नवेद शिकोह
विकास दुबे स्थानीय गुंडे से देश का शीर्ष माफिया बनने में कामयाब हो गया। सामूहिक पुलिस हत्याकांड को अंजाम देकर जरायम की दुनिया में शॉटकट से फर्श से अर्श पर आने के लिए उसने जान की बाज़ी लगा दी और एक सप्ताह के घटनाक्रम में वो कामयाब हुआ। ये कम उम्मीद थी कि वो सरेंडर करने में कामयाब होगा। ये माना जा रहा था कि कानपुर के आठ पुलिसकर्मियों को शहीद करने वाले इस अपराधी से इंतेकाम लेकर पुलिस उसे मुठभेड़ में ढेर कर देगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका और उत्तर प्रदेश की पुलिस हाथ मलती रही और इस शातिर हिस्ट्रीशीटर ने मध्यप्रदेश के उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में पब्लिक और स्थानीय मीडिया की गवाही के बीच सरेंडर कर दिया। अब उसे मध्यप्रदेश पुलिस उत्तर प्रदेश पुलिस के हवाले करेगी।
एमपी से यूपी लाने के दौरान विकास दुबे के भागने की कोशिश जैसे किसी कारण में मुठभेड़ में मारे जाने का भी अनुमान है। लेकिन ऐसी संभावना बेहद कम है क्योंकि उसने योजनाबद्ध तरीके से खुद को कानून के हवाले करने की योजना में सफलता हासिल कर ली है। उसकी इस सफलता के बाद समझ लीजिए कि आज की तारीख में देश में एक बड़े माफिया सरगना का उदय हो गया।
बहुत पहले पुलिस से खचाखच थाने में एक राज्य मंत्री की हत्या के बाद कानूनी शिकंजे से बच निकलने के बाद ही विकास के आपराधिक दुस्साहस का मनोवैज्ञानिक विकास हो गया था। शायद उसे इस बात का मलाल हो कि बड़े हिस्ट्रीशीटर होने के बाद भी वो चोटी के माफियाओं में शुमार नहीं हुआ। और फिर उसने सुनियोजित ढंग से दर्जन भर पुलिसकर्मियों को मारकर भी जिन्दा बचने की सधी हुई रणनीति बनायी होगी। ताकि वो सज़ा काटने के बाद सुबूतों के अभाव में भविष्य में रिहा हो जाये और फिर देश के माफियाओं की सबसे आगे की पंक्ति में स्थान पा ले। फिलहाल अभी तक तो इस अनुमानित स्क्रिप्ट के मनमाने शॉट को अंजाम देने में विकास कामयाब दिख रहा है।
कानपुर में पुलिस नरसंहार की घटना के 6 दिन के दौरान पूरे देश की मीडिया में इस सामूहिक पुलिस हत्याकांड की चर्चा में किसी डॉन के रूप में विकास दुबे की खूब ब्रांडिंग हुई। सोशल मीडिया पर उसे खूंखार आतंकी की संज्ञा दी गयी तो तमाम लोगों ने उसे ब्राह्मण शेर जैसे खिताबों से भी नवाज़ा। जिस पर बिहार के डीजीपी को इस पर एतराज जताना पड़ा।
पुलिस हत्याकांड के इस दुर्दान्त अपराधी के धार्मिक होने की भी खूब चर्चायें हुईं। बताया जाता है कि वो धार्मिक प्रवृत्ति का अपराधी है। भगवान पर आस्था और विश्वास के साथ वो नियमित रूप से पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में सम्मिलित होता रहा है। वो महाकाल और मां दुर्गा का महाभक्त है। इसलिए उसने सर्जरी करवाकर अपने शरीर में दुर्गा कवच स्थापित किया था।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश सहित पूरे प्रदेश की पुलिस जब उसका इनकाउंटर करने का जाल बिछा रही थी तब वो मध्य प्रदेश के उज्जैन में अपनी जान बचाने के लिए महाकालेश्वर की शरण में पंहुच गया। लगा जैसे उत्तर प्रदेश की चौकन्ना पुलिस दृष्टिहीन हो गयी और विकास प्रदेश की सरहदों को भेदते हुए एम पी पंहुच गया। जबकि महाकाल बनकर चप्पे चप्पे पर मंडराती पुलिस हाथ मलती रह गयी और दुबे महाकाल की मंदिर में महाकाल से जीवनदान हासिल करने में सफल हो गया।
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हांलाकि खुफियातंत्र के जरिये पुलिस को ये पता चल गया था कि वो जिसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए खाक छान रही है वो खुद को कानून के हवाले कर अपनी जान बचाने के मंसूबे को अंजाम देना चाहता है। पुलिस उसके ऐसे मंसूबों को धराशायी करना चाहती थी। अनुमान था कि किसी टीवी चैनल के स्टूडियो से वो लाइव सरेंडर करना चाहता है। इसलिए नोएडा, दिल्ली और लखनऊ के हर टीवी स्टूडियो पर खुफियातंत्र और तमाम तरह से नाकेबंदी कर दी गई थी।
किसी को भनक भी नहीं थी कि पुलिस काल बन कर जिसे ढूंढ रही है वो भगवान महाकाल से जीवनदान मांग लेगा।
शायद इसलिए हमेशां से एक कहावत बहुत प्रचलित है- जिसको अल्लाह (भगवान) रखे, उसको कौन चखे !
अथवा, काल उसका क्या बिगाड़ सके, जो भक्त हो महाकाल का। जय महादेव। हर-हर महादेव।