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शिवराज के सामने राजकाज की शैली बदलने की चुनौती

कृष्णमोहन झा

मध्यप्रदेश में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की बागडोर संभाल ली है। 13 साल तक लगातार तीन बार मुख्यमंत्री पद के दायित्व का निर्वहन कर चुके शिवराज सिंह चौहान भारतीय जनता पार्टी के इतिहास के पहले ऐसे व्यक्ति हैं ,जो चौथी बार भारतीय जनता पार्टी विधायक दल के नेता चुने गए और जिन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है।

शपथ के दौरान ऐसा लग रहा था मानो प्रदेश के साढे सात करोड़ जनता का प्रतिनिधित्व उनके बीच के किसी व्यक्ति को मिला है। बहनों के भाई, बेटे- बेटियों के मामा। बुजुर्गों को बेटे के रूप में तीर्थ दर्शन योजना का लाभ दिलाने वाले शिवराज हर दिल में राज करते हैं।

13 वर्ष तक मध्य प्रदेश की जनता को अपना भगवान और मध्य प्रदेश को अपना मंदिर मानने वाले शिवराज एक बार फिर प्रदेश के मुखिया बन गए हैं।

इस बार उनके सामने बहुत सी चुनौतियां हैं। उन्होंने विधायक दल की बैठक में इस बात के संकेत भी दिए हैं कि उनकी कार्यशैली में इस बार आवश्यक बदलाव देखने को मिलेगा। अपनी कार्यशैली के अनुरूप शिवराज सिंह चौहान ने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद मंत्रालय में कोरोना से निपटने के लिए एक आवश्यक बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने प्रशासनिक अमले को प्रधानमंत्री के निर्देशों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया।

इतना ही नहीं आज विधानसभा में विश्वासमत के दौरान उन्होंने 112 प्राप्त कर अपना बहुमत भी साबित कर दिया। शिवराज के मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश की जनता के बीच यह संदेश चला गया उनका नेता एक बार फिर उनकी आवाज और उनकी समस्याओं का बेहतरी से निराकारण करेगा।

प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने पर दल के नेताओं की होड़ में कई नाम सामने आ रहे थे। मैंने भी अपने पूर्व लेख में नरेंद्र सिंह तोमर को इस दौड़ में सबसे आगे पाया था ,लेकिन पार्टी आलाकमान ने वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए शिवराज सिंह चौहान से उपयुक्त किसी और व्यक्ति को नहीं देखा। चूंकि अभी प्रदेश में 25 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है।

ऐसे में शिवराज सिंह चौहान ही एकमात्र ऐसे नेता है, जो पूर्ण समर्पण के साथ इन सीटों पर भाजपा का परचम लहरा सकते हैं। पूर्व में भी उन्होंने कई बार यह साबित करके दिखाया है। चाहे नगर पालिका के चुनाव हो या लोकसभा के चुनाव। हर समय चुनावी मोड में रहकर जीत की रणनीति तैयार करना मानो शिवराज का शगल बन गया है।

विधानसभा में विश्वास मत अर्जित करने के बाद उनके सामने अब अपनी कैबिनेट के गठन की बड़ी चुनौती है। इस कैबिनेट में वह चेहरे भी दिखाई देंगे, जिनकी बदौलत भाजपा प्रदेश में पुनः सत्ता प्राप्त कर पाई है। मेरा ऐसा मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ सबका विकास के संदेश को आत्मसात करते हुए शिवराज सिंह चौहान अपनी टीम का गठन करेंगे।

साथ ही उस टीम से यह अपेक्षा भी करेंगे कि वह उनके कंधे से कंधा मिलाकर प्रदेश की जनता के विकास के लिए एवं स्वर्णिम मध्यप्रदेश के लिए कार्य करें। कभी बीमारू राज्य होने का कलंक झेल चुके मप्र की गिनती अगर आज देश के विकसित राज्यों में की जाने लगी है,

तो इसके लिए असली श्रेय के हकदार मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ही हैं, जिनके अंदर संकल्प सेवा और समर्पण की त्रिवेणी समाई हुई है। प्रदेश की औद्योगिक विकास दर को दहाई के अंक के पार पहुंचाना और लगभग 25 प्रतिशत की कृषि विकास दर हासिल कर लेना उस राज्य के लिए आकाश की ऊंचाइयों को स्पर्श करने जैसा ही है, जिसे कभी पिछड़ेपन का अभिशाप झेलने के लिए विवश होना पड़ा था।

मप्र में 2003 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को नि:संदेह प्रचंड बहुमत से सत्ता में आने का मौका मिला था, लेकिन प्रारंभ के दो वर्षों में ही जब भाजपा को दो मुख्यमंत्री बदलने पड़े, तब शिवराजसिंह चौहान की नेतृत्व क्षमता और सांगठनिक कौशल पर भरोसा जताते हुए उन्हें मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपने का फैसला अगर तत्कालीन भाजपा हाईकमान ने न किया होता तो शायद भाजपा को मिले प्रचंड जनादेश के औचित्य पर ही प्रश्नचिह्न लग सकता था।

शिवराज सिंह चौहान ने अपनी विलक्षण नेतृत्व क्षमता, अद्भुत राजनीतिक सूझबूझ और अनूठी कार्यशैली के जरिए यह साबित कर दिया कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने का फैसला कितना सही था और उन परिस्थितियों में शिवराजसिंह चौहान ही सर्वोत्तम विकल्प थे। राज्य विधानसभा के गत तीन चुनावों में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ही पार्टी का मुख्य चुनावी चेहरा रहे हैं और उन चुनावों में उनकी लोकप्रियता का जादू सिर चढक़र बोला है।

मुख्यमंत्री शिवराज की विनम्रता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि उन्होंने पार्टी की प्रचंड जीत का श्रेय हमेशा समर्पित कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम और जनता के उस अटूट विश्वास को ही दिया हैं, जो सत्ता सूत्र के कुशल संचालन में उनका संबल बना हुआ था।

मुख्यमंत्री हमेशा से ही यह कहते रहे हैं कि वे तो मप्र रूपी भव्य मंदिर के पुजारी मात्र हैं। प्रदेश की जनता को वे अपना भगवान मानते हैं। मुख्यमंत्री कहते हैं कि उनके पास जो कुछ भी है, उस पर जनता रूपी भगवान का ही अधिकार है, क्योंकि वे आज जो कुछ भी हैं, वह जनता जनार्दन के आशीर्वाद का ही प्रतिफल है।

शिवराजसिंह चौहान नि:संदेह यशस्वी मुख्यमंत्री कहलाने के अधिकारी हैं, लेकिन उन्होंने अपने लिए कभी यश की कामना नहीं की। व्यक्ति पूजा और स्तुति गान से उन्हें सख्त परहेज है। उनका स्पष्ट मानना है कि जनता की भलाई के लिए उठाए गए सारे कदमों और सारी जनकल्याणकारी योजनाओं का मूल्यांकन जनता के प्रति सरकार के पावन उत्तरदायित्व के निष्ठापूर्वक निर्वहन के रूप में किया जाना चाहिए।

जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति अगर कोई भी सरकार उपेक्षा का भाव रखती है, तो यह एक ऐसा गंभीर अपराध है, जिसके लिए जनता किसी सरकार को माफ नहीं कर सकती, चाहे जनता ने कितना ही प्रचंड बहुमत प्रदान क्यों न किया हो।

केन्द्र में जब से भाजपा सरकार का गठन हुआ है तब से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी को पार्टी में सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता रहा है, परन्तु पार्टी में अब एक नई जोड़ी उभर रही है और यह जोड़ी है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की।

देश के भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री ने उन दिनों जो अहमियत प्रदान की थी, उससे तो यही संदेश मिलता है। केन्द्र सरकार की कोई भी अभिनव योजना हो, उसे लागू करने में मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार सबसे आगे रही है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रधानमंत्री के इतने निकट आ चुके थे कि राज्य के किसी भी महत्वपूर्ण गरिमामय आयोजन का मुख्य आतिथ्य स्वीकार करने में प्रधानमंत्री ने कभी कोई संकोच नहीं किया। राज्य सरकार की मेजबानी में आयोजित किसी भी भव्य समारोह में प्रधानमंत्री मोदी अपने सर्वाधिक चहेते मुख्यमंत्री की भूरि भूरि प्रशंसा करने में कही भी कंजूसी नहीं बरतते दिखाई नहीं दिए।

इंदौर में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट, भोपाल में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन और सीहोर जिले के शेरपुर कस्बे में आयोजित किसान महासम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा व्यक्त उदगारों से यह सत्य भली भांति उदघाटित हो जाता है कि भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में प्रधानमंत्री की कसौटी पर एकदम खरे उतरने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही हैं।

शिवराजसिंह चौहान को अपनी सरकार और उस सरकार के मुखिया के रूप में स्वयं अपनी आलोचना से कोई परहेज नहीं है। वे अलोचनाओं से घबराते नहीं है और विपक्ष के प्रहारों से विचलित नहीं होते। उनका मानना है कि सरकार की स्वस्थ आलोचना तो उसकी त्रुटियों और न्यूनताओं के परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त करती है, अत: ऐसी आलोचना का तो स्वागत किया जाना चाहिए।

अपनी जनकल्याणकारी योजनाओं की उन कमियों को दूर करना तो हर सरकार का कर्तव्य है, जो इन योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ जनता तक पहुंचाने में बाधक बनती है। शिवराजसिंह चौहान के स्वभाव में आप कबीर की ‘निंदक नियरे राखिए’ वाली सीख की झलक देख सकते है, लेकिन सहज, सरल मुख्यमंत्री को पीड़ा तो तब पहुंचती है, जब उनके विरोधी विरोध के लिए विरोध की राजनीति का सहारा लेते हैं।

मुख्यमंत्री तो विपक्ष से रचनात्मक विरोध की अपेक्षा रखते हैं। स्वर्णिम मप्र की रचना में वे विपक्ष की भी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते है, लेकिन मप्र के विकास रथ की गति को मंद कर देने वाले प्रयासों को वे जनता के साथ विश्वासघात मानते हैं। वे जितने सहज सरल और विनम्र हैं, उतनी ही दृढ़ता के साथ विपक्ष के तथ्यहीन आरोपों का खंडन करने से भी नहीं चूकते।

वे दो टूक कहते हैं कि एक दिन आरोपों की राख मेरे सत्य का शृंगार बन जाएगी। विपक्ष के हर प्रहार के सामने चट्टान की तरह खड़े रहकर उसे निष्प्रभावी सिद्ध करने में उन्हें सफलता मिली है और विपक्ष के प्रहारों ने अब तक खुद अपने ही घर को कमजोर किया है। राज्य में अब बिखराव का शिकार बन चुका विपक्ष मुख्यमंत्री के सामने बौना दिखाई दे रहा है।

मुख्यमंत्री का विपक्ष को बस एक ही जवाब है कि जब तक जनता-जनार्दन के विश्वास की शक्ति उनके अंदर मौजूद है, तब तक उन्हें सरकार के मुखिया के रूप में जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन के मार्ग से कोई डिगा नहीं सकता।

शिवराजसिंह चौहान सहज हैं, सरल हैं, लेकिन अभिमानी नहीं हैं। सत्ता अथवा अपनी करिश्माई लोकप्रियता का अहंकार उन्हें छू तक नहीं पाया है। उनके खाते में ढेर सारी उल्लेखनीय उपलब्धियां दर्ज हैं। वे पार्टी में अनेक शीर्षस्थ पदों पर मनोनीत हो चुके हैं। बहुत से प्रतिष्ठित सम्मानों और अवार्डों से उन्हें नवाजा जा चुका है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तो उनके अंदर समाई अनूठी क्षमताओं के इतने कायल हो चुके हैं कि उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने से भी खुद को नहीं रोक पाते है। अमित शाह ने तो उन्हें अपनी टीम में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का दायित्व तक सौपा था, वहीं वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष से तो शिवराज सिंह चौहान के जीजा साले के संबंध है।

शिवराज सिंह चौहान 2014 के बाद मध्यप्रदेश में यूएन की सरकार चलाने में लगे थे, यह आरोप मीडिया के साथ ही विपक्ष लगाता रहा है। चाहे बात नर्मदा सेवा यात्रा की हो या जन आशीर्वाद यात्रा की। शिवराज के तीसरे कार्यकाल को लेकर तरह तरह के प्रश्न और आरोप भी लगते रहे है, जिसमें सबसे प्रमुख आरोप व्यापम का रहा है।

विपक्ष का मानना था कि वह अगर सरकार में आई तो सर्वप्रथम व्यापम से जुड़े मामले को ही उजागर करेगी और कठोर से कठोर कार्यवाही संबंधित लोगो के खिलाफ करेगी। मगर 15 माह तक सत्तासीन होने के बावजूद कांग्रेस ऐसा कुछ नहीं कर पाई। इस बात से यह साबित हो गया कि जो आरोप विपक्ष लगा रहा था वह सब निराधार थे।

अगर कांग्रेस की बात में दम होता तो सख्त से सख्त कार्यवाही की जाती। शिवराज सिंह चौहान उन गिने-चुने राजनेताओं में है ,जिनका जनाधार मध्य प्रदेश ही नहीं वरण संपूर्ण देश में है।राज्यों के विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव।

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जब भी शिवराज को प्रदेश से बाहर प्रचार के लिए भेजा गया है तो उन्होंने बेहतर प्रदर्शन करने का हमेशा प्रयास किया है। शिवराज की लोकप्रियता का आलम यह है कि दूसरे राज्यों में भी उनको सुनने और देखने अपार जनसमूह एकत्र हो जाता है।

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कुल मिलाकर शिवराज सिंह चौहान का चौथा कार्यकाल अपने आप में कई कारणों से महत्वपूर्ण होगा। लगातार 15 वर्ष तक भाजपा की सरकार होने की वजह से अपनों से लगने वाले लोगों का चेहरा 15 माह में उजागर हो गया है। इतना ही नहीं जो गिने-चुने प्रशासक शिवराज के इर्द-गिर्द रहते थे ,उनकी भूमिका भी कांग्रेस शासनकाल में बखूबी देखने को मिली है।

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यही वजह है कि शिवराज ने भोपाल में आयोजित भाजपा विधायक दल की बैठक में इशारों-इशारों में यह संकेत दे दिया है कि उनका कार्यकाल पूर्व कार्यकाल से हटकर रहेगा और अब उनकी कार्यशैली में भी बदलाव देखा जाएगा। अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि शिवराज सिंह चौहान अपने इन 15 माह के सफर को कितना याद रखते हैं। और अपनी कार्यशैली में कितना सुधार करते हैं|

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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है यह लेख उनका निजी विचार है)

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