पॉलिटिकल डेस्क
अभी महाराष्ट्र का हाईवोल्टेज पॉलिटिकल ड्रामा थमा नहीं कि मध्य प्रदेश में सियासी उथल-पुथल की सुगबुगाहट तेज हो गई है। कांग्रेस खेमे में हलचल बढ़ गई है। सियासी गलियारे में चर्चाओं का बाजार गर्म हैं। ऐसी उम्मीद जतायी जा रही है कि एमपी कांग्रेस विधायक कर्नाटक दोहराने की तैयारी में जुट गए हैं।
एमपी कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया की पार्टी आलाकमान से नाराजगी को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। दरअसल सिंधिया ने अपने ट्विटर अकाउंट से अपना कांग्रेसी परिचय हटा लिया है, जिसकी वजह से ऐसी खबरों को बल मिलने लगा है।
ट्विटर के नए बायो में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद को जनसेवक और क्रिकेट प्रेमी बताया है। अभी सिंधिया के परिचय हटाने पर बहस चल ही रही थी कि उनकी समर्थक विधायक इमरती देवी ने भी ट्विटर प्रोफाइल से कैबिनेट मंत्री का परिचय हटा दिया है। इमरती देवी के परिचय हटाने के बाद से मध्य प्रदेश में सियासी माहौल गर्म है। तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
विधायक इमरती देवी डाबरा से विधायक हैं और इन्हें सिंधिया का करीबी माना जाता है। इन्होंने खुद को पार्टी का कार्यकर्ता बताया है। राज्य में सिंधिया गुट के नेताओं की कमलनाथ सरकार से अनबन की खबरें पहले भी आ चुकी हैं।
सिंधिया ने किया खंडन
हालांकि ट्विटर अकाउंट से कांग्रेसी परिचय हटाने को लेकर सिंधिया ने इसका खंडन किया है। सिंधिया ने कहा कि एक महीने पहले ही मैंने ट्विटर पर अपना बायो बदला था। लोगों की सलाह पर मैंने अपना ट्विटर बायो छोटा कर लिया था। इस बारे में अफवाहें निराधार हैं।
गौरतलब है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इससे पहले अपने ट्विटर प्रोफाइल पर अपना पद- कांग्रेस महासचिव, गुना लोकसभा सीट से सांसद (2002-2019 तक) और पूर्व केन्द्रीय मंत्री लिखा था।
ऐसे नहीं लगाया जा रहा है कयास
मध्य प्रदेश में सत्ता में कांग्रेस के आने के बाद से वहां उथल-पुथल की स्थिति बनी रही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ उतना विपक्षी दल बीजेपी से परेशान नहीं रहे हैं जितना अपनी पार्टी के नेताओं से है। कांग्रेसी नेता आए दिन बयानबाजी कर उनके लिए मुश्किलें खड़ी करते रहे हैं।
इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के रिश्ते जगजाहिर है। कांग्रेसी खेमा दो धड़ों में बंटा हुआ है। राहुल गांधी के कहने की वजह से सिंधिया ने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को छोड़ तो दिया लेकिन कमलनाथ से उनके रिश्ते मधुर नहीं हुए।
फिलहाल अभी ऐसी अटकलें हैं कि लोकसभा चुनाव हारने के बाद से ज्योतिरादित्य पार्टी में उपेक्षित चल रहे हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर भी पार्टी के साथ उनकी नाराजगी की खबरें आई थीं। उनके कई समर्थक विधायकों ने इस्तीफे तक का एलान किया था। हालांकि, मुख्यमंत्री कमलनाथ और केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हो गया।
क्या था कर्नाटक मामला
गौरतलब है कि बीते जुलाई माह में कांग्रेस और जनता दल(सेक्यूलर) की सरकार के दौरान हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिला था, जब बागी विधायकों ने कांग्रेस और जेडीएस को छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम लिया था।
कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस और जद-एस सरकार के 15 बागी विधायक अपना इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे। इसके बाद मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली 14 महीने पुरानी गठबंधन सरकार गिर गई थी।
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