जुबिली न्यूज़ डेस्क।
लखनऊ। इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने का चांद दिखने के बाद ही लखनऊ सहित पूरी दुनिया कर्बला के शहीदों का गम मनाने लग जाती है।
कर्बला के 72 शहीदों का गम मनाने के लिए अजादार अपने घरों में अजाखाना सजाकर हजरत इमाम हुसैन अलेहिस्सलाम को मेहमान बनाते हैं।
मोहर्रम का चांद देखते ही इमाम हुसैन के चाहने वाले अपने घरों के अजाखानें में अलम, जुलजनाह, झूला व जरीह सहित अन्य शबीह-ए-मुबारक के के ताजिए रखते हैं। ताजिए को इराक के शहर कर्बला में बने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रौजे की शबीह माना जाता है। इसीलिए मोहर्रम से तीन महीने पहले से ही ताजिए बनाने का काम शुरू हो जाता है।
ताजिए बनाने का काम न केवल मुसलमान, बल्कि बड़ी तादात में हिंदू भी इमाम हुसैन अ.स. के बनाते हैं। गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर सआदतगंज इलाकों में कई हिंदू घरों में ताजिया बनाने का काम होता है।
नूरबाड़ी में रहने वाले कारीगर प्रदीप कुमार भी पिछले 20 वर्षों से हर साल ताजिए बनाते हैं। वह बताते भी हैं कि हुसैन बाबा के ताजिए बनाने का काम उनके घर में कई पीढ़ीयों से होता आ रहा है। बाप, दादा भी यही काम करते थे। उनके बने ताजिए पूरे लखनऊ में बिकते हैं। वहीं, हरीशचंद्र व संतोष सहित कई कारीगर भी कई सालों से ताजिया बनाने का काम करते हैं।
हरिश्चंद्र बताते हैं कि हुसैन बाबा के ताजिए से हमारा परिवार कई सालों से जुड़ों हैं। इसी तरह बजाजा, मुफ्तीगंज व हुसैनाबाद सहित राजधानी के कई इलाकों में भी ताजिए बनाने का काम तेजी से हो रहा है। 31 अगस्त को चांद रात से ही मदरसा सुलतानुल मदारिस व मस्जिद-ए-कूफा सहित सहित अन्य जगहों पर ताजिए खरीदने का सिलसिला शुरू हो जाएगा।
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