प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ की मुकद्दस सरजमीं ने बॉलीवुड को अनेक मशहूर व मारूफ फनकार दिये हैं। उनकी कला के जलवे मौसिकी, अदाकारी, फिल्म निर्देशन , नगमानिगारी, कहानी लेखन व स्क्रिप्ट राइटरिंग में सर्वविदित हैं। आइये, लखनऊ में पले बढ़े फनकारों की आज की कड़ी में प्रस्तुत हैं सुप्रसिद्ध खलनायक मैक मोहन साहब की कहानी।
मैक मोहन का जन्म 24 अप्रैल 1938 को पाकिस्तान के लाहौर, सिंध में हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश आर्मी में कर्नल थे। 1940 में उनका ट्रांसफर लाहौर से लखनऊ कर दिया गया। उस वक्त मैक मोहन मात्र दो वर्ष के थे। लखनऊ में सरकार ने उन्हें एक बहुत बड़ा बंगला दिया था रहने को।
वह जब बड़े हुए तो उनका दाखिला पास के एक स्कूल में करा दिया गया। बचपन में उन्हें क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था। वह अपने स्कूल फिर कालेज की टीम के कैप्टन रहे। उनकी दिली तमन्ना इंडिया टीम में खेलने की थी। इसके लिए वह बम्बई जाने का सपना देखने लगे।
हां तो लखनऊ में बचपन बिता रहे मैक मोहन जिनका असली नाम मोहन माकीजानी था। जब वे चौथी जमात में पढ़ रहे थे तभी देश आजाद हुआ तो लाहौर और हैदराबाद से उनके कई रिश्तेदार शरण पाने के लिए उनके बंगले पर आ गये। उन्होंने आजादी के बाद वह बंगला सरकार से खरीद लिया था।
पिताजी ने अपने बड़े से लॉन में टेंट लगवाकर सबको पनाह दी। घर में भी तिल रखने की जगह नहीं थी। पिताजी चाहते थे कि वो और उनके बड़े भाई दोनों हास्टल में चले जाएं। अपनी जान पहचान के बल पर उन्हें हास्टल में शिफ्ट कर दिया गया। उनके ट्यूटर को भी निर्देश दिया गया कि वे दोनों को ट्यूशन देने हास्टल चले जाया करें।
आठवें तक वो अंग्रेजी स्कूल में पढ़े। अंग्रेजों के जाने के बाद हिन्दी पर जोर दिया जाने लगा। फिर उनके पिताजी ने कहा कि तुम्हें हिन्दी सीखने के लिए नवीं कक्षा से हिन्दी स्कूल में पढ़ाई करनी चाहिए।
1956 में इंटर पास करने के बाद क्रिकेटर बनने का सपना उन्हें बेचैन किये हुए था। लखनऊ में क्रिकेट की अच्छी कोचिंग न होने के चलते उन्होंने बम्बई का रुख किया। तब बम्बई ही क्रिकेट की कोचिंग के जानी जाती थी। आगे की पढ़ाई उन्होंने बम्बई के जय हिन्द कालेज से की। यहां इनके दोस्त बने सुनील दत्तजी।
अभिनेता सुधीर भी साथ ही पढ़ते थे और वो फिल्मों से भी जुड़े थे। अभी वो क्रिकेट की कोचिंग के बारे में सोच ही रहे थे कि उनके एक दोस्त ने बताया कि शौकत आजमी जी एक नाटक डायरेक्ट कर रही हैं। उन्हें एक खास करेक्टर के वास्ते निहायत दुबले पतले आदमी की जरूरत है।
मैक मोहन को पैसों की भी जरूरत थी। वो शौकत आजमी से मिले। शौकत आजमी ने उनका टेस्ट लिया और र वह रोल उन्हें मिल गया। शौकत आजमी ने उनकी अदाकारी की काफी तारीफ की। उनके साथ उन्होंने कई प्ले किये। फिर उनका रुझान फिल्मों की तरफ हुआ। यहां कोई गॉड फादर न होने के चलते उन्होंने पहले फिल्मालय से एक्टिंग कोर्स किया।
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1964 में वे ‘हकीकत” फिल्म बना रहे चेतन आनंद से मिले। उन्होंने मैक मोहन को अपना असिस्टेंट तो बना लिया ही साथ ही फिल्म में एक सैनिक का महत्वपूर्ण रोल भी दिया।…अब उनका नाम मोहन माकीजानी से मैक मोहन हो गया।
उनकी बहन वीना की शादी फिल्म डायरेक्टर रवि टण्डन से हो गयी। वीना और रवि से जो बच्ची पैदा हुई उसका नाम रखा गया रविना। जी हां वही मशहूर फिल्म हिरोइन रविना टण्डन। उन्हें एक फिल्म ‘आओ प्यार करें” में उन पर एक गीत फिल्माया गया। इस फिल्म में वो क्लीन शेव्ड थे। उसके बाद उन्होंने जितनी भी फिल्म कीं सबमें उनके चेहरे पर दाढ़ी रही।
जब उन्हें ‘शोले” फिल्म में कास्ट किया गया तो उनका रोल काफी लम्बा था। वो 27 बार बम्बई से बेंगलोर के पास लोकेशन पर शूटिंग के लिए आये। लेकिन जब फिल्म का फाइनल प्रिंट आया तो उनका सारा रोल काट दिया गया। बस एक ही डायलॉग बचा था ‘पूरे पचास हजार”। रोल की यह दुर्दशा देखकर उन्हें रोना आ गया।
उन्होंने रोते हुए रमेश सिप्पी साहब से कहा कि आपने इतना भी रोल क्यों रखा इसे भी काट दीजिए। क्योंकि उस वक्त उनकी आठ फिल्में फ्लोर पर थीं आैर इस एक्स्ट्रा टाइप परफार्मेंस से उन पर प्रभाव पड़ सकता था। रमेश सिप्पी ने मैक मोहन को चुप कराते हुए कहा कि देखो बेटा अगर यह फिल्म चली तो तुम इसी रोल से पहचाने जाओगे। उनकी बात अक्षरश: सही साबित हुई। सही बात थी कि इससे पहले वो सौ के आसपास फिल्में कर चुके थे लेकिन उनकी कोई पहचान नहीं बनी थी।
मैक मोहन को दो ही चीजों का शौक था अच्छा पहनना और महंगे सेंट (इत्र) लगाना। कहा जाता है कि उनके कपड़े उस वक्त बम्बई के सबसे महंगे माधव टेलर सिलते थे। अक्सर एवरेज बजट की फिल्मों के प्रोड्यूसर शिकायत करते थे कि तुम्हारे कास्ट्यूम का बजट तो तुम्हारी फीस से भी ज्यादा होता है। ऐसे में वो कहते कि ठीक है मैं अपने पास से कपड़े ले आऊंगा। उनके पास सैंकड़ों जोड़ा कपड़े थे।
एक तो उनका वजन हमेशा एक जैसा ही रहता था तो से कपड़े छोटे होते नहीं थे। वो हमेशा वेल ड्रेस्ड रहना पसंद करते थे। लोग उनकेे कपड़ों की क्रीज को देखकर उन्हें कड़क राम बुलाते थे। उन्हें अच्छी अंग्रेेजी बोलनी आती थी। वो रीडर डायजेस्ट पढ़ने के बहुत शौकीन थे। उनके अंदर दो ऐसी कमियां थीं जो उनकी जान के साथ ही गयीं। एक तो वह चेन स्मोकर थे और दूसरी शराब उनकी सबसे बड़ी कमजोरी थी।
उनकी शादी की भी अजीबोगरीब कहानी है। हुआ यह कि 1986 में उनके पिताजी बीमार पड़े। जिस आयुर्वेदिक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था उसकी साउथ इंडियन डाक्टर मिन्नी से उनका इश्क हो गया। दोनों ने शादी कर ली। उनसे तीन बच्चे हुए। बड़ी लड़की मंजरी माकीजानी फिल्म डायेक्टर है। दूसरी विनती माकीजानी प्रोडक्शन डिजाइनर है। और बेटा विक्रान्त फिल्मों में काम करता है।
2009 में मैक मोहन “अतिथि तुम कब जाओगे` की शूटिंग कर रहे थे कि तभी उनकी तबीयत खराब हो गयी। उन्हें कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी अस्पताल में भर्ती कराया गया। डाक्टरों ने उन्हें दाहिने लंग में ट्यूमर बताया। जो बाद में कैसर में तब्दील हो गया। 10 जून 2010 में उन्होंने अंतिम सांस ली।
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45 साल के फिल्मी कैरियर में उन्होंने कुल 210 फिल्मों में काम किया। उनकी बेटी विनती ने उनके नाम से मैक स्टेज कम्पनी खोली है। अमिताभ जी की सभी हिट फिल्मों में मैक ने काम किया। उनके इंतकाल पर अमिताभ जी ने ट्यूटर पर लिखा था कि मैक जैसे मददगार और नेक दिल इंसान कम होते हैं। तुम “शोले” के अपने रोल के लिए दुनिया में हमेशा जिंदा रहोगे और एक अच्छे इंसान के रूप में पहचाने जाओगे।