रूबी सरकार
दीपावली के बाद मध्यप्रदेश में प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा ग्वालियर में रहा। ग्वालियर के फूलबाग इलाके की वायु गुणवत्ता सूचकांक 401 मापा गया है। जो अतिगंभीर स्थिति पर पहुंच चुका है जबकि पिछले साल यह मात्र 88 था। वहीं महाकाल की नगरी उज्जैन में 313, रतलाम में 307 और भोपाल की वायु गुणवत्ता सूचकांक 189, पिछले साल की तुलना में यह बहुत ज्यादा है।
पिछले साल यह सूचकांक 88 था। जबकि इंदौर, देवास, जबलपुर, कटनी और दमोह की स्थिति संतोषजनक कही जा सकती है। यहां की हवा थोड़ी राहत भरी है। यह स्थिति तब, जब कोरोना महामारी के चलते प्रदूषण को रोकने के लिए मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पटाखे न फोड़ने की सलाह दी थी। साथ ही कहा था, कि यदि पटाखे फोड़ने ही है, तो निर्धारित समय में ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल करें।
जिला प्रशासन को भी सलाह दी गई थी, कि वे अपने-अपने शहर के प्रदूषण को देखते हुए पटाखे फोड़ने की अनुमति दें। परिस्थिति के अनुसार जबलपुर जिला प्रशासन ने फेर-बदल करते हुए पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी थी। लेकिन ग्वालियर में पटाखों के लिए बोर्ड द्वारा जो दो घण्टे का समय निर्धारित किया था, उसका पालन जिला प्रशासन नहीं करवा पायी।
हालत यह है, देर रात तक लोग पटाखे जलाते रहे और हवा को जहरीली बनाने में योगदान दिया। जहरीली हवा श्वास के मरीजों के लिए बेहद खतरनाक है। इससे श्वास, फेफड़े संबंधी परेशानियां बढ़ जाती है। जिससे बीमार बुजुर्ग व बच्चों को अधिक परेशानी होती है।
वैसे तो हर साल गर्मी के बाद गुलाबी सर्दी जहां इंसानों को अच्छा अहसास कराती है, वहीं इसके साथ प्रदूषण का खौफ भी लाती है। फिर इस साल कोराना के कारण श्वास पर प्रदूषण की मार से ज्यादा लोगों को बीमार होने की घोषणा पहले ही विशेषज्ञों द्वारा कर दी गई थी और इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार पहले से ही मिशन मोड में जुटी थी ।
केंद्र सरकार ने पहले ही हवा को प्रदूषित करने वालों पर सख्ती के लिए अध्यादेश जारी कर 5 साल तक की सजा और एक करोड़ रूपए तक जुर्माने का किया प्रावधान किया है।
सरकारी हवाले से कहा गया है, कि अच्छी गुणवत्ता की वायु के दिनों की संख्या वर्ष 2016 में 106 के मुकाबले 2020 में बढ़कर 218 हो गई है। इसके मुकाबले खराब गुणवत्ता वाले वायु दिनों की संख्या वर्ष 2020 में घटकर 56 हो गई, जबकि 2016 में 01 जनवरी से 30 सितम्बर तक यह 156 थी।
प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप है जो विज्ञान की कोख से जन्मा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में हर साल करीब 38 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हो जाती है।
दुनिया के 90 फीसदी बच्चे आज जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है तो दुनिया के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 14 शहर भारत के हैं। यही कारण है कि केंद्र सरकार अब वायु प्रदूषण को कम करने की दिशा में बहुत तेजी के साथ काम कर रही है।
स्वच्छ भारत अभियान और नमामि गंगे जैसे अभियान की तर्ज पर वायु प्रदूषण को कम करने की दिश में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, बीएस-6 इंधन और ई-वाहन पॉलिसी जैसे कदम केंद्र सरकार उठाए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर उनके प्रधान सचिव पीके मिश्रा और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर बैठक कर रोडमैप तैयार कर चुके हैं।
प्रदूषण कम करने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के अंतर्गत पर्यावरण मंत्रालय ने 10 जनवरी 2019 को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम एनसीएपी लागू किया। यह पांच साल की योजना है। इसके अंतर्गत 300 करोड़ रूपए खर्च कर वर्ष 2024 तक हवा में मौजूद प्रदूषण फैलाने वाले कण पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा को 20 से 30 फीसदी तक कम किये जाने का लक्ष्य रखा गया है।
एनसीएपी को बनाते समय उपलब्ध अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों और राष्ट्रीय अध्ययनों का ध्यान रखा गया है, जिसमें वायु प्रदूषण कम करने वाले अधिकांश कार्यक्रम पूरे देष के लिए न होकर शहर विशेष के लिए बनाए जायें, जैसा कि विदेशों में देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए, बीजिंग और सियोल जैसे शहर, जिनमें ऐसे विशिष्ठ कार्यक्रम चलाने के बाद 5 वर्षों में पीएम 2.5 के स्तर में 35 से 40 फीसदी कमी देखने को मिली।
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए तैयार की गई इस योजना में 102 शहरों को श मिल किया गया है। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार अब इसे देश के 122 शहरों में लागू किया जा रहा है।
केंद्र सरकार ने पेट्रोल से होने वाले प्रदूषण को घटाने के लिए इथेनॉल के उत्पादन में 6 साल में पांच गुना वृद्धि की है। वर्तमान में इसका करीब 200 करोड़ लीटर उत्पादन हो रहा है। पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने से वाहन से निकलने वाले धुएं में कार्बन की मात्रा 19 फीसदी तक कम हो जाती है।
इसके साथ ही 65 हजार करोड़ रूपये के निवेश के साथ बीएस-4 के बाद बीएस-6 मानक के वाहन और ईंधन की शुरूआत की गई है। इससे अनुमान है, कि वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण में 25 से 70 फीसदी तक कमी आएगी।
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उधर दिल्ली-एनसीआर के लिए केंद्र सरकार ने पराली प्रबंधन के लिए 1700 करोड़ रूप्ए का बजट आवंटित किया है। इसके अतिरिक्त पराली प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार मशीनें दे रही है। मशीन खरीद पर सहकारी समितियों 80 फीसदी और अन्य लोगों को 50 फीसदी सब्सिडी दी जा रही है।
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करीब तीन साल पहले खतरनाक प्रदूषण फैलाने वालों पर हो नजर रखने के लिए सरकार ने समीर एप्प की शुरूआत की थी। ताकि सजग रहने के साथ ही जगरूक नागरिक प्रदूषण कम करने में बड़ी भागीदारी निभा सके। इस एप्प के जरिए लोगों को उनके घर या कॉलोनी के अलावा जहां वे खड़े हैं, वहां के प्रदूषण स्तर की सटीक जानकारी प्राप्त कर सके।
इसके साथ ही एप्प के जरिए यह भी जान सकते है कि यह प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए कितना खतरनाक है। अगर कोई प्रदूषण फैलाता दिखे तो इस एप्प के जरिए शिकायत भी कर सकते हैं। इन शिकायतों का निश्चित समायावधि के भीतर निपटारा किया जाता है।