने के लिए तैयार हो गये।

ये भी पढ़े : ईडी का डंडा-महाराष्‍ट्र का फंडा

ये भी पढ़े : महाराष्ट्र में सुबह सुबह की सनसनी

ये भी पढ़े :महाराष्ट्र में जो हुआ, अच्छा हुआ

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com